राजेंद्र रुंगटा

राजेंद्र रुंगटा की कविताएं | Rajendra Rungta Hindi Poetry

विषय सूची

अरे ओ हरजाई

अरे ओ हरजाई
तू कहाँ से
टपका भाई l
अरे ओ मोबाइल,
अरे ओ मोबाइल l

आजा रे बचपन
तुझको पुकारे
ये सूने मैदान l
उदास खड़े
गिल्ली-डंडा l
उखड़ गए
मैदानों से झंडा l

आँसू टपकाते
पेड़ खड़े
“आती पाती
जाओ लाओ
नीम की पाती”
बोल का शोर
ना सुनाई पड़े l

धूल न उड़े
कबड्डी के
मैदानों में।
कहीं पाला
ना सजे,
तु~तु के बोल
बिसर पड़े l

पिचकी फुटबाल
आलू-सा
मुंह बना के
कोने में पड़ा।
मैदानों में
कचरे के
अंबार पड़े l

अरे मोबाइल
तेरा बुरा हो जाए
खाया तूने बचपन
ओर खायी आँखें।
दे मोटापा
बे~डौल बनाया
बीमारी दी इनाम में।
अरे मोबाइल
तेरा बुरा हो जाए l

बच्चों की बातें छोड़ो
बड़ों का और बुरा हाल l
बाइक चलाते
मोबाइल चलाएँ
मेरे अनोखे लाल l
मेरे देश का
क्या होगा हाल l
हे ईश्वर तू ही
सब हाल संभाल l

अरे ओ मोबाइल
तू बड़ा हरजाई l ~~ टेर

ईश्वर से बड़ी हस्ती
~~~~

कन्या पिता महान
देता तुझको दान l

तू याचक वो दाता
दिया कन्या दान l

छंटे घर का अंधेरा
आगे वंश चले तेरा

घर लक्ष्मी आई
तेरा मान बढ़ाई l

दे बेटी रखा मान
कीमत उसकी जान l

बन लक्ष्मी आती है
तेरा वंश चलाती है l

उसके आने से भाई
तेरे घर रौनक छाई l

बेटी के बाप को
क्यों जाने बेचारा l

इस महादानी ने
तेरा कुल उबारा l

इस दान दाता की है
ईश्वर से बड़ी हस्ती l

बात यह दुनिया
क्यों नहीं समझती l

कन्या पिता महान
देता तुझको दान l

सफर नामा

~~~
ना रूकती है,
ना थकती है l
नखरे करती है
खूब मचलती है l
हौले~हौले
वह चलती है।
मंथर गति से
वह चलती ही
रहती है l
ना रूकती है,
ना थकती है l

राह अंधेरी से
वह गुजरती है l
ठोकर लगती है
उठती-गिरती है।
प्रबल वेग
तूफानों का,
वह सीने में
थामे रखती है l
ना थकती है
ना रूकती है l

मोड़ मिले
अंधी राहो में l
रह दुरुस्त
वो चलती है l
अपनी पर
आ जाए तो l
सब कुछ वह
हर लेती है l
देती है तो
ऐसा देती है,
सबकी झोली
भर देती है l
ना थकती है,
ना रूकती है l

ना तेरी सुनती
ना मेरी सुनती l
ढीठ बड़ी
मनमर्जी करती है l
जगा लौ आशा की,
मंजिल पाने का
दम भरती है l
जनाब यह जिंदगी है,
कर यूँ ही अभिनय
गुजर-बसर करती है
ना थकती है,
ना रुकती है l
यह जिंदगी है
यूं ही चलती है,
यूं ही चलती है।
ना थकती है,
ना रूकती है।

मन

मन की महिमा अपरिमित,मन मानव की शक्ति।
हृदय बसे नँदलाल हैं,यही चरम अनुरक्ति।।

आगे-आगे राम हैं,पदचिन्हों को देख।
पीछे-पीछे भक्ति है,सँग किस्मत की रेख।।

भक्ति और अनुराग का,रहा हृदय से मेल।
बन गृहस्थ तूँ जनक-सा,दोनों पारी खेल।।

हँसते-रोते बीतते,जीवन के दिन रात।
कभी अँधेरा है घना,या फिर नवल प्रभात।।

हँसते हुए बिताइए,जीवन के दिन चार।
पलक झपकते बीतता,मानव कष्ट अपार।

जूठन पर क्यों पल रहा,स्वेद-शक्ति पहचान।
स्वाभिमान को मार कर,जीने की मत ठान।

आया है संसार में,हर गुण लेकर साथ।
वरद-हस्त है राम का,उन्हें नवा तूँ माथ।

श्रम करना सीखा नहीं,सिर्फ़ बढ़ाया तोंद।
बैठे-बैठे खा रहा,फँस आमोद-प्रमोद।।

सुखद समय नवरात्रि का,माता का है पर्व।
व्रत-पूजन-आराधना,यही हमारा गर्व।

कण-कण में श्रीराम हैं ( दोहे )

कण-कण में श्रीराम हैं,मन में रख विश्वास।
मानव मन संशय करे,बन माया का ग्रास।

हर घर में माता-पिता,बच्चों के भगवान।
गहन आस्था हृदय में,रख लें यदि संतान।

ढूंढ-ढूंढ कर थक गया,मिला न परमानंद।
पुरखों का अपमान क्यों,करता मन स्वच्छन्द।

जन्म दिया,पालन किया,दिया दूध फिर अन्न।
मातु-पिता सर्वस्व हैं,रखना उन्हें प्रसन्न।

माता-पिता सतत दिये,कठिन समय में साथ।
यदि कृतज्ञ संतान हो,नित्य नवाये माथ।

समय अगर साथी रहा,भाग्य हुआ अनुकूल।
पथ के काँटे नष्ट हो,खिलें सुगंधित फूल।

हो प्रताप-सा पुत्र यदि,उदय हुए जब तात।
तब निश्चित ही जानिए,होगा नवल प्रभात।

धूप ढल गया,आ गई,पुनः सुहानी शाम।
सुख-दुख आते समय पर,जीवन इसका नाम।

मानव-मन क्यों चाहता,बन जाए भगवान।
मानव मानव ही रहे,यह उसका सम्मान।

ए जिंदगी आना

फुर्सत मिले कभी
तो ऐ जिंदगी आना l
कुछ अपनी कहना
कुछ मेरी सुन जाना l
फुर्सत मिले कभी
तो ए जिंदगी आना l

ए जिंदगी,
तू चली अपनी मर्जी से।
ना जानी कभी मेरी मर्जी,
हाल हमारा न पूछा जाना।
सब काम किया मनमाना l
फुर्सत मिले कभी
तो ऐ जिंदगी आना l

ए जिंदगी
तू चली अपनी चाल l
न शिकवा-गिला किया,
हर पल बहुत छकाया।
झांसे में तेरे न मैं आया l
कभी फुर्सत मिले तो,
ए जिंदगी आना l

ए जिंदगी
तूने बहुत दौड़ दौड़ाया,
मैं दौड़ में आगे आया l
तुझ से न मानी हार,
सदैव ठानी तुझे से रार l
फुर्सत मिले कभी
तो ए जिंदगी आना

अब थक गई होगी,
थकने मैं भी लगा।
अब कर कुछ विश्राम,
मैं भी कर लू आराम।
पल दो पल सुख से रह,
मुझको चैन से जीने दे।
फुर्सत मिले कभी
तो ऐ जिंदगी आना l

