Parhit Saris Dharam Nahi Bhai
Parhit Saris Dharam Nahi Bhai

परहित सरिस धर्म नहिं भाई

( Parhit Saris Dharam Nahi Bhai )

 

 

मोहिनी मूरत हृदय समाई,
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

 

पीर हरे जाकी रघुवीरा,
तरहीं पार सिंधु के तीरा।

 

जाके घट व्यापहीं संतापा,
सुमिरन रामनाम कर जापा।

 

प्रेम सुधारस घट रघुराई,
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

 

मन मलीन इर्ष्या चतुराई,
मिटहीं न पीर होई विपदाई।

 

नाना मन विकार जो राखे,
कुमति बसई नर हृदय ताके।

 

जो सुमिरे हर पल रघुवीरा,
मिटहीं संकट मूलही पीरा।

 

बल बुद्धि यश कीर्ति निधाना,
विपद निवारे सुखद सुजाना।

 

जाके हृदय भाव दया समाई,
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

 ?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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