ओढ़ करके धानी चुनरिया | Odh karke
ओढ़ करके धानी चुनरिया
( Odh karke dhaani chunariya )
लय-बद्ध– जरा सामने तो आओ छलिए
ओढ़ करके ये धानी चुनरिया, धरती ने किया श्रृंगार है।
रवि किरणों से रोशन के कण-कण, कैसा सुंदर सजा संसार है।।
उमड़ घुमड़ कर बदरा छाए, अमृत रस बरसाते हैं।
प्यासी धरती निर्मल जल से, खेत खड़े लहराते हैं।।
कल कल सरिता की धार है, वो जलधि करें इंतजार है,
स्वागत में खड़ा है हलधर, कुदरत के रंग हजार है।।
ओढ़ करके धानी चुनरिया—–
नाचे मोर पपीहा गाये, कोयल गीत सुनाती है ।
रंग बिरंगे सुमन खिले हैं, लिपट लता इतराती है ।
वो भ्रमर करें गुंजार है, नव कलियां भी गुलजार है ।
ये पवन चले पुरवाई, मदहोश हुए नर नार है।।
ओढ़करके धानी चुनरिया—-
सर्दी गर्मी वर्षा से ये, मौसम बना सुहाना है।
प्रकृति से बना हुआ यह, जग का ताना-बाना है ।
पर सेवा पर उपकार है, मानव मानव से प्यार है।
जांगिड़ “वसुधा को समझे, यह अपना ही परिवार है ।।
ओढ़ करके धानी चुनरिया—-
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )