Sharad Purnima ka Chand
Sharad Purnima ka Chand

शरद पूर्णिमा का चांद

( Sharad purnima ka chand )

 

चारू चंद्र का मनोरम स्वरूप कितना सुंदर कितना प्यारा,
इसकी सुंदरता देख रहा है एकटक होकर ये जग सारा।

शरद पूर्णिमा का चांद अपनी सोलह कला दिखलाता,
मानो अंतरिक्ष के मंच पर सुंदर नृत्य सबको दिखलाता।

समूचे ब्रम्हांड में चारों ओर ये चमक चांदनी बिखराए,
जैसे अनगिनत तारों को अपने प्रकाश में ये राह दिखलाए।

आज के इस दिन चांद अमृत की बूंदें बरसाए,
इनके लिए सब अपने छत पर पकवान सजाए।

चंद्रमा के स्वागत में सब आसमान पर पलकें बिछाए,
सुंदरतम चांद के इस स्वरूप को सब शीश नवाएं।

चांद का यह सुंदर स्वरूप देख मन प्रसन्न हो जाता,
कितना निहारो इसको पर मन कभी न भर पाता।

रूप अनुपम इसकी सुंदरता सबके मन को भाए,
देख के उसकी सुंदरता को सबके मन हर्षाए।

शरद पूर्णिमा का यह पूर्ण चंद्र सबको प्रेरित करता,
अंधकार से हिम्मत न हारने की बात ये सिखलाता।।

 

रचनाकार  –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

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