
जीवन सूना तुम्हारे बिना
( Jeevan suna tumhare bina )
एक तुम ही थें हमारे प्रितम वें प्यारे,
कभी चाॅंद तारों जैसा प्रेम था हमारे।
आज जीवन सूना लगें तुम्हारे बिना,
आखिर क्यों किया तुने मुझें किनारे।।
मुझको थोड़ा समझाया ज़रुर होता,
गलती क्या थी हमारी बताया होता।
दूर रहकर तुमसे हमें बहुत अखरता,
विरह तुम्हारा अब यें सहा ना जाता।।
वापस यें आज हमसे हाथ मिलाओ,
कहां हो साहिल तुम आज बताओ।
ना पकड़कर रहो आज तुम किनारा,
फिर मेरे सपनों के राजा बन जाओ।।
आज जीवन सूना लगे तुम्हारे बिना,
अब आओ हमारे प्रितम प्यारे प्यारे।
ताक रहीं है अंखियाॅं कब से हमारी,
ऑंखों के अंधेरा छा रहा यह हमारे।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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