Poem on dowry in Hindi
Poem on dowry in Hindi

दहेज

( Dahej )

 

सोना कहत सोनार से कि,गहना बना द,
और उ गहनवा से, गोरी के सजा द।

 

गोरी कहे बाबू से कि, सेनुरा दिला द,
सेनुरा के भाव बढल, माहुर मगा द।

 

दुल्हा बिकात बाटे, चौक चौराहा पे,
कैसे खरीदे कोई, भीख के कटोरा के।

 

खेतवा बिकाई बाबू ,भाई काहा जाई हो,
हमके बसा देब पर, भाई उजड जाई हो।

 

बेटी के जन्म दिहल, पाप कहलाई हो,
दुल्हा खरीदे खातिर, बाप बिक जाई हो।

 

अखियन में लोर नाही, सब सूख जाई हो,
बेटी बनी बहू त कैसे, धरम निभाई हो।

 

दू ग्राम सोना में ही, जनम बीत जाई हो,
ताग पात ढोलना संग जिन्दगी बीताई हो।

 

रामजी के जिन्दगी बा, उनके ही दुहाई बा,
धन बिन बेटी जनल, पाप के कमाई बा।

 

हूंक ले ले बाबू रोए, हुंकार जग हसाई बा।
बेटी बा दहेज.नाही, माहुर खरीदाईल बा।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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