Prabhu tum Aaye

प्रभु तुम आए

( Prabhu tum aaye ) 

 

प्रभु तुम आए ,
दीन हीन बनकर ,
हमारे द्वार,
मैंने तुझे दुत्कारा ,
जलील किया,
तुम कुछ ना बोले ,
मेरी सारी नादानियों को,
सहते रहे,
फिर लौट गये।
मैं मंदिरों में ,
तुझे ढूंढता रहा,
परंतु
मंदिर के बाहर,
कोढी का रूप रखकर ,
तुम बैठे रहे,
मुझे जाते हुए
अपलक निहारते रहे
फिर मैं धोखा खा गया ,
तुम्हें पहचान न सका।
प्रभु फिर तुम आए
भंगी का रूप धर कर
सिर पर गंदे कूड़ा रखें ,
मैं तुझे दूर से देखकर ही,
नाक पर कपड़े रख लिए
बगल हटकर ,
दूसरा मार्ग पकड़ लिया
तेरी मोहनी मूरत,
देख ना सका
एक बार फिर,
कृपा की आपने ,
बनकर कसाई रूप में ,
मांस बेचते दिखे,
मैं मांस को देखकर
नांक भौं सिकोड़ता,
रास्ता बदल लिया,।
फिर बाल रूप में,
आए प्रभुवर तुम ,
मैं अकेले ही सारे,
मालपुआ खाता रहा ,
तुम मेरी ओर ,
अपलक निहारते रहे,
कि काश,
मुझे भी कुछ खाने को देते।
मैं अभागा ,
तेरी कृपा को ,
समझ नहीं सका,
तुम बार-बार आते रहे,
मैं दुत्कारता रहा ,
मैं यह नहीं समझ सका कि,
दीन हीन कोढ़ी भंगी,
कसाई और बाल रूप में,
तुम्ही थे,
प्रभु तुम्ही थे।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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