राजेंद्र रुंगटा

योग से लाभ और हानि

दिया पतंजलि ने,
योग ज्ञान-विज्ञान l
क्यों भूला बैठा उसे
विषय भोगी इंसान ?

ऋषि-मुनियों का
मानो तुम एहसान l
एक सूत्र में बांधकर
जग को परोसा ज्ञान l

आओ भोर-सकाले
करें योग-प्राणायाम l
निर्मल,शीतल वायु का
करें हम अमृत पान l

हजार रोगों की
है एक दवाई l
नियमित योग
तुम करो भाई l

योग से सबकी भलाई
पैसा बचाये पाई-पाई l
महिमा इसकी अति भारी
मनन करें सब नर-नारी l

डॉक्टर को ये दूर भगाए
तन-मन कांतिमय हो जाए l
योग मुझे है अति भाया
निरोगी-सुखी रहे काया l

करें योग रहें निरोग
आएं रोज भगाए रोग l
योग करने जाओगे
निरोगी काया पाओगे
अपने परिवार को
खुशहाल बनाओगे l

इश्क खुद से

छोड़ा जमाने का
झूठा माया ,मोह ,प्रपंच l
हर कदम अपनों ने
मारे कपटी पंच l

अपनों ने भोंके
खंजर छाती में l
अपनों ने बांधी
जंजीरें कदमों में l

टूटा हौसला
इन गहरे घावों से l
निकली आहे
इस टूटे दिल से l

रोते दिल ने
छोड़ी जग से प्रीत l
इन कड़वे सबको ने
सिखा दी नई रीत l

अब बांधी डोरी
इश्क खुद से करने की l
अपने लिए ही जिऊंगा
इश्क खुद से ही करूंगा l

अपने लिए ही जिऊंगा
अपने लिए ही मारुंगा
खुद का इश्क खुद से
ही करूंगा l

अपने में मस्त रहूंगा
अपने आप में खुश रहूंगा
खुद का इश्क खुद से ही करूंगा l

Rajendra Rungta

राजेंद्र कुमार रुंगटा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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