Poem maun bolata hai

मौन बोलता है | Poem maun bolata hai

मौन बोलता है

( Maun bolata hai )

 

कभी-कभी एक चुप्पी भी बवाल खड़ा कर देती है।
छोटी सी होती बात मगर मामला बड़ा कर देती है।

 

मौन कहीं कोई लेखनी अनकहे शब्द कह जाती है ।
जो गिरि गिराए ना गिरते प्राचीर दीवारें ढह जाती है।

 

मौन अचूक अस्त्र मानो धनुष बाण तब ही तानो।
श्वेत मतंगो का डर हो या विषधर राजा के घर हो।

 

साधु संत विद्वान भी मौन की महता पहचानते।
धाराएं विपरीत भले हो पर पार लगाना जानते‌

 

टल जाते संग्राम कई बेमौसम और हवाओं के।
मौन महकता दिलों में चमन और फिजाओं में।

 

मौन बोलता प्रीत की भाषा मिलते धैर्य शांति वहां।
अन्याय विरूद्ध कलम खड़ी हो चेतना क्रांति वहां।

 

सही समय पर चयन जरूरी मन का मौन बोलता है।
वक्त पर आवाज बुलंद हो तभी सिंहासन डोलता है।

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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