आँखों की शरारत | Nazm Aankhon ki Shararat
आँखों की शरारत
( Aankhon ki Shararat )
तूने अभी तक मेरी मोहब्बत नहीं देखी,
मेरे इन आँखों की शरारत नहीं देखी।
नित्य आती हो ख्वाबों में तू देर रात मेरे,
मेरी इन आँखों की तूने रंगत नहीं देखी।
मैंने कितनी रातें गुजारी तेरी तन्हाई में,
मगर तूने मेरी वो मुसीबत नहीं देखी।
पहले और मिली होती ये मौसम फूल बरसाता,
पर तूने मेरी बादशाहत नहीं देखी।
टूट गया है मेरा दिल किसी आईने की तरह,
तूने मेरे जख्म-ए-जिगर की उल्फत नहीं देखी।
मैं जमाने को बदलने की कूबत रखता हूँ,
लेकिन मेरे दिल की तूने दौलत नहीं देखी।
हौसले नहीं, पर हैं टूटे, ये फिर से निकलेंगे,
अभी तक तूने मेरी काबलियत नहीं देखी।
मेरे पांव के छाले को मत देख ऐ! नाजनीन,
अभी तलक तूने मेरी रूहानियत नहीं देखी।
लोग हालात से मरने की दुआ करते हैं,
वक़्त की गर्दिश में मेरी असलियत नहीं देखी।
मत ढा कयामत अब और तू अपने हुस्न की,
लगता है तूने मेरे अंदर की ताकत नहीं देखी।
उतारा है तूने दिल में निगाह-ए-खंजर का जायका,
इस धूप-छाँव में तूने मेरी हिम्मत नहीं देखी।
हो हुस्न की तुम दरिया मेरा बदन है कितना प्यासा,
इन सूखे होंठों की तूने मासूमियत नहीं देखी।
जिस्म-ओ-जान का फासला अब अच्छा नहीं,
करूँ कैसे बयां तूने मेरी हरारत नहीं देखी।
रस्ते पे तेरे बिछा के रखा हूँ बिना काँटे का फूल,
मगर तूने मेरी रस्म-ओ-रिवायत नहीं देखी।