प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार
प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार
( 2222 2222 222 )
निर्मल गंगा सी धारा तुम बहती हो
शबनम के मोती जैसी तुम लगती हो
चंद्रप्रभा रातों की सुंदरता में तुम
आँचल बन कर फैली नभ में दिखती हो
यूँ लगता है जैसे ऊँचे परबत से
कल-कल करती झरने जैसी बहती हो
फूलों की कोमल पंखुड़ियों के जैसे
भँवरे की प्रीती की गाथा कहती हो
सागर सी गहराई आँखों में धारे
लहरों जैसी मचली मचली रहती हो
साजन के आने की सुन कर पगली सी
चहरे पर मुस्कान सजाती रहती हो
हिरणी जैसी चाल दिखाती हो जग में
कस्तूरी की गंध लुटाती फिरती हो
सुमंगला सुमन
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