
नारी क्यों
( Nari Kyon )
हर रचना के केन्द्र बिन्दू में नारी क्यों हैं।
दिखती हैं कल्याणी पर,लाचारी क्यों हैं।
बेबस सी मजबूर दिखा दो चाहे जितना,
हर पापों का अन्त करे वो,काली क्यो हैं।
रसवन्ती कचनार दिखे,मनभावनी क्यों है।
हर पुरूषों की चाहत लगती, कामी क्यों हैं।
जैसा जिसने देखा वैसी नजर वो आती,
आंचल में हैं दूध आंखों में, पानी क्यो हैं।
नही वो पहली चाहत फिर भी आती क्यों हैं।
बेटा बेटी सम है समझ ना आती क्यो हैं।
बना दिया व्यवसाय सुधामय दामिनी है जो,
हर प्रश्नों के उत्तर में बस, नारी क्यों हैं।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )