आरक्षण : एक अभिशाप या वरदान

आजकल आरक्षण का मुद्दा काफी उठ रहा है । कुछ का कहना है कि इसके वजह से देश में काबिलियत की कमी आ रही है तो कुछ का कहना है आरक्षण की वजह से शोषित वर्ग को ऊपर उठने का मौका मिल रहा है।

अभी हाल ही में हमारे पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी की बेटी किसी परीक्षा में 270 अंक पाई थी पर उनका चयन नहीं हुआ वही उनके ही नौकर जो अनुसूचित जनजाति के थे उनकी बेटी 162 अंक पाई थी उनका चयन कर लिया गया था।

इस बात से मिश्रा जी की बेटी कुछ दिनों से उदास रहने लगी और एक दिन मिश्रा जी की बेटी ने आत्मघाती कदम उठाया। ईश्वर की कृपा रही कि वह बच गई। इस बात को लेकर आरक्षण पर फिर बहस छिड़ गया कुछ संभ्रांत लोगों ने आरक्षण को अन्याय की संज्ञा दी तो वहीं कुछ का कहना था कि एक शोषित वर्ग की तुलना बड़े लोगों से नहीं की जा सकती है।

शोषित वर्ग को शिक्षा में, नौकरी में वह अवसर नहीं प्राप्त होते जो बड़े ( संभ्रांत) लोगों को नसीब होता है और उनके पास तो संसाधन भी नहीं है । ऐसे में बराबरी की बात करना बेमानी होगी। महलों में रहने वाले और झोपड़ी में रहने वाले कभी एक बराबर नहीं हो सकते।

मेरे हिसाब से अगर देखा जाए तो आरक्षण देश के लिए कलंक है पर यह भी सत्य है कि अगर आरक्षण हटा दिया जाएं तो शोषित वर्ग हमेशा के लिए दबे रह जाएंगे।

इस आरक्षण के कारण ही काबिल लोग विदेश में जाकर नौकरी कर रहे हैं और वहां के विकास में योगदान दे रहे हैं।
मेरे हिसाब से देश में आरक्षण तो रहना चाहिए पर पदोन्नति में आरक्षण को हटा देना चाहिए । क्योंकि नौकरी पाने के बाद ना कोई शोषित रह जाता है ना कोई बड़े घर का । सब एक हो जाते हैं पर आरक्षण के कारण उनमें फिर वैमनस्यता की भावना आ जाती है।

 

 नवीन मद्धेशिया

गोरखपुर, ( उत्तर प्रदेश )

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