हे महाकुंभ

जिसकी जैसी कामना,पाया वह भरपूर।
शरणागत हर जीव है,भक्ति भाव से चूर।

धन-दौलत-यश सब मिला, मिला मान-सम्मान।
महाकुंभ शत-शत नमन,जय भोले भगवान।

जिसने अवगाहन किया,उन्हें नहीं कुछ रोग।
है चौवालिस एक सौ,वर्ष बाद संयोग।

जिसने की सेवा यहाँ,बैठाया जो नाव।
वह करोड़पति हो गया,यह है सुखद प्रभाव।

धन्य त्रिवेणी-घाट है,तीरथराज प्रयाग।
सबको सब-कुछ है मिला,जिसका जितना भाग।

गमनागमन सहज हुआ,पहुँचे सभी प्रयाग।
मन अति पावन है हुआ,तन के छूटे दाग।

सत्य-सनातन धर्म है,सब धर्मों का सार।
जीवन का जो लक्ष्य है,यह उसका विस्तार।

तेरी मेरी बाते

~~~~
जीवन भटकन से भरा,
हाथ लगा ना छोर।
किस्मत सदा दगा करे,
है ये उल्टी सोच।।

होनी करे निराश क्यों,
मन में रख विश्वास।
भाग्य लिखा होगा वही,
चित्त न रहे उदास।।

होनी तो होकर रहे
टाल सका ना कोय l
मानव कभी नशीब से,
छुटकारा ना होय।।

अपने कर्मों से उठा,
जीवन में तूफान।
यही दिलाता मान है,
यही करे अपमान।।

भाग्य राम ने ही चुना,
तब पाया वनवास।
सिंहासन ठुकरा दिया,
फिर भी मन उल्लास।।

आकर्षण ही आकर्षित करता है –( गीत )

आकर्षक ही आकर्षित करता है।
भावी खुशियों को चिन्हित करता है।

आकर्षण से ही निर्धारित लक्ष्य।
यही सुनिश्चित करता पथ अनुगम्य।
कर्म-योग को यह निश्चित करता है।
भावी खुशियों को चिन्हित करता है — (01)

आकर्षण पर बलिहारी संसार।
आकर्षण ही है कर्मों का सार।
सफल व्यक्ति को यह गर्वित करता है।
भावी खुशियों को चिन्हित करता है — (02)

आकर्षण से बँधा हुआ हर व्यक्ति।
आकर्षण से ही चालित हर शक्ति।
सुप्त हृदय को यह जागृत करता है।
भावी खुशियों को चिन्हित करता है — (03)

आकर्षक हैं भानु महा बलशाली।
नमन कीजिए भर दें झोली खाली।
त्रिभुवन दिनमणि को वंदित करता है।
भावी खुशियों को चिन्हित करता है — (04

देश प्रेमी


देश प्रेम का भाव प्रबल है,
अवनि और अम्बर के तल है।
मिलती गयी सफलता ऐसी,
सुरभित जल-थल-वन-अंचल है।

मातु-पिता के चरणों में सुख,
चित्र देखिए यदि ना सम्मुख।
नमन पूर्वजों को करते जो,
मिट जाता उनका है सब दुख।

दुखियों का दुख दूर कीजिए,
भूखों को आमंत्रित करिए।
अन्न और जल से स्वागत कर,
मान और सम्मान दीजिए।

शौर्य शम्भु-शिव का कुछ जानो,
सत्य-सनातन को पहचानो।
युगों-युगों से जग-वंदित जो,
अपने देवों को ही मानो।

आस्तीन में सर्प पल रहे,
स्वाभिमान को हैं निगल रहे।
खाकर पत्तल छेद रहे जो,
वे आँखों को रोज छल रहे।

एक लक्ष्य पर साध निशाना,
उसी दिशा में बढ़ते जाना।
वैभव के सब शिखर यहीं पर,
जिसने देखा वह पहचाना।

मेरे सिर माँ का आँचल है,
देश-प्रेम का भाव प्रबल है।
देश-प्रेम का भाव प्रबल है।।

चढ़ा नशा भरी

देश प्रेम का चढ़ा नशा,
पवन झकोरों से कर ली यारी l
बिछती गई सफलताएं
फिर कदमों में बारी-बारी l

खुले नयन से यह जाना
मात पिता के चरणों में
दुनिया भर की खुशियां
और प्यार का खुला खजाना l

देश प्रेम का चढ़ा नशा भारी
दुख देख दीन-दुखियों का
इनकी सेवा का मन में भाव।
प्रभु चरणों में मिले ठिकाना
हर दिल में हो मेरा समाव।

देश प्रेम का चढ़ा नशा भारी
सूर-वीर प्रताप ,शिवाजी,
शिव-शंभू को है जाना l
सनातन सेवा में खप जाए
जीवन का सारा तानाबाना।

देश प्रेम का चढ़ा नशा भारी
देख आस्तीन के सांपों को
रोम-रोम से फूटे चिंगारी।
किया धारण केसरिया
शीश चढ़ाऊँ अपनी बारी।

देश प्रेम का चढ़ा नशा भारी
पवन झकोरों से कर ली यारी

एक लक्ष्य पर साधा निशाना
तोड़ता तटबंधों का सभी ठिकाना।
हमको हिंदी-हिन्दू की है
जग में अलख जगाना।
पूरी दुनिया में है हमको यारों
हिंदू राष्ट्र की ज्योति जलाना ।

देश प्रेम का चढ़ा नशा भारी
पवन झकोरों से कर ली यारी l

लौट पुनः ना आया

बीत गया वह बीत गया
अब काहे का पछतावा l
जो लौट पुनः ना आया l

पल बीता वह बीत गया
अब काहे का पछतावा
जो लौट पुनः ना आया l

बीता बचपन यादें बाकी
अब काहे का पछतावा
जो लौट पुनः ना आया l

यौवन स्वर्णिम है बीत गया
अब काहे का पछतावा
जो लौट पुनः ना आया l

सुख सारा छोड़ चला मुख
अब काहे का पछतावा
जो लौट पुनः ना आया l

छोड़ चल दिए मात~पिता
उजर नहीं कुछ कर पाया।
उनको फिर देख न पाया l

क्यों हाथ मला,सर धुनता
कुछ भी उखाड़ ना पाया।
अब क्यों करे पछतावा l
जो लौट पुनः ना आया l

जी भर जी ले
मस्ती में जी ले
अरर जी ले जी ले
मस्ती में जी ले

अब करना मत पछतावा
चला गया वह चला गया
जो लौट पुनः ना आया।

मेरी भाभी

मेरी भाभी गोल-मटोल
जैसे फुटबॉल गोल~गोल l

बोले मीठे~मीठे बोल
बातें बोले नाप-तौल l

जी भरके वो दुलारती
माँ सी ममता लुटाती l

चुटकी भर प्यार लुटाए
भैया से लड़-लड़ जाए l

नए-नए पकवान खिलाए
मेरे नाज-नखरे उठाये l

मीठी मीठी झड़की लगाए
कभी कान पकड़ समझाए l

मेरी गलतियों को छुपाती
भैया की डांट से बचाती l

मेरी भाभी मात सामान
नित्य देती नया ज्ञान l

कैसे बचे मेरा देश


मेरे देश का क्या होगा अंजाम
अब तुम ही बचाओ प्रभु श्रीराम l

देखा सुना है हर काल
सिक्के ढलते हैं टकसाल l
अब नित्य नए आविष्कार
डालो आलू सोना तैयार।

देश में हो रहा अजब तमाशा
जो पा जाये वो खाए बताशा

झूठ के बैठे तीन मिसाल
राहुल ,अखिलेश, केजरीवाल l

