कार्तिक पूर्णिमा का स्नान | Poem on kartik purnima
कार्तिक पूर्णिमा का स्नान
( Kartik purnima snan kavita )
पूर्णिमा से शुरु होती यह सर्दियों की रात,
अमृत बरसता है इस दिन सब पर खास।
चन्द्र और पृथ्वी इस रोज आतें है समीप,
राधे व कृष्ण ने इस दिन रचाया था रास।।
इसी उजियाली शरद पूनम वाली रात में,
अनेंक रुप बनाऍं थे गोपाल घनश्याम ने।
सब गोपियों के संग-संग झूम रहें थे ऐसे,
हर एक के साथ एक-एक कान्हा सामने।।
कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करता निहाल,
जिसमें प्रयाग राज और पुष्कर है महान।
इस दिन लगतें है मैले, मिठाइयों के ठेले,
होते पशुओं के मैले खेल-कूद नाच-गान।।
तीर्थस्थलों का पानी हिल जाता इस दिन,
रेगिस्तान के किनारे बनी है पुष्कर झील।
पाप हर लेती है इस में लगाई हुई डुबकी,
५२ घाट से निर्मित अर्धवृताकार ये झील।।
विश्व में एकमात्र तीर्थराज बह्माजी मंदिर,
करतें ध्यान, स्नान रोग-दोष होते छूमंतर।
आतें है हर वर्ष अनेंक विदेशों से सैलानी,
राजस्थानी पोशाकों में घूमतें वो सजकर।।