पास उसके हमारा घर होता
पास उसके हमारा घर होता
काश कुछ इस कदर बसर होता।
पास उसके हमारा घर होता ।।
काटकर पेड़ उसने रोके कहा
छांव मिलता जो इक शज़र होता।।
रतजगे मार डालेंगे अब मुझे,
यार तुम पर भी कुछ असर होता।।
जीने मरने की तो फिकर ही कहां,
जो भी होता वो भर नज़र होता।।
मेरा वीरान चमन और असबाब,
तुम जो आ जाते तो शहर होता।
दीप जलता तो जलता शेष
एक तूफान भी मगर होता।।
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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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