नार परायी
नार परायी

नार परायी

( Naar Parai )

 

 

मिले हम मिले नही पर, मन से साथ रहेगे हम।
नदी के दो किनारे से पर, मन से साथ रहेगे हम।
मिलन ना अपना है ये,भाग्य विधाता ने लिखा है,
मगर हुंकार सुनो इस दिल से,मन मे साथ रहेगे हम।

 

कर्म तुम अपना आप करो हम,अपना आप करेगे।
हृदय में बसे हो तो, हर पल ही  तुमको याद करेगे।
नही  फरियाद  करेगे  हम  तुमसे , बीते लम्हों का,
मगर जब तक है देह में जान, तुम्ही से प्यार करेगे।

 

सुनो जो मिलो कही मुझसे तो,मुझे सम्हालोंगे तुम।
वचन  दो  मन को मेरे बाँध के, मुझे सम्हालोंगे तुम।
बहक ना जाए तन मन देख पुराने,दिल धडकन को,
तुम खुद को रोक के मर्यादा से, मुझे सम्हालोंगे तुम।

 

मिलन है आज आखरी, कल सें शेर परायी हूँ मै।
देख लो आज मुझे तुम, कल से नार परायी हूँ मैं।
मिलन होगा अपना फिर देह त्याग कर,पुर्नजन्म ले,
कि तब तक याद मुझे रखना कि, हार तुम्हारी हूँ मैं।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

 

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