लंपट झूठेवादे गढ़ते
अपनी-अपनी झोली भरते

अपने आप को हीरो मानें
जनता उनको जीरो जानेl

मेरे देश का क्या होगा अंजाम
तुम ही बचाओ प्रभु श्रीराम l

कोई लौटा दे बचपन

खो गया मेरा बचपन
कोई तो ढूंढ लाओ l
नहीं जीना कंटक-जीवन
मेरा बचपन लौटाओ l

रात अंधेरी रातों में
बिस्तर में बैठे-बैठे
खेलअंत्याक्षरी यारों
हम सो जाया करते थे ।

कंधे में बस्ता टांगकर
स्लेट ले जाया करते थे।
स्कूल हमेशा जल्दी जाते
पर पिटाई खाया कराते थे।

स्लेट मिटाने पानी की पोटली
हमें खुद ले जानी पड़ती थी ।
कान पकड़कर रोज रोज हमें
उठक-बैठक लगानी पड़ती थी।

फिकर नहीं थी तन-मन में
ना थी खाने-पीने की चिंता।
कूद-फांद के खेल निराले
छुट्टी पर सब खेला करते थे।

आंख मूंद ,जोड़ दोनों हाथ
कक्षा में गीत गया करते थे l
शाम को छुट्टी की बजे घंटी
दौड़ के घर जाया करते थे l

घर में फेंक पुस्तक बस्ता
बाहर धूम मचाया करते थे l
कंचा ,गुल्ली-डंडा और
सतख़प्पड़ी गिराया करते थे।

दोस्तों के घर बीते दुपहरिया
पानी पीकर खेले चोर सिपाही l
उनके घर सो जाया करते थे l
चिंता ना फिकर ,मस्ती भरा
जीवन जिया करते थे l
कहां आ गए दुनियादारी में
हमारा बचपन ही अच्छा था

कहां खो गया मेरा बचपन
कोई तो ढूंढ के ला दो l
ना चाहूं कंटक वाला जीवन
मुझको मेरा बचपन लौटा दो l

चौंकडिया

जब संकट सिर पर आ जाए,
रखना तुम प्रभु पर विश्वास।
सबका मंगल करने वाले,
कभी नहीं तोड़ेंगे आस।

काँटे लाख फेंकते पथ पर,
भटकाने का करें प्रयास।
कपटी-ढोंगी लाख मिलेंगे,
बिन कारण करते उपहास।

नीति-नियम से चलने वाला,
बाधाओं को करता पार।
नहीं पराजित वह होता है,
दुश्मन उससे जाते हार।

छल-बल क्षणिक सफल होता है,
खुल जाता है उसका भेद।
श्रम करता सब सौंप राम को,
व्यर्थ नहीं होता वह स्वेद।

शुभ कर्मों का फल शुभ होता,
मगर कुकर्मी पल-पल रोता।
धर्म-ध्वजा लेकर जो चलता,
कभी नहीं वह कुछ भी खोता।

पंथ यही जो राम मिलाए,
भवसागर से पार लगाए।
धर्म-कर्म में रखे आस्था,
वही स्वर्ग के सुख को पाए।
वही स्वर्ग के सुख को पाए।

जिंदगी मिले ना दोबारा

जीवन काटी लड़कर के संघर्षों से,
सुरसा मुख का मिला न अंतिम छोर l

शिकायतें कम करने के
सब जतन गए बेकार l

कूड़ा करकट ढेर से
लगा शिकायतों का अंबार l

ना घटी शिकायतें न घटा संघर्ष
छीनी सुख शांति,बढ़ाते गए अवसाद l

अब आया उम्र का अंतिम छोर
न मिला खुशियों का एक कौर l

तेरा मेरा में खोया आठों याम
तनिक भर न पाया विश्राम l

आग लगे इन प्रपंचों को
प्रेम रस से नाता जोड़ो।

जी भर जी ले,मस्ती के प्याले पी ले
खुशियों से जी ले, कुछ अपने लिए जी ले l

यह अनमोल जिंदगी मिलेगी न दोबारा
मस्ती से जी ले ,कुछ अपने लिए जी ले l

तेरे घर आंगन में भगवान


क्यों करे मूर्खता नादान
मंदिर-मंदिर खोजे भगवान l

खोल मन-मंदिर की आँखें,
घर-आंगन में बैठे भगवान l

हर पल दुख-सुख का साथी
अग्रज भाई गणेश भगवान l

चरण छू ले भाभी का
मान ले मात ससम्मान।

करें वो लाड-दुलार
देती मान-सम्मान l

चुलबुल बहना का क्या कहना,
प्यारा सा है घर का गहना l

बहना करती निश्छल मन से प्यार,
लक्ष्मी विराजे मेरे भाई के घर द्वार l

जीवन-संगिनी का सतत साथ,
सेवा करे सुबह-शाम,दिन-रात।

समर्पण कर संतति देती,
खुशियों से जीवन भर देती।

करना उसका मान-सम्मान
घर में बैठी लक्ष्मी माँ समान।

नित लाड़ लड़ाने वाली माता,
घर विराजी स्वयं पार्वती माता l

पालन ~ पोषण सृजनकर्ता,
पिता तीनों लोकों का भगवान।

क्यों करे मूर्खता नादान
मंदिर-मंदिर खोजे भगवान l

तेरे घर-आंगन में
बैठे सब भगवान l

अच्छा बोलो बोल

अच्छा बोलो बोल
मन की गांठें खोल l

देखो सबमें अच्छाई
किसी की न करो बुराई l

अच्छे-सुंदर रखो विचार
सबसे हो अच्छा व्यवहार l

नकारात्मकता से भागो दूर
सकारात्मकता से करो प्यार l

करो सब अच्छे-सुंदर काम
मिले जग मैं मान-सम्मान।

सदकर्मों से रखो नाता
बनों तुम भाग्य विधाता l

सदकर्मों की गति न्यारी
द्वार पर मिलें कृष्ण मुरारी l

पिस-पिसकर बनों हिना
दिनो-दिन चढ़े रंग दूना l

भीगे प्रेमरंग में चादर धानी
बन जाए दुनिया दीवानी l

मधुमास

प्रकृति ने ली अंगड़ाई
मधुमास की बेला आई l

भंवर सुनाएं गुंजन तान
पंछी गाएं कलरव गान

फुदके-नाचे तितली रानी
धूप गुनगुनी लगे सुहानी l

रितु शरद ले चली विदाई
अमराई अब लगे बौराई l

सैर पर निकले लोग लुगाई
परीक्षा की बेला भी आई l

गजक-तिलपट्टी भरे ठेले
गांव-गांव भर गये मेला l

पीली गेंदा मन हर्षाए
बेला-बेला भी गमकाये l

मस्ती भरा आया है मधुमास
जागी पिया मिलन की आस l

जागी पिया मिलन की आस
जागी पिया मिलन की आस l

महिमा

महिमा घटे न स्वर्ण की,जब तक है संसार।
जिन हाथों में शोभता,खुशियाँ भरे अपार।

लाख तपाया अग्नि में,हृदय न हर्ष विषाद।
सोना कभी सुनार से,करे नहीं फ़रियाद।

तांबा-पीतल से सजा,सोना अंतर्ध्यान।
ठग बैठे हर हाट में,भला करे भगवान।

जब तक साथ न संपदा,अनुपस्थित सम्मान।
कुछ तो ऐसा साथ हो,बनी रहे पहचान।

कौशल-विद्या-बाहुबल,धन-संपदा अकूत।
गर्व कभी मत कीजिए,कब भविष्य कब भूत।

महिमा

महिमा घटे न स्वर्ण की,जब तक है संसार।
जिन हाथों में शोभता,खुशियाँ भरे अपार।

