चांद पर जमीन
चांद पर जमीन

चांद पर जमीन

( Chand Par Zameen )

चचा !
बिकने लगा है
चांद पर जमीन
लोग खरीदने भी लगे हैं।
जाकर देखा नहीं वहां,
नीचे से तो दिखता है बस आसमां;
अखबार में पढ़ा।
पढ़ खरीदने का ख्याल मन में आया,
चचा के दरबार में भागते चला आया।
कुछ मशविरा दीजिए,
लीजिए अखबार आप भी पढ़ लीजिए।
हो जाएं मुतमईन तो सुझाएं!
क्या हम करें क्या ना करें?
कितना विश्वास इस विज्ञापन पर करें?
प्लाट चांद पर खरीद लें?
लोभ मन में है आया ,
चचा ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराया;
जाकर अपनी पत्नी से सलाह ले भाया!
वही सुझाएगी,
तुझे राह दिखाएगी;
जो मैं कुछ कहूं तो डपटने मुझे भी आएगी!
पूछा घर आकर,
प्लाट बिक रहा है चांद पर।
खरीद लें?
चिल्लाकर बोली वो,
निहायत ही बेवकूफ आदमी हो!
जमीन की तो जमीन खिसकते जा रही है,
चांद पर खरीदने की फितूर छा रही है?
पुरखे की जमीन बाउंड्री तक न हो पा रही है,
वहां कैसे होगी?
कोई कब्जा लेगा तो?
देखने कौन जाएगा?
क्या मुकदमा भी लड़ेंगे चांद पर?
मेरा यकीन करें,सबसे सुंदर है यही अपना घर।
मिल भी जाए,तो कौन जाएगा वहां पानी पटाने?
सोचा है कभी?
आए हैं बड़ी चांद पर आशियां बनाने !
देखिए मुझे !
दो साल हो गए हैं-गए मां के घर,
सोचिए न ज्यादा इधर उधर।
छोड़ें चांद…लें चाय ,
हमें नहीं करनी हाय हाय।
धरती की देखिए,
यहीं बाउंड्री करवाइए;
ख्वाब चांद का न दिखाइए।
हम बड़े आदमी नहीं
मिडिल क्लास वाले हैं
सोच भी वैसी ही है
हमें चांद नहीं चाय की जरूरत है
भूख मिटे गृहस्थी चले वही सबकुछ है।

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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