प्यार तेरे शहर का | Pyar Tere Shehar ka
प्यार तेरे शहर का
( Pyar tere shehar ka )
रोग बनकर रह गया प्यार तेरे शहर का।
संस्कार ले डूबा कैसा खुमार जहर सा।
चलन ये फैशन का कैसे हुए परिधान।
शर्म लज्जा ताक पर रख चला इंसान।
विलासिता में डूबी बहती हवाएं सारी।
भोग विलास में लिप्त है चार दीवारी।
संस्कृति हनन हुआ देख दशा तेरे शहर की।
एक वो दौर था बहारें भाती तेरे शहर की।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )