हम भी हैं इसी मुल्क के | Poem on communalism in Hindi
हम भी हैं इसी मुल्क के
( Ham bhi hain isi mulk ke )
हम भी हैं इसी मुल्क के,
गद्दार नहीं है ।
मजहब ये मुसलमान
सितमगर नहीं है ।
अपने लहू का कतरा
भी कुर्बान करें हम
कहते हो हमको
हम वफादार नहीं हैं
हम भी हैं इसी मुल्क के
गद्दार नहीं हैं ।
मुस्लिम के मुहल्लों को
तुमने पाक कह दिया
मकसद को हमारे तुमने
भी नापाक कह दिया
झाँको तुम अपने गिरेबान में
नजर आएगा कितने नापाक हो तुम
जात-धर्म की भाषा ये
सब चोचली बातें हैं ।
मजहब का भेद तो
कोई भी मजहब नही सिखाता
जितने तुम हो उतने ही
हम भी हैं इस मुल्क के
लेखिका : अर्चना