Poem maryada ki hani

मर्यादा की हानि | Poem maryada ki hani

मर्यादा की हानि

( Maryada ki hani )

 

मर्यादा में बाधा पड़ी जब आधा राम ने बाली को चोरी से मारा।
सुनो रघुनाथ अनाथ क्यूं अंगद पूछत बाली क्या पाप हमारा।।

 

कौन सी भूल भई सिय से केहीं कारण नाथ ने कानन छोड़ा।
जाई समाई गई वसुधा में श्रीराम से नेह का नाता तब तोड़ा ।।

 

रणनीति अनीति भई रण में जब एक को घेरी के दस दस मारे।
वंश का अंश बचा नहीं कोई तब पांच ही वीर सौ कौरव संहारे।।

 

कुल मान का ध्यान करें नहीं पापी बीच सभा जब खींचत सारी।
राज समाज लखे सब काज पर बोलत नाही यह कैसी लाचारी।

 

रोवत जोहत बिरना से कर जोरि के विनती करें दुखियारी ।
भगिनी की लाज बचावन को तब आई गयो श्रीकृष्ण मुरारी।।

 

नई सोच मे लोच संकोच घटे खुलापन में देखो दुनिया बौरानी ।
घूंघट के पट नारि उघारि चले भले कल आई हो घर में बहुरानी।।

 

तात और मात लजात खड़े सब देखत हौ कुछ बोलत नाहीं ।
भल नारी लचारि भले घर में अंचरा पट को झट खोलत नाहीं।।

 

लाज है आज समाज कहां सब धोवत खोवत आपन पानी ।
अंग पर तंग बसन पहिने चले नारी दहिने वर के मनमानी।।

 

मान सम्मान का ध्यान कहां जब बाप को बेटा देत है गारी।
आज समाज है जात कहां मर्यादा की सीमा जब लांघत नारी।।

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कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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