हंसना भी छोड़ दी मैंने | Poem hansana bhi chhod di maine
हंसना भी छोड़ दी मैंने
( Hansana bhi chhod di maine )
1. हँसना भी छोड़ दी
हँसना भी छोड़ दी मैने, रोना भी छोड़ दी मैने।
कैसे कटेगी जिन्दगी, कहना भी छोड़ दी मैने।
जिसको बनाया अपना मैने,उसके भी फायदे रहे,
जा जिन्दगी तुमे अपना,कहना भी छोड़ दी मैने।
2. उसको खबर हुई ना
उसको खबर हुई ना,मजबूरियों का किस्सा।
पूरी हुई हर ख्वाहिश, ग़म आया मेरे हिस्सा।
जिसको मिली कभी ना पावन्दियो का जिम्मा,
वो दर्द क्या बताएगा, हालात ए ग़म परिदा।
3. पहना नकाब ऐसा
पहना नकाब ऐसा, हँस कर रहा हँसता।
कमजोर शक्सियत को,सबसे रहा छुपाता।
सबने कहाँ उम्दा हैं हुंकार तेरी रौनक,
पर बेबसी को अपने, कैसे किसी बताता।
4. दर ओ दीवारे बन्द कर ली
दर ओ दीवारे बन्द कर ली, खिड़कियां भी नही खोला।
ग़मों को सीने में दफन कर ली, कोई राज नही खोला।
आँखों में समुन्दर उमड़ रहा, छलका ना कभी बोला।
थी उसकी मोहब्बत ज्यादा कि मेरी,हमने नही तौला।
5. ना मोह खत्म हो पाया है
ना मोह खत्म हो पाया है, ना प्यार ही अब रह पाया है।
सारी ही गलती चाहत का हैं, इसे कौन खत्म कर पाया हैं।
6. उलझन
तुम भी उलझन में लगते है, हम भी उलझन में है।
मौत से अब है खींचातानी, जीवन उलझन में है।
सुबह सबेरे रोज ही कोई, अपना खो जाता है,
हाल बताए किसको अपना, दिल भी उलझन में है।
7. हौसलों की उडा़न
टूटती सांसों डोरी, फिर भी है कुछ आस।
देख लेना तुम भी मेरे, हौसलों की उडा़न।
आखिरी दम तक लडे़गे,तू है जबतक पास।
तेरे संग जीने की जिद्द है, तू ही मेरी जहान।
8. दशक के बाद
दशक के बाद भी देखा तो मुझको, तुम लगे ऐसे।
कि तपती धूप में भी तुम हो,शीतल छाँव के जैसे।
दबे अरमान मेरे छलक कर, ऐसे बिखर जाते,
रूपसी षोणसी के अंग पर , यौवन खिला जैसे।
9. अजनबी
रहते है अजनबी से वो जो, दिल के करीब है।
बातें भी नही करते अब तो, बदला नसीब है।
जबतक कि बचपना रहा,हम दोनों अजी़ज थे,
जाने कहाँ बिछड गया ये, मंजर अजीब है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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