Ped par Kavita
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मैं पेड़ हूँ

( Main ped hoon )

 

मैं हूॅं एक जंगल का पेड़,
फैला हूँ दुनिया और देश।
निर्धन या कोई हो धनवान,
सेवा देता में सबको समान।।

जीवन सबका मुझसे चलता,
सांस सभी का मुझसे चलता।
बदले में किसी से कुछ ना लेता,
सारी उम्र सबको देता ही रहता।।

पहले मेरा जंगल था घर,
बंदर भालू सब रहते मिलकर।
आज आ गया हूँ में रोड़ पर,
किसी किसी के घर आंगन पर।।

छाया औषधि ऑक्सीजन देता,
फल-फूल मैवे रब्बड़ भी देता।
करता नही किसी से भेद,
बाँट देता मेरा अपना खेत।।

कोई मुझको चूल्हे में जलाता,
कोई दुकान मकान में लगाता।
तो कोई मुझसे फर्नीचर बनाता,
सालो-साल में चलता ही रहता।।

फिर भी काट रहें मुझे लोग,
बहुत दर्द पहुँचा रहें मुझे लोग।
मेरी पीड़ा कोई नही समझते,
रात-दिन मुझको सताते रहते।।

सब कुछ खड़ा में देखता रहता,
अपने आप को समझाते रहता।
नही मानो फिर भी तुम काटो पेड़,
एक काटो पर चार लगाओ पेड़।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

 

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