लाख तपाया अग्नि में,हृदय न हर्ष विषाद।
सोना कभी सुनार से,करे नहीं फ़रियाद।

तांबा-पीतल से सजा,सोना अंतर्ध्यान।
ठग बैठे हर हाट में,भला करे भगवान।

जब तक साथ न संपदा,अनुपस्थित सम्मान।
कुछ तो ऐसा साथ हो,बनी रहे पहचान।

कौशल-विद्या-बाहुबल,धन-संपदा अकूत।
गर्व कभी मत कीजिए,कब भविष्य कब भूत।

बेज़ुबाँ हूँ

बेज़ुबाँ हूँ नासमझ कहना नहीं।
विवश हूँ तेरे बिना रहना नहीं।

काम आता हूँ तुम्हारे हर कदम,
स्वार्थ के सँग है मुझे बहना नहीं।

जो तुम्हारी रीत है उस पर चलो,
राह पर तेरी मुझे चलना नहीं।

मात्र जूठन ही परोसे जा रहे,
पेट भरना है मुझे मरना नहीं।

एक चौकीदार हूँ मैं द्वार पर,
मैं कभी देता कहीं धरना नहीं।

भौंकता हूँ काट भी देता कभी,
पर कमाऊँ माल यह सपना नहीं।

सो नहीं पाता कभी भी नींद भर,
धड़कनें कहती कभी थकना नहीं।

माँग लाया हूँ यही भगवान से,
चोरियाँ करके उदर भरना नहीं।

सीखना चाहो अगर तो सीख लो,
यदि नहीं हो चोर तो डरना नहीं।

चाहत

मेरी चाहत ने चाहा तो
गीत मेरे होठों पर आया l

देख मुझे शरमाई
दिल ने ली अंगड़ाई l
ऋतु सावन आई
मिलन की आस जगाई।

दौड़ी-दौड़ी चली यादें
दिल में हलचल छाई l

चमकी दामनी सीने पे
तन-मन में आग लगाई l

पानी में भी जला बदन
जब तू बाहों में समाई l

बहकना नहीं सनम
बाली उमर दूर रहना है l

ले बारात आना सनम
आंगन तेरा सजना है l

सजा सेज गा लोरी
बाहों में सुलाऊंगी l

तू मेरी बन जा
मैं तेरा बन जाऊं l

गीत खुशी के गाऊं l
जीवन की राग सुनाऊं l

हंस कर कह दे


हंस कर कह दे सजनी
तू मेरी मैं तेरा हूं l

खुशी से मैं मर जाऊं
जमी पे आसमां लाऊं l

मुक्त गगन में सैर कराऊं
सितारों से मांग सजाऊं l

बिंदी चांद की लगाऊं
लाली सूरज की सजाऊं l

मैं तो तेरा दीवाना
इशारे पर दुनिया नचाऊं l

फूल बिछाएं बहारें
मस्त-मस्त चले हवाएं l

चेहरे पर चमक उजाला
ऐसा प्रकाश कर जाऊं l

खुशी पे तेरे मर-मर जाऊं
अपनी जिंदगी मैं लुटाऊं l

तुझे पाया तो सब कुछ पाया
उसने तुझे मेरे लिए बनाया l

रखो शौक को जिंदा

रखो यारों शौक को जिंदा
शौक बने उड़ता परिंदा l

गगन सजाओ अंगारों से
मांग भरो चांद सितारों से l
यारों ऐसा कुछ कर जाओ
नया इतिहास करो जिंदा।

जग में गूंजे नाम तुम्हारा
पीड़ितों के तुम बनों सहारा
बहे धरा पर ऐसी दुग्ध धारा
खुले खुशियों का पुलिंदा l

नभ में बैठा सूरज इतराए
तपकर वो जग झुलसाये l
शीतल जल अंबर ढक दो
भागे सब आलस व निंदा

यारों ऐसा तुम कुछ कर दो
नियम प्रकृति का हर दो l
चांद सितारे चमके दिन में
खुशहाल हो जाए हर बंदा

यारों अपने नाम का
तुम सिक्का चलाओ
इस धरती पर प्यार का
चहुँ ओर डंका बजाओ l

नव वर्ष तेरा स्वागत है


तेरे स्वागत में हे नव वर्ष
तराना एक सुनाना है l

प्रण किया है नव वर्ष में
नया कुछ कर दिखाना है l

अधूरे रह गए जो काम
उसको पूरा कराना है।

हुई जो गलतियाँ पीछे,
अब उससे पार पाना है।

राहों से जो भटके हैं उन्हें,
सही रास्ता दिखाना है l

नव वर्ष स्वागत है बहुत तेरा,
खुशी लेकर हर साल आना है

सुगंधित हार सबके ही गले
खुशियों का तुझे पहनाना है l

गम की शिकन कभी भी,
किसी के माथे न लाना है l

रख लाज-लज्जा मा सबकी,
सभी को प्यार से सीने लगाना है।

प्रार्थना कर पूर्ण जाना है,
ख़ुशी सबको दिलाना है l
ख़ुशी सबको दिलाना है।

यह न सुनता है न ही कुछ मानता

यह न सुनता है न ही कुछ मानता।
सिर्फ़ अपनी चाल चलना जानता।

सतत मनमानी इसे मंजूर है।
बर्फ बन जाता,कभी तंदूर है।
यह किसी को है कहाँ पहचानता।
सिर्फ़ अपनी चाल चलना जानता।

यह समस्याएँ नहीं सुनता कभी।
दर्द कितना है नहीं गुनता कभी।
एक छलनी है दिशाएँ छानता।
सिर्फ़ अपनी चाल चलना जानता।

है भला करता पढ़ाकर पाठ है।
चार लेता और देता आठ है।
वक़्त है जो जीतता,जग हारता।
सिर्फ़ अपनी चाल चलना जानता

मेहनत करो भाई

किस्मत ने बनाया फूटा तगरा *
ऊपरवाले का ना पिघला जिगरा l

जीवन में लिखे तोड़े ही तोड़े *
कदम-कदम पर मिले फोड़े *

दोनों पैरों से है लाचार किया
किस्मत ने मनचाहा वार किया l

है विकट जिगर हार न मानी
अपने बलबूते लड़ने की ठानी

करी पढ़ाई बीकॉम,एम कॉम
इस पर लगा बीएड का तड़का l

किस्मत ने की जब बॉलिंग
मारा तब छक्का ही छक्का l

जीवट बन नई राह बनाई
नौकरी तब शाला में पायी l

चढ़ा जब मेहनत के घोड़े पर
जिंदगी में तब नई रंगत छाई l

श्रम के बूते सफलता पाई
मेहनत कर लो तुम भाई l

ये देश मेरा

यह देश मेरा,यह देश मेरा
विकट देशद्रोही ने है घेरा l

बल भर टांगे खींची-तानी
पर मैंने भी हार ना मानी l
लड़ने भिड़नेको आमादा
रगों में लहू है हिंदुस्तानी l

मैं राजा हिंदुस्तानी
मैं राजा हिंदुस्तानी l

विष वमन कर रहे हैं
आस्तीनों में विषधर।
ताक रहे मौका डंसने
मिले न उनको अवसर।

हर बार मैंने ही पिया
जहर से भारा प्याला।
मजे कर रहा है आज
वो मौज करने वाला।

धीरे-धीरे ही सुलगेगी
देश प्रेम की ज्वाला l
निकल जायेगी हेकड़ी
जब गले पड़े मुंडमाला।

बन गया अब मैं मदारी
करूँगा कौतुक भारी l
नचाऊंगा मैं डमरू धर
देखेगी ये दुनिया सारी।

कुचल दूँगा फन तुम्हारे
विषदंतों के सारे के सारे।

देश का कंटक मिट जाए
देश मेरा आगे बढ़ जाए l

काम अच्छा कर जा
~~~~

कर्म अच्छे जो करेगा
नाम पीछे रह जाएगा l
तन चला जायेगा पर
धर्म पीछे रह जायेगा।

पैदा हुए कई वीर सूरमा
अंत समय पछताता है।
जब यह धरती डोलती है
और नभ डोल जाता है l

अहंकार इतना था कभी
कहीं दरबार सजता था?
हाथ में तलवार होती थी
जुबाँ में धार रखता था।

क्या गजब जलवा था,
और क्या अजब रुतबा?
रेशमी वस्त्रों से अंगों को
सदा गुलजार रखता था।

वक़्त की आंधी चली जब
क्यों तू थर-थर कांपता है।
काल के चाबुक केआगे
क्यों तू अब धरा नापता है?

पेशाब से जलते थे चिराग
रौशनी व शबाब रखता था।
अपने सिर पर राज मुकुट
दूसरों पर लात रखता था।

जिनके इशारों पर कभी
सूर्य निकलता-डूबता था l
आज उनकी हवेलियों में
अंधेरों का राज पलता है।

हरेक का दिन एक दिन
वक़्त के आगे झुकता है।
जो अपना खुद का ही था
वो बंदा ही शरीर फूंकता है।

मिली है जिंदगी अनमोल
कुछ काम अच्छा कर जा।
धन-दौलत को कर किनारे
कर्म अच्छा कर, गुजर जा।

साल नया पुराना
~

आना और जाना
जग में नियम पुराना l

पुराना जाएगा तब
आएगा नया सबेरा

चार दिनों का ये जीवन
उसल जाएगा डेरा

आशाओं की बेलें
मन-आंगन में फैलें
नव उमंगें नवल प्रेरणा
जैसे कोई खेल है खेलें

आगे बढ़ने को यह
उम्मीदें जगाता है l

पुराना पीछे जाता है
बहुत कुछ छोड़ जाता है l

कुछ के जीवन में हाय
कड़वे पल घोल जाता है l

कुछ अच्छा~कुछ बुरा
सब अपना होता है l
साहब आज का दिन
कल गुजरा पल होता है l

छोड़ जाती हैं कड़वी यादें
मीठी-मीठी चाह जगाती हैं

साल नया पुराना

आना और जाना
जग में नियम पुराना l

पुराना जाएगा तब
आएगा नया सबेरा

चार दिनों का ये जीवन
उसल जाएगा डेरा

आशाओं की बेलें
मन-आंगन में फैलें
नव उमंगें नवल प्रेरणा
जैसे कोई खेल है खेलें

आगे बढ़ने को यह
उम्मीदें जगाता है l

पुराना पीछे जाता है
बहुत कुछ छोड़ जाता है l

कुछ के जीवन में हाय
कड़वे पल घोल जाता है l

कुछ अच्छा~कुछ बुरा
सब अपना होता है l
साहब आज का दिन
कल गुजरा पल होता है l

छोड़ जाती हैं कड़वी यादें
मीठी-मीठी चाह जगाती हैं

आचरण में मत बसा पाखंड

आचरण में मत बसा पाखंड,
रुष्ट होगा अन्यथा ब्रह्मांड।

नोट कागज का नहीं भगवान,
पुत्र-वधु को लक्ष्मी तूँ मान।

जिस पिता ने किया कन्यादान,
त्याग का उसका करो सम्मान।

स्नेह का नित कीजिये गुणगान,
प्यार का कुछ कीजिए अनुमान।

नोट कागज को झुका मत शीश,
रुष्ट होंगे अन्यथा जगदीश।

दोगलापन आचरण का छोड़,
लोभ-लालच से जरा मुख मोड़।

लक्ष्मी घर की हमेशा पूज,
बहन के सँग मना भाई दूज।

स्वर्ग के सुख का यही है सार,
जान ले यह भेद अपरंपार।

बहन,बेटी और बहुएँ देवियाँ,
बीच अँगना में करें अठखेलियाँ।

है रमी लक्ष्मी वहीं चिरकाल,
तभी मानव हुआ मालामाल।
तभी मानव हुआ मालामाल।

दादी थारो नाम

दादी थारो नाम भगतान लाग प्यारो है दादी थारो नाम
तू ही तो म्हारो एक सहारो है l
थार नाम से चाल मेरे घर को गुजारो है l
तू ही मेरे जीवन को सहारो है l
दादी थारो नाम भगतान लाग प्यारो है दादी थारो नाम
थार दरबार म खड़ा दुखियारी
महार पर पड़ी है विपदा भारी
तू सब की नैया तारी
अब की है मेरी बारी
क्यों दूर खड़ी निहार है
अब था पर बाजी सारी
छोड़ तेरो द्वारों जाऊं कठे
कोई तो बताओ रे नर नारी
विपदा मन बड़ी ख्यारी
सुन आरत वाणी दादी आई
सब विपदा मार भगाई
मेरे जीवन में खुशियां छाई
कृपा करी मेरी दादी माई
कृपा करी मेरी दादी माई
दादी थारो नाम भगतान लाग प्यारो है l दादी थारो नाम

फलदायी

अहिंसा परमो धर्मा
आडंबर और धोखा है l

अहिंसा परमो धर्म वालों का
पौरुष स्खलित हो जाता है l

जग में पुरुष और वीरता
सबसे बड़ा धर्म होता है l

सदियों पहले गलतियां कर
अहिंसा परमो धर्म अपनाया l

अफगानी घाटी गलियों से तब
लुटेरे गोरी,गजनवी,तैमूर आया l

गांव~गांव की गलियों में
था वो नंगा नाच नचाया l

मारा-काटा लाखों लोगों को
संग ले गए हजारों बालाएं l

कर नंगी सभ्यता,कंधार की
गलियों में बाज़ार सजाये l

अहिंसा परमो धर्म का
फल हमनें यह पाया था l

अहिंसा परमो धर्म की
नीति से नहीं इत्तफाक

जैसा को तैसा करने
वालों में है विश्वास l

अस्त्र-शास्त्र के बल पर
अहिंसा,शांति आती है l

जैसा को तैसा की नीति
देश के लिए यही सुहाती है l

यह मेरे मन को भाई है
यह मेरे मन को भाई है l

हौसला

फौलाद भरा है हौसलों में
हिम्मत न करे काल टकराने की l

पर्वत टकराया जब हमसे
पसीना आया पेशानी में l

लकदक चले जब हम राहों में
तूफान भाग गया कंदराओं में l

दिन रात चले मेघ इशारों में
सावन बरसे मेरे बरसाने में

टेढ़ी भृकुटी ताका चांद सितारों को
डरकर छुपे अंधकार के गारों में l

कहे कवि जरा हटके नया इतिहास
फौलादी हौसले ही रचते-रचाते हैं।

हम ओ आग हैं धरती-अंबर में
अपनी कलम से अंगार उगाते हैं।

ये नया इतिहास बनाते हैं
ये नया इतिहास बनाते हैं l

जीवन भर भागा-दौड़ा

जीवन भर भागा-दौड़ा
पीछा किया पैसों का

बच्चों को दीअंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा
संस्कारों की नहीं ली परीक्षाl

खंडित हुआ संयुक्त परिवार
चलन बढ़ा एकल परिवारों का l

धर्म-कर्म से हुए हम विमुख
भागे सुख,सम्मुख अब है दुख l

मात-पिता भारी बोझा लगते थे
दुश्मन भाई बहन समझते थे l

बस प्राण प्रिय लगती थी नारी
इसमें बसी थी दुनिया हमारी l

अजीजों में अजीज साला-साली
बाकी रिश्ते सब थे गांठों वाली

चित बसे ससुराल पक्ष की यारी
इतनी सी थी इनकी दुनियादारी l

मात-पिता को वृद्ध आश्रम भेजा
ऊपर मन से तू राम-राम भजा l

पढ़-लिखकर बेटा भाग गया विदेश
रह गया अकेला तू होकर निःशेष।

बैठकर अकेले झेले
एकांत का दंश अकेलेl

मात-पिता से जो किया व्यवहार
कौन भुगतेगा अब वो पाप यार।

अंत समय है अब तेरे पास
यह वृद्धा आश्रम का आवास l

कवि जरा हटके बोले
सब बातों का एक सार l

जैसी करनी वैसी भरनी
भुगतने को रहो तैयार l

कल-कल करता घूमे

कल-कल करता घूमे
तू नादान मूर्ख प्राणी l

कभी ना लौटा ये कल
बात है यह जानी-मानी l

कल~कल कर मरा रावण
कल की है विचित्र कहानी।

स्वर्ग नसैनी लगा सका ना
दशकंधर जैसा ज्ञानी-ध्यानी l

कल की है अजब कहानी
मन में तृष्णा,आंखों में पानी

आज करे सो अभी करें
यह मंत्र हनुमत ने जाना l

समुद्र लांघकर लंका जारी
काम किये अति बलकारी l

माता सिया का पता लगाया
राम नाम धुन जग में गाया

संजीवन बूटी लाने जो धाये
पर्वत को ही उखाड़ लाया l

पूरा किया राम का कार्य
कल पर ना टाला काम

जग में गूंजे हनुमत तेरा नाम
जय श्री राम,जय श्री राम।

विधना


आग लगे तेरी विधना को
हाय रे क्या विधान रचाया l

माया-मोह में जी लिपटाया
आदि-अंत ना जिसका पाया l

अंदर अग्नि,बाहर क्रोध की ज्वाला
अपने हाथों सर्वनाश रचा डाला l

आलस की लगी विकट बीमारी
उजड़-पजड़ गयी दुनिया सारी l

क्या था पास,क्या संग लाया
जो कमाया, बस यहीं गवांया l

जग में सेठ बन गया तू नामी
लौटाने में क्यों है आना-कानी

खेला करने तू यह रंगमंच बनाया
वाह रे विधना क्या विधान रचाया
वाह रे विधना क्या विधान रचाया

जग में है कौन महान

जग में है कौन महान
पिता है मेरे भगवान l

प्रखर सूर्य ताप पड़ जाता फीका
जिसके शीश हो साया पिता का

पिता जब थाम लेते हैं हाथ
मानों खड़े हों भगवान साथ l

पिता धधकती भट्टी की ज्वाला
हाथों में है परिश्रम का निवाला

यारों तुम बन सोना निकलोगे
दिनकर सम तब तुम चमकोगे

प्रसन्नचित्त पिता शीश धरे जब हाथ
विपत्तियों को छा जाता सन्निपात l

आदर करो पिता का
तुम सब कुछ पाओगे

भस्मीभूत कर विपत्तियों को
माथे तिलक सजाओगे l

जग में नाम कमाओगे
माथे तिलक लगाओगे l
जग में नाम कमाओगे
माथे तिलक लगाओगे l

दुनिया बहुत कसैली

इज्जत मिली नहीं जीवन में
मिला नहीं मान~सम्मान l
टोटा पड़ा निवालों का
परोसा थाली में अपमान l

फटी जूतियाँ पैरों में
सब कोसे दिन रात
छूटा प्राण शरीर से
निश्चल है देखो मृदु गात l

जुटा हुआ है सकल जहान,
झुक झुक करते सब सम्मान l
भूल गए सब खोट बुराई,
दिखने लगी आज अच्छाई l

सज गयी काया अरथी में
छाती पीटे बस्ती सारी।
चढ़े चार कंधों पर देखो,
मंथर-मंथर चली सवारी।

जीवित थे तब तक बेगाने,
लगते थे सब लोग सयाने।
पूज रहे हैं जो अर्थी को,
जीवन भर देते थे ताने।

कवि जरा हटके यह बोले,
सबने जीवन में विष घोले।
यह दुनिया है बहुत कसैली,
बाहर से दिखते बड़ भोले।

भारत की शान


मोदी मोदी है
पवन झकोरों
में भी गूंजे
मोदी मोदी मोदी l

अब पैदा नहीं
हो सकता
और कोई मोदी l

जिसने देश
का मान
बढ़ाया l

सीना छप्पन इंच
मन का निर्मल
देशभक्त की काया।

हम भारतीयों की
विदेशों में कर दी
सौ इंची वज्र की छाती।
विश्व में सत्य सनातन का
भगवा ध्वज लहराया।

जन-मन का नायक
बनकर वहः नरेंद्र
मोदी-मोदी कहलाया।

घर-घर में गूंजे
जिसका नाम आज
हर दिल में जो समाया।

भारत राष्ट्र का
महान नायक वो
देवलोक से धरती आया।

परिवर्तन

परिवर्तन लाता है परिवर्तन को पल~पल आगे बढ़ता
और सरकता है l

रजनी दिनकर को लाती है
सौंप तम दिनकर को
वो।चली जाती है l

चढ़ते भोर का शैशव
मध्याह्न बन जाता है l

ढलते मध्याह्न का
तेज संध्या हर लेती है l

गोद लेकर दिनकर को
संध्या यामिनी आंचल में
समा जाती है l

परिवर्तन निरंतर चलता है
पल-पल कर आगे बढ़ता
और सरकता है l

भोर की परछाईं
पश्चिम दिशि चलती है

संध्या बेला की परछाईं
पूरब दिशा पकड़ती है

भरी दोपहरी की परछाईं
अपने पैरों से रौंद जाती है l

न जाने परिवर्तन की चाल
क्या-क्या रंग रूप दिखाती है ?

बाल स्वरूप में जन्म पाया
मिली जवानी धूम मचाया l

खिसकी जवानी बुढ़ापा आया
अंतकाल ब्रह्म में समाया l

परिवर्तन ही जीवन है
जीवन से ही परिवर्तन है l

परिवर्तन पल-पल चलता है
परिवर्तन निरंतर चलता है l

आई दिवाली

आई दिवाली
आई आई आई
संग-संग खुशियों की
सौगातें लाई लाई लाई l

हर घर,छत,आंगन में
जगमग रोशनी छाई
पटाखा-फुलझरियों की
बहार आई आई आई l

घर-घर बनें पकवान
गुझिया की फैली मुस्कान l
खाजा और स्लोनियों की
मीठी महक गलियों में
है छाई छाई छाई।

इस दिवाली हमने ठाना
दीनहीन के घर जाना l

उनके घरों में फैले-पसरे
अंधकार में दीप जलाना l

सबको बना अपना-अपनी
खुशियों संग घुलमिल जाना l

उनके चेहरे पर खुशियां आयेंगी
तब समझो प्रभु के घर
अब की बार धूमधाम से
दीवाली मन जाएगी l

अब से ऐसी ही दिवाली मनाएंगे
दीनहीन को संग बैठाएंगे
दीनहीन को संग बैठाएंगे।

तेरी मेरी पट गई

पट गई ,पट गई ,पट गई रे
तेरी मेरी खटपट मिट गई रे l ~2

भरी जवानी खूब सताया
कर ताक धिना धिन भंगडा
नाच नचाया l

मिला मौका जब जब
जी भर धोबी पछाड़ लगाया l

दम भर तिगनी का नाच नचाया
बन सौतन नाकों चने चबाया l

मिला ना तनिक पल भर विश्राम
सदैव छीनी सुखचैन की छाया l

मारी पलटी किस्मत रानी ने
अब मस्त छन रही घुट रही रे l

तेरी मेरी दूर झंझट गयी रे
किस्मत रानी पट गई रे l

पट गई पट गई पट गई रे
किस्मत रानी पट गई रे l
पट गई पट गई पट गई रे l

मैं~मैं हूं

मैं~मैं हूं
मैं ने मैं को मारा l

मैं से मैं हारा
जग ने किया किनारा l

छोड़ मैं~मैं नादान
तेरा हो कल्याण l

वो मैं~मैं हूं

मैंने जग उपजाया
क्यों तू उसको भुलाया ?

