Poem kursi par haq

कुर्सी पर हक | Poem kursi par haq

कुर्सी पर हक

( Kursi par haq )

 

दिल जिगर को तोल रहे, खुद को बाजीगर कहते।
जनभावों संग खेल रहे हैं, मन में खोट पार्ले रहते।

 

वादों प्रलोभन में उलझा, खुद उल्लू सीधा करते।
भ्रमित रहती जनता सारी, वो अपनी जेबें भरते।

 

कलाकार कलाबाजीयां, जादूगरी जिनको आती।
नतमस्तक सारी दुनिया, उनकी चालें चल जाती।

 

दांव पेच और अटकलबाजी, से माहौल बनाते हैं।
दरियादिली दिखाकर वे, जनसेवक कहलाते हैं।

 

दिल दिमाग का खेल है, दिलों पे राज कर सकते।
राजनीति समर दिग्गज, कुर्सी सरताज बन सकते।

 

जिसने जनता के दिलों में, जो तालमेल बैठाया।
कुर्सी पे हक रहा उसी का, वही राज कर पाया।

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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