मिनखपणो पिछाणो | Rajasthani poem
मिनखपणो पिछाणो
( Rajasthani kavita )
मुंडो देख र टीकों काढै
गांठ सारूं मनुवार करै।
घर हाळा सूं परै रवै और
गांवा रा सत्कार करै।।
मीठी-मीठी मिसरी घोळे
बातां सूं रस टपकावै।
टोळ गुढ़ावै घणी मोकळी
मतळब खातर झूक ज्यावै।।
माळा टूटी अपणेस री
भायां री बातां लागै खारी।
मेळ जोळ स्वारथ रा होग्या
कहबां म रिश्तेदारी।।
बण्या ठण्या फिरै चोखटां
चौधराई करता हाण्डै
भलै घरां रा आछ्या टाबर
चोकां माय कैयां टाण्डै।।
सगळो खेल तकदीरां रो
मजूर घणो पसीनों ब्हावै है।
ऊपर हाळो भरै भरया न
और रीता ने परै रखावै है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )