छोड़ो कल की बातें
छोड़ो कल की बातें

छोड़ो कल की बातें

( Chhodo Kal Ki Baatein )

 

छोड़ो कल की बातें

जल्दी से संभालो अपना आज;

क्योंकि इसी में छिपे हैं-

तुम्हारी सफलता के सारे राज

छोड़ो कल की बातें ।

 

कल क्या हुआ, कल क्या होगा

इसकी क्यों करते हो फ़िक्र ?

वर्तमान में जो लक्ष्य दिखता

उस तक जाने की पकड़ो डगर ।

छोड़ो कल की बातें ।

 

हर लम्हे को खुल कर जिओ

पता नहीं कल क्या हो जाए;

जो अधूरी इच्छाएँ रह गई हैं

धीरे-2 सबको पूरी कर दिखलाए ।

छोड़ो कल की बातें ।

 

इस भागदौड़ भरे जीवन में

चुपके से अपने भीतर भी झाँकिए;

बहुत से लोगों को क़ैद पाओगे

ज़रा उनके व्यक्तित्व को भी पहचानिए ।

छोड़ो कल की बातें ।

 

कुछ दिन काम से छुट्टी लेकर

परिवार-दोस्तों के साथ समय गुज़ारे;

खेले-कूदे, खुलकर मौज-मस्ती करें

अपने बिगड़े-संबंधों को सुधारे ।

छोड़ो कल की बातें ।

 

आज से नए उद्देश्य तैयार करो

छोड़ो पुरानी ग़लतियों का झमेला ;

आज-अभी को जीभर के जी लो

ना जाने कब बिछड़ जाए यह मेला ।

छोड़ो कल की बातें ।

 

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कवि : संदीप कटारिया

(करनाल ,हरियाणा)

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