Nazm | मिलन ऐसा भी
मिलन ऐसा भी
( Milan Aisa Bhi )
विरह कीअग्नि में
जलती इक
प्रेयसी जैसे
धरती यह भी
निहारे है राह
प्रियतम अपने की….
सांवरा सा
सलोना सा
गहराता सा
मचलता सा
शायद आ रहा होगा
किसी इक कोने से
नभ के इस ओर या
उस छोर से…..
टकटकी लगाये
बैठी कब से
मासूमियत
चेहरे की
मायूसी में
बदलती सी
निर्मोही, निर्दयी
कब आओगे
कब छाओगे
झुलस रही काया को
छाया अपनी में कब
छुपाओगे
कंठ सूख रहा
हल्क में दिल डूब रहा
कब छलकाओगे
इक हल्की सी, मीठी सी
वो पहली फुहार
कब बरसाओगे
ज्येष्ठ, आषाढ़
तपाकर चले गये
सावन भी उसका
सांवरिया, तुम क्या
सूखा कर जाओगे
प्रीतम परदेसी
दरस दिखा जाओ
तपती दुपहरी में
घटा बन कर
छा जाओ
‘गर वो भी
रूठ गई तो
सजना
तुमसे दूर चली गई तो
किस पर बरसोगे
फिर तुम भी तरसोगे
बंजर होने से पहले
कायाकल्प कर जाओ
हे जलधर,
वीरान हो रही दिल की
बगिया को हरा भरा कर जाओ
तुम
पावस की पहली
मीठी बरसात से
तुम अपना
मिलन
पिया प्यासी इस
धरा संग कर
प्यास उसकी भी
मिटा जाओ तुम…..
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )
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