वर्तमान समझ

( Vartman Samaj )

 

शिक्षा का विकास हुआ,समझ अधूरी रह गई
पूरे की चाहत मे ,जिंदगी अधूरी रह गई

बन गए हों कई भले ही महल अटारी चौबारे
मुराद भीतर ही मन की,दम तोड़ती रह गई

बिक गए पद,सम्मान औ प्रसंशा के मोल मे
माता स्वाभिमान की,छाती पिटती रह गई

सोच बदली विचार बदला,मानसिकता मरी
स्वार्थ की बाहों मे खुशियां समाती चली गई

कहने को रह गए,ईश्वर के दिव्य अंश भले
प्रकृति की देख दुर्दशा,प्रकृति घुटती रह गई

सूखा सागर ज्ञान का,समझ अधूरी रह गई
जलता दीया रातभर, बाती अधूरी रह गई

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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