होली
होली

 फागुन के दिन

( Phagun ke din )

 

फागुन  के  दिन थोडे रह गए, मन में उडे उमंग।

काम काज में मन नाहि लागे,चढा श्याम दा रंग।

 

रंग  बसन्ती  ढंग बसन्ती, तोरा अंग  बसन्ती  लागे,

ढुलमुल ढुलमुल चाल चले,तोरा संग बसन्ती लागे।

 

नयन से नयन मिला लो हमसें, बिना पलक झपकाए।

जिसका पहले पलक झपक जाए, उसको रंग लगाए।

 

बरसाने  में  राधा  नाचे, वृन्दावन मे श्याम।

अवधपुरी में सीता संग, होली खेले रघुराम।

 

काशी में शिव शम्भू नाचें, पीकर भांग गुलाब।

शेर  हृदय  में  मस्ती  छाई, नीला पीला लाल।

 

हे त्रिपुरारी अवध बिहारी, हर लो हर संताप।

ऐसी  खुंशबू  उडे रंग में, मिट जाए हर पाप।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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