नागपाश में गरुण | Nagpash
नागपाश में गरुण
( Nagpash me Garun )
आचार भंग करना,
आचार्यों का आचरण हुआ।
अब तो राजनीति का भी
अपराधीकरण हुआ।
वन-वन भटकें राम,
प्रत्यंचा टूटी है।
सीता की अस्मिता,
रावणों ने लूटी है।
क्षत विक्षत है,
सारा तन लक्ष्मण का,
बंधक रख दी गई,
संजीवनि बूटी है।
नागपाश में गरुण अब
विषैला वातावरण हुआ।
पतित हुये जो,
न्याय नीति के आसन से।
चिपक गये सब
सत्ता के सिंहासन से।
जो दस्यु वृत्ति धारी,
वंचक बहुवेषी,
पाते हैं सुविधा-भोग
प्रशासन से।
आज त्याग में भी,
अतृप्ति का ही अवतरण हुआ।
नेतृत्व कर रहा है
तर्पण मृगजल से।
छपे हुये वक्तव्य
भरे हैं छल से।
जिनको मनचाहा
प्राप्त नहीं हो पाया,
वे मांग रहे
आतंकवाद के बल से।
सत्य-अहिंसा का रूपान्तर,
हत्या-अपहरण हुआ।
अब तो राजनीति का भी
अपराधीकरण हुआ।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)