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हौसलों काळजिया म | Rajasthani Kavita

हौसलों काळजिया म

हौसलों काळजै भर कै
धीरज मनड़ा मै धर कै
मोरचा मै उतरणो है
सुरमां रणयोद्धा बण कै

 

दण्ड बैठक कसरत
योग सारो बचावै है
भौतिकवाद घणों बेगो
मुश्किलां लाख ल्यावै है

 

कहर कुदरत को बरस्यो
दवा कुदरत ही देसी
ठगोरा जगां जगां बैठ्या
जीवन री पूंजी ठग लेसी

 

मौत सूं भय नहीं खाणो
भोर म बेगो जाग ज्याणो
गायां री सेवा कर आनंद
पंछी न गेरो फिर दांणो

 

इज्जत बड़ा बढ़ेरा री
बुजुर्गां रो आशीष पाणो
बतलाळण भायां री कठै
कठै गयो संस्कार स्याणो

 

खेतां री पाळा सुख देती
बागां रा झूला आनंद घणो
मिसरी घुळती बातां म
कठै गयो बो मिनखपणो

?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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https://www.thesahitya.com/lakshya-ka-sandhan-kar/

 

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