औरत | Aurat
औरत
( Aurat )
( 2 )
औरत फूलों की तरह….नाज़ुक सी होती है,
मगर…काँटों को भी पलकों से वो चुनती है,
उसके चरित्र की धज्जियां दुनिया उड़ाती है,
फिर भी.मोहब्बतों से इसको वो सजाती है,
रखी है जिसके पैरों के नीचे ख़ुदा ने जन्नत,
उठाके चरित्र पे उँगली भेजते उसपे लानत,
चलते हैं उसके दम सेही कायनातें-निजाम,
इक मुस्कान से उसके बनते हैं बिगड़े काम,
बेचैनियाँ लेकर ज़रिया-ए-सुकूं वो बनती है,
औरत अपने चरित्र से जहां रौशन करती है!
( 1 )
माँ,बीवी,बहन,बेटी,बहू,सारे किरदार अपनाती है,
इक औरत ही होती हर रिश्ता दिल से निभाती है,
बहन बन लाड उठाती है तो नखरे भी दिखाती है,
अपनी खट्टी मीठी शरारतों से घर वो चमकाती है,
बेटी बनती तो हज़ार रहमतें वो घर में ले आती है,
जब वक़्ते-रुख़सती आती सबको रुला जाती है,
बहू रुप में उतरे तो आसमां से चाँदनी उतरती है,
अपनी जगमगाती आँखों से दुनिया जगमगाती है,
उसके क़दमों में जन्नत उतरे तब, माँ कहलाती है,
अपने बच्चे के लिए जहां से तन्हा टकरा जाती है,
औरत अपने हर किरदार में ईमानदारी बरतती है,
फिर भी वो हमेशा हर रुप में आज़माई जाती है!
आश हम्द
( पटना )