Poem kache makan

कच्चे मकान बरसाती रातें | Poem kache makan

कच्चे मकान बरसाती रातें

( Kache makan barsati raatein )

 

चलो कच्चे मकानों में,
गरीबों के ठिकानों में।
बरसाती राते देखो,
उनकी जिंदगानी है।

 

छप्पर टपके पानी,
नैन टपकता नीर।
जलमग्न हो कुटिया,
भरे बस्ती में पानी है।

 

दिल पर कैसी गुजरे,
बरसाती काली रातें।
अंधियारा घट छाए,
बस्तियों की कहानी है।

 

ढह ना जाए मकान,
आशियां उजड़ रहा।
बरसात के दिनों में,
कितनी परेशानी है।

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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