उस मैं को भज यार
हो जाए भवसागर पार l

मैं~मैं ना रख ऊपर
वो ही है सर्वेश्वर l

रख प्रगाढ़ प्रीति
हो आवागमन से मुक्ति l

कितने सरल है भगवान

मैं तुझ में, तू मुझ में
क्यों खोजता डोले
ईश्वर-ईश्वर और भगवान
मैं तेरे रोम-रोम में समाया l

खोलीआंखें मन मंदिर की
मन मंदिर में बैठा पाया l

कर्म निष्काम भाव से
कर,फल देने में बैठा हूं l
जितनी चाहत तेरी है
उससे ज्यादा देने बैठा हूं l

मांग-मांग कर अपना
क्यों ओज गवांता है l
तू क्या जाने मैंने क्या-
क्या देने की सोचा है l

कर्म करना है तेरे हाथ में
सब देने तो मैं खड़ा हूं l

वनस्पति जीव मात्र
है अंश मेरा तू मान ले l
सेवाकर दीनों की समर्थ भर
इनको ही तू ईश्वर जान ले l

संपूर्ण सृष्टि रचना है मेरी
कण~कण में मैं भगवान l
बन जा भक्त प्रहलाद
बस कहना मेरा तू मान
तेरे कहने मात्र से ही मैं
पर्वत फाड़ प्रकट हो जाऊं l
तू कह दे तो समुद्र लांघ मैं
आसमान धरती पर लाऊं।

शहर आकर पछताते हैं

ये कहां आ गए हम
गांव छोड़कर l

यहां कंक्रीट की बस्ती
इसमें आत्मा नहीं बसती l

यहां स्वार्थ बसता है
वरना है ,मुर्दों की बस्ती l

है भागम भाग यहां
औरों को गिराके आगे जाना l

ना कोई है मंजिल
ना कोई पता;ठिकाना l

किसी का दुख-दर्द कोई
नहीं सीखा किसी ने बंटाना
सीख ली सभी ने यहां
दूसरे से आंखें चुराना।

है व्यापार आंसुओं का
भारी कीमतों में बिकते हैं l

क्यों आए हम शहर
यह सोच पछताते हैं l

आए जिस घड़ी शहर
उस घड़ी को कोसते जाते हैं l

ना मिले शुद्ध हवा
ना मिले शुद्ध पानी l

ना चाहके पंख-पंखेरु
अट्टालिकाओं में विरानी l

पोखरी में नहाए सालों बीत गए
वह दिन रह~रह के याद आते l

गांव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी
बचपन के संगी याद आते l

बोझा दूसरे का घर पहुंचते
खाना उसके घर में खाते l

वह दिन बहुत याद आते
वह दिन बहुत याद आतेl
शहर आकर हम पछताते
शहर आकर हम पछताते l

देख नजारा : दिल हारा

मेरे गांव के तीरे-तीरे
सघन तरु झुरमुट नियरे l

निर्मल नीर से भरी तलाई
भोर-भुरारे चौकी जमाई l

जब देखा सुहाना सा मंजर
चकित दृग ने टकटकी लगाई l

किस मंजर को लौकूँ-छोडूं
ऊहा~पोह की स्थिति आई l

पानी में लगा-लगा डुबकी
किलोल करें पनडुबकी l

बको ध्यान में खड़ा कपटी
पकड़-पकड़ मछली खाए l

पानी में तैरीं बतखें चंचल
घूम-घूमकर नाच दिखाएं l

डाल-डाल पर फुद्दके पाँखी
डिस्को-फिसको डांस दिखाएं l

चिक~चिक चहके बुलबुल रानी
मनभावन है राग और मीठी बानी।

सर~सर बहे पवन झकोरे
पल~पल मन झूमे-हर्षाए।

झूम झूमकर तरुवर मस्ती
जीवन का नवराग सुनाए l

कहे कवि जरा हटके
भोर भुरारे टहलने जाओ
प्रकृति से नेह लगाओ l

सीख का पिटारा

मैं बताऊं रामबाण दवाई
एक बार अजमा ले भाई l
उठ रोज सुबह कर व्यायाम
भागे रोग और मिले आराम l

शाम -सुबह करो घुमाई
है अति उत्तम यह दवाई l

सप्ताह में राखो एक लंघन
गैस,कब्ज का करे दमनl

हंसो-हंसो रोग भगाओ
टेंशन से तुम मुक्ति पाओ l

गहरी नींद बड़ी सुखदाई
रक्तचाप तुरंत भागे भाई l

छुपी खुशियां छोटी बातों में
सुखी जीवन गहरी सांसों में।

सुनो ज्यादा और बोलो कम
आवे कभी ना पास गम l

अच्छे दोस्त, बड़ी कमाई
इससे बड़ी न कोई दवाई l

रामबाण मैंने कथा सुनाई
रंग में तुम रंग जाओ भाई l

मेरी दादी

एक है दादी
एक है पोता l
प्रेम इनका बड़ा बेजोड़
हो जैसे कोई
फेविकोल का जोड l
पोता दादी संग उठता
दादी के संग सोता l
पकड़ तर्जनी दादी की
करे गांव भ्रमण का दौरा l
टॉफी मांगे बनिया दुकान की
नहीं माने बड़ा हठी छोरा l
स्कूल छोड़ने मम्मी जाती
स्कूल वापसी में
दादी बेर दिलाती l
मिला मखान मिश्री
रोटी दादी खिलाती l
खूब मारे किलकारी
बड़ा नटखट
दादी का नाती l
मथ दही दादी
माखन खूब खिलाती l
अंक शयन करा अपने
मीठी-मीठी लोरी सुनाती l
कभी-कभी सुंदर
कहानी सुनाती l
ऊंच नीच के सब
संस्कार सिखाती हैं l
बड़ा गहरा प्रेम होता
दादी पोते का
बहुतअनोखा
अटूट बंधन होता l
दादी दादी होती है
दादी से बड़ा
ना कोई होता l

जूता बोलता है

जूता कुछ कुछ बोलता है
जूता सब कुछ बोलता है l
जिस भाषा में बोलो
वही भाषा बोलता है l
जूता अपनी भाषा में
सब कुछ बोलता है l
जग में जूते का बाजे डंका
हाथ रहे जूता सब
काम बने निशांका l
जूता की महिमा अति भारी
सब काम करें चमत्कारी l
जब मुरखाधिराज की
पदवी पाए
जूता माला गले शोभा पाए l
जूता सुधारण सिंह कहलाए
नंगे लुच्चे शराबी
खा जूता सुधर जाए l
पहने फटा पुराना जूता
गरीबी वाला हाल बताएं l
चम चामता पहने जूता
बाबू साहब वह कहलाए l
शादी विवाह में
जूते की कीमत लागे भारी
रात भर जीजा के यार करें रखवारी l
जितना भरी जतन लगाओ
अपरहण कर ले जाए सारी l
फिरौती की कीमत मांगे भारी
ग्यारह सौ से ग्यारह हजार की
कीमत मांगे सारी l
बन चरण पादुका राम का
विराज सिंहासन राज्य चलायो
अयोध्या धाम का l
जूता तेरी महिमां अद्भुत भारी
तेरी महिमा गाएं सकल नर नारी
तेरी महिमा गाएं सकल नर नारी l

