नहीं फूलों भरा आंगन रहा है
नहीं फूलों भरा आंगन रहा है
नहीं फूलों भरा आंगन रहा है
यहां सूखा यारों सावन रहा है
ख़ुशी के फूलों से दामन भरा कब
ग़मों से ही भरा दामन रहा है
मिली मंजिल नहीं राहें वफ़ा की
परेशां हर घड़ी बस मन रहा है
खिले खुशियों कें जीवन में नहीं गुल
उजड़ा अपना यहां गुलशन रहा है
नहीं बरसा है सावन प्यार का ही
मुहब्बत से सूखा ये तन रहा है
कि आज़म नफ़रतों की बातें उसने
मुहब्बत से भरा कब मन रहा है
️शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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