अकड़ अमीरी का | Poem on akad ameeri ka
अकड़ अमीरी का
( Akad ameeri ka )
दिखाता है अकड़ वो ख़ूब ही मुझको अमीरी की!
वही उडाता मजाक मेरी बहुत यारों ग़रीबी की
मगर फ़िर भी नहीं तक़दीर बदली बदनसीबी से
इबादत की बहुत ही रोज़ मैंनें तो इलाही की
ख़ुशी के पल नहीं है जिंदगी में ही भरे मेरी
यहां तो कट रही है जिंदगी मेरी उदासी की
सूखा है तन मुहब्बत की तन्हाई से कभी तक है
नहीं बारिश हुई है यारों मौसम ए गुलाबी की
उसे कर आया हूँ इंकार दिल से ही दोस्ती को मैं
नहीं की दोस्ती मैंनें क़बूल है उस शराबी की
कर दूंगा दुश्मनों का सर कलम मैं देश कर ही
उठायी हाथों में तलवार मैंनें तो दुधारी की
कहां इंसानियत अब रह गयी आज़म दिलों में है
लड़ायी है यहां तो दौलत की ए यार चाबी की