भानुप्रिया देवी की कविताएँ
भगवान बुद्ध में
भगवान बुद्ध में दया,करुणा
कूट-कूट कर भरा हुआ था।
सबके लिए उमड़ती चिंता मन में,
सभी के कष्ट को अपना कष्ट।
इसलिए तो मृत,रोगी,वृद्ध देख
मन हुए दर्वित,दु:खी,उदासी ।
मनुष्य को इतना दुर्दशा है,
पता नहीं कब किया होगा ,
क्यों ना हम जन्म के मूल मातृत्व
का चक्कर बंधन से ही मुक्त कर
दें इस मानव समाज को,ताकि
इसे भोगना ना पड़े दर्दनाक कष्ट।
इसी मंगलकारी ज्ञान की खोज में
गृह त्याग,घनघोर तपस्या में लीन।
हृदय में सर्वहित कल्याणकारी विचार।
सबका हित कल्याण हो यही चाहते
थे भगवान बुद्ध,कोटि-कोटि नमन
भगवान स्वरूप महान पुरुष को।
देखो मन नहीं भटके
देखो मन नहीं भटके
भगवान बुद्ध बानो।
सबको ज्ञान गंगा से
नहलाओ जो कुछ है,
आपके अंदर निहित ।
अंधेरा को दूर भगाओ
ज्ञान रूपी प्रकाश से,
मिला है रवि मसाल
रूप प्रकाश हृदय में।
जगमग कर दो संसार को।
अपनी ज्योति प्रकाश से।
भटके को रहा दिखाओ,
उनके हृदय में भी ज्ञान
प्रकाश भरो,भगवान बुद्ध
जैसे सबको पकड़-पकड़
अंधकार को दूर भगाओ,
उसके हृदय में भी प्रकाश
ज्योत जलाओ,एक ज्ञान
का झिलमिल दीप जला।
जीवन में खुशियों का स्थान
जीवन में खुशियों का स्थान
खुशियों का स्थान महत्वपूर्ण ,
अनुपम,श्रेष्ठ है जिंदगी जीने में।
खुशियों की चमक से मुख
मंडल कमल सा दीप्तिमान,
चार चांद लगाती है चेहरे में।
जिंदगी नवीन लगता ताजा ,
खुशियों से मन मस्तिष्क भी
रहता स्वस्थ उमंग,तरंग से
आनंदित,हर्षित ये जीवन
बाहरी नकारात्मकता बाहर
ही मचाती तांडव,हृदय स्वस्थ ।
खुशियां हमारी जीवन रेखा।
एक जरा तस्वीर लेते समय
मुस्कुराती सो सुंदर तस्वीर।
अगर हम सदा मुस्कुराए तो,
जीवन का तस्वीर ही बदल।
भगवान बुद्ध
सत्य धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध
गौतम बुद्ध का पदार्पण ईसवी पूर्व 563 में,
नेपाल की तराई कपिलवस्तु लुंबिनी में,
माया देवी गर्व से,पिता सुदोधन शाक्य मुनि
मुखिया,बुद्धजी की बचपन का नाम सिद्धार्थ।
जब गर्भ में ज्योतिष भविष्यवाणी बालक
बनेगा महान योगी,ज्ञान की खोज में निरंतर।
जन्म के सातवें दिन माताजी स्वर्ग सिधार ,
विमाता मौसी गौतमीजी लालन-पालन।
16 वर्ष की अवस्था में शादी सुंदर कन्या यशोधरा से।
जिससे एक पुत्र रत्न उत्पन्न नाम राहुल ,
एक दिन कपिलवस्तु की शेर पर वहीं दर्शन बूढ़ा,
बीमार,शव,सन्यासी जिससे सिद्धार्थ का मन विचलित।
मनुष्यों को इतना तरह का दशा,तब से रहने लगा उदास।
इसके निराकरण कैसे,मन में भाति-भांति प्रश्न,एक दिन
मध्य रात्रि घर छोड़ सोए पत्नी,बच्चे,राज परिवार त्याग।
वैशाली में मुलाकात साख्य दर्शन ज्ञाता अलारकलाम,
प्रथम गुरु भगवान बुद्ध दर्शन की शिक्षा उन्हीं से।
तत्पश्चात उरूबेला में भी पांच साधक मुलाकात
कुछ दिन उन्हीं लोगों के संगती में व्यतीत,
फिर बिना अन्न जल की 6 वर्षों तक कठोर तप,35
वर्ष अवस्था में निरंजना नदी किनारे प्राप्त ज्ञान।
एक पीपल वृक्ष नीचे जो आज बुद्ध वृक्ष संज्ञा से विभूषित ।
अब वह सिद्धार्थ से बन भगवान बुद्ध।
पहले शिक्षा सारनाथ में,जनसाधारण पाली भाषा में,
अष्टांगिक मार्ग चल प्राप्त कर निर्वाण
अर्थात जन्म-मरण चक्र से मुक्त आत्मा को।
भानु प्रिया देवी
बाबा बैजनाथ धाम देवघर