Pushp par Kavita
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पुष्प की अभिलाषा

( Pushp ki abhilasha ) 

 

मै हूँ एक छोटा सा यह फूल,
निकल आता पौधे पर फूल।
पहले होता में बाग व बग़ीचे,
आज लगाते घर गमले बग़ीचे।।

मैं एक फूल अकेला हूँ ऐसा,
खिलते तोड़ लिया मुझे जाता।
वन माली मुझको पानी है देता,
खाद और रखवाली भी करता।।

कभी-कभी टूटने से बच जाता,
और फिर बीज में बन जाता।
जिससे फिर एक पौधा बनता,
और मेरा वंश आगे को बढ़ता।।

आज धन्य में हो गया ईश्वर,
हर जन्म मुझे पुष्प ही बनाना।
सुबह २ आपके शरण में आता,
आपके चरण पखारे फिर जाता।।

सिर में लगाते गजरा सजाके,
कोई मुझे क्रिया क्रम में लगाते।
कोई बधाई में भेट मुझे करता,
कोई विवाह के मंडप सजाता।।

सबसे बड़ी खुशी मुझे मिलती,
शहीदों के सम्मान काम आता।
एक अभिलाषा पढ़ी फूल पर,
आज उदय फिर लिखे पुष्प पर।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

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