पाषाण हृदय कैसे हो गए | Pashan Hriday
पाषाण हृदय कैसे हो गए
( Pashan hriday kaise ho gaye )
किन सपनों ख्वाबों में खोए, क्या गहरी नींद में सो गए।
दर्द दिल का जान सके ना, पाषाण हृदय कैसे हो गए।
पहले पूछते रहते हमसे, तुम हाल-चाल सब जानते।
मन की पीर ह्रदय वेदना, शब्दों की भाषा पहचानते।
सब की खुशियों में खुश रहते, मोती लुटाते प्यार के।
सबको साथ लेकर यूं चलते, और बुलाते दुलार से।
बदल गया वो दौर सुहाना, अब हाल कैसे हो गए।
तुम पत्थर दिल नहीं थे, पाषाण हृदय कैसे हो गए।
अधरो की मुस्कान तुम्हारी, मन को मोहित कर जाती।
रस टपकाती मधुर वाणी, महफिल को महका जाती।
हर्ष खुशी भरे वो पल, आंगन सारा खिल जाता था।
इक दूजे पर जान छिड़कते, दुश्मन भी घबराता था।
बीते पल सुहाने बीती सारी बातें, इतिहासों में खो गए।
इक आहट पर दौड़े आते, पाषाण हृदय कैसे हो गए।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )