प्यास बुझे तो बुझे कैसे | Pyaas bujhe to bujhe kaise | Kavita
प्यास बुझे तो बुझे कैसे
( Pyaas bujhe to bujhe kaise )
प्यास बुझे तो बुझे कैसे ,
जो आग लगी है पानी से।
मर रहा इंसानियत यहां,
धर्म मजहब की कहानी से।
रो-रो के जिंदा है परिंदा,
अपनी आंखों के पानी से।
घर का बुजुर्ग शर्मिंदा है,
अपने बच्चों की जवानी से।
कवि – धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218
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