मन हो जब | Poem man ho jab
मन हो जब
( Man ho jab )
मन हो जब
खोल लेना
दरवाज़े
आंखों के
दिल के
खड़ी दिखूंगी
यूं ही
इस पार
फकीरन (जोगन) सी
हाथ फैलाए
रख देना
कुछ लफ्ज़
महोब्बत के
नफ़रत के
रख लूंगी
हाथ की लकीर समझ
बिना मोल किये
.
.
.
इंतज़ार
तो खत्म होगा…
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )