धीरे-धीरे | Poem Dhire Dhire
धीरे-धीरे
( Dhire Dhire )
धीरे-धीरे शम्मा जलती रही,
रफ्ता-रफ्ता पिंघलती रही !
दिल तड़पता रहा पल पल,
रूह रह-रह मचलती रही !
शोला-जिस्म सुलगता रहा,
शैनेः शैनेः रात ढलती रही !
ख़्वाब परवान चढ़ते रहे,
ख़्यालो में उम्र टलती रही !
धड़कने रफ्तार में थी ‘धर्म’
सांसे रुक-रुक चलती रही !!
डी के निवातिया