प्राची अमर उजाला है | Prachi Amar Ujala Hai
प्राची अमर उजाला है
( Prachi Amar Ujala Hai )
संसार प्रकृति के नियमों के अधीन है l
और परिवर्तन एक नियम है l
शरीर तो मात्र एक साधन है l
आज इसका है ,
तो कल उसका है l
ओ मेरी भारत की बेटी l
क्या सोचा था ? क्या होगया ?
तुझे प्रतिभा का दर्पण नहीं ,
प्रतिभा की उमँग बनना था l
जन्म देनेवाले दुखी है ,
ज्ञान देनेवाले निशब्द है l
मित्र – संबंधी स्तब्ध है l
ओ मेरी भारत की बेटी l
क्या सोचा था ? क्या होगया ?
झिझक उठे ” माता – पिता के स्वपन l
ठिठक कर रह गई ” शिक्ष कल्पना l
भारत के आँगन पर निछावर ,
ंज्ञान ने कहा , मैं बीता पल नहीं l
मैं भविष्य का कण – कण हूँ ll
ओ मेरी भारत की बेटी ll
क्या सोचा था , क्या होगया ?
नमन करूँ , या स्मरण करूँ l
अतएव अलविदा करूँ l
सुन , मेरे भारत के प्रतीक ,
फिर नया जन्म लेकर l
लौट आ दीप ज्ञान बन कर l
ओ मेरी भारत की बेटी l
क्या सोचा था ? क्या होगया ?
वाहिद खान पेंडारी
( हिंदी : प्राध्यापक ) उपनाम : जय हिंद
Tungal School of Basic & Applied Sciences , Jamkhandi
Karnataka
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