Poem waqt

वक्त | Poem waqt

वक्त

( Waqt )

 

वक्त से ना बड़ा कोई पहले हुआ, वक्त से ना बड़ा कोई हो पायेगा।
वक्त से कोई पहले हँस ना सका, वक्त से कोई पहले ना रो पायेगा।।

 

ना किसी के लिए रुका है कभी
ना किसी के लिए झुका है कभी
उसके अंतस में क्या है समझ न सके
ना किसी के लिए छुपा है कभी

 

ना सदा खुशियाँ लेकर के आता है वो
ना सदा गम की देता, वो सौगात है
किसके दामन में क्या खोना पाना लिखा
वक्त की तो अनोखी ही बरसात है

 

ना कोई कह सका वक्त मेरा हुआ
ना कोई कह सका वक्त तेरा हुआ
वक्त के हाथ में सारी रातें छिपी
वक्त के हाथ से ही सबेरा हुआहुआ

 

वक्त से कोई पहले पा ना सका, वक्त से कोई पहले ना खो पायेगा।
वक्त से ना बड़ा कोई पहले हुआ, वक्त से ना बड़ा कोई हो पायेगा।

🌸

कवि भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई,  छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )

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