Panchtatva par kavita
Panchtatva par kavita

 पंचतत्व में मिल जाना है

( Panchtatva mein mil jana hai )

 

पंचतत्वों से बना यह हमारा शरीर,
दानव- मानव चाहें गरीब- अमीर।
इनसे बना सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ,
आकाश वायु अग्नि पृथ्वी व नीर।।

 

सृष्टि के माने गए यह पंचमहाभूत,
साफ़ स्वच्छ रखना सबको जरुर।
बंद मुट्ठी आए खुल्ली मुट्ठी जाएंगे,
एक दिन पंचतत्व में मिल जाएंगे।।

 

पंचतत्वों को आज सभी समझना,
इसी से बनी हमारी देह व आत्मा।
आकाश सबके आत्मा का वाहक,
महसूस करने हेतु साधना जरुरत।।

 

जो बना है वह बिगड़ना निश्चित है,
जो आया उस को जाना उचित है।
इस धरा पर पुतले है हम मिट्टी के,
आखिर पंचतत्व में मिल जाना है।।

 

इस पानी के बुलबुलें ‌समान है हम,
आकाश के समान है सब का मन।
जिस प्रकार यह आकाश है अनंत,
मन भी है तत्वरुप शरीर विद्यमान।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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