नन्ही

नन्ही बड़ी चंचल
नटखट कोमल नाजुक सी l
फुदके तितालि जैसी
घर में रौनक लगती l

करें बड़े नखरे
सब पर रोब जमाती l
बसे जान टॉफी चॉकलेट में
दिन भर फरमाइस चलती l

खेल खेले गुड्डा गुड्डी का
कभी छुक छुक ट्रेन चलती है l
बैठ पिठईयां बना घोड़ा
मुझको बहुत दौड़ती है l

लाडो सब की दुलारी
नन्ही परी जैसी लगती है l
लाडो को कोई डांटे डपटे
दादा~दादी सम्मुख
क्लास लगती है l

जब से आई घर में
रौनक छाई l
सब का मन बहलाती l
लोट घर शाम को आऊं
गले मेरे लपट जाती l

ठुनक ठुनक कर
दिन भर की बात बताती l
करवा लेफ्ट राइट
सबकी परेड करवाती l

नन्ही में बसे मेरी जान
नन्ही घर की शान l

कृष्णाष्टक

(1)
वह रे कृष्णा
क्या किस्मत पाई l
मिला ना पय जन्मदात्री का
यशोमती अमृत पान कराई l
(2)
घनघोर बरसाती यामिनी में
कर पार यमुना मैया l
गोकुल नगरी आया
यह भी किस्मत को ना भाया
(3)
पल-पल पीछा करती
मौत यहां भी आई l
तूने उसको धूल चटाया l
बजा बांसी बैठ कदम की डार
बंसी की धुन पर सबको
नाच नचाया l
(4)
गोप गोपिका संग खेला कुदा
राधा संग प्रीत लगाई l
कर चोरी माखन खायो
गोप गोपीका संग रास रचायो l

तू सबके मन भयो
तू सबके मन भायो

(5)
जो मिला छूटा ही छूटा
कभी ना सुख चैन मिला l
उर हो गया पाषाण निष्ठुर
जो मिली ऐसी किस्मत निष्ठुर l
(6)
बड़ा निर्मोही छलिया
सब छोड़ चला l
कंस वध करने
मथुरा नगरी की ओर चला l
(7)
काल गति ने ऐसी चाल चली
पीछा करती विपत्तियां यहां भी आई l
छलिया छोड़ चला मथुरा नगरी
निर्जन टापू पर द्वारिका बसाई
(8)
धर्म रक्षक धर्म ध्वजवाहक
दुष्टो का संहार किया
दे गीता ज्ञान
जग का उद्धार किया

लटपट बातें

देख विपत्ति ना घबराना
काम है इनका आना-जाना l
डटकर इनसे टकराना
छोड़ भगे तेरा ठिकाना l

होनी होकर रहे
रोक सके ना कोय l
लिखा भाग्य का मिलेगा
हर सके ना कोय l

बिन चाहत आशा के
निश्छल मन से
प्यार लुटाया l
छुपा इसमें गहरा राज
उनको यह नजर आया l

कदर न जानी जज्बातों की
यह देख हुई हैरानी l
सो सो बार छलनी हुआ दिल
पीड़ा मेरी किसीने न जानी l

करे भलाई मिले बुराई
करें बुराई बढ़ता जाए नाम और दाम l
न्याय दाता बन बैठे
चोर उच्चके
तू ही बचा मेरे राम l

जीवन अष्टक

1)
राम युग में दूध मिला
कृष्ण युग में घी l
दारु मिली कल युग में
भर भर जाम पी l
(2)
भांग मांगे भुंगडा(चना)
सुलफो(गंजा)मांगे घी l
दारु मांगे खुंसड़ा (जूता)
तेरी मर्जी हो तो पी l
(3)
जन्म पर बंटी मिठाई
मृत्यु पर बनी खीर l
दोनों खा ना पाए
राजा रंक फकीर l
(4)
घमंड करूं किस बात का
पाई नश्वर देह l
छु मृत काया को
नहाकर आए बेटा
नाती पूत समेत l
(5)
लहजे में बदतमीजी
चेहरे पर ओढ़े नकाब l
खोटे कर्म स्वयं करें
मुझे से मांगे हिसाब l
(6)
मां तो मां ही होती है
देख चेहरा भांप लेती है l
लाल आँखे लाल की
सोने से है या रोने से
तुरंत पहचान लेती है l
(7)
हंसो ना किसी की मजबूरी पर
कोई खरीद कर नहीं लाता है l
डरो वक्तकी मार से
बता कर नहीं आता है l
(8)
अकेला आया है अकेला जाएगा
साथी संगी काम ना आएगा l
कर समर भूजदंड बल पर
विक्रम बजरंगी बन जाएगा l

यादें नई पुरानी

जो मस्ती की, बचपन में
उसका क्या कहना l
बीत गईं,बीती बातें
बचा ,यादों का गहना l

आधा पृष्ठ समाचार पत्र का
किस टॉकीज में कौन सा
पिक्चर चल रहा बताता l
पढ़ समाचार पिक्चर के
मायूस मन ललचाता l

अगल-बगल के शहरों में
चले कौन सी पिक्चर
उसका भी था हाल बताता l
मनपसंद कलाकारों की
की फिल्में देखने
व्याकुल मन तरसा जाता।

यारों की महफिल में
पिक्चर देखने की
योजना पर गंभीर
मंथन चलता था l

एक रु,छ आना में मिले
लोअर क्लास की टिकट
उतने पैसा का जुगाड़ भिड़ना
मानो लोहे का था चने चबाना l
देख के आना पिक्चर था
मानो दिल्ली फतह कर आना l

छिप-भाग स्कूल से
पिक्चर देखने जाते l
पकड़ गये तो घरवालों से
बे-भाव के जूते खाते।

टिकट लेने खिड़की पर
बड़ी मारामारी चलती थी l
एक हाथ डालने की जगह
खिड़की में तीन तीन
हाथ डाला करते थे l

ऊपर नीचे चढ़ खा
धक्के टिकट लिया करते थे l
धक्का मुक्की में
फटी शर्ट टूटी नाक
पिक्चर देखने की
ले निशानी घर जाया
करते थे l

जीजाजी जब आए घर
हमारे जलवों का क्या कहना l
खुले लॉटरी पिक्चर देखने
की
बालकनी मंजिल हुआ करती थी
बन नवाब अकड़ के निकले
वह अकड़ कबले गौर
हुआ करती थी l

पिक्चर देखने की
एक अलग मस्ती थी l
ऑनलाइन टिकट बुक
हो जाए दो दिन पहले l
बिना गहमा गहमी
पिक्चर देख आते हैं l
इस शांति में बड़ी
निरस्त लगती है l

बीते वो दिन
बीता बचपन
बीती वह मस्ती
वह मस्ती पाने
आज यह मस्ती तरसती है l
वह गहमा गहमी
वह मस्ती आज सिर्फ
कहानी किस्सों बसती है

लाज भी लजाई

ऐ बेशर्म बुढ़िया
शर्म तुझको
क्यों न आई ?
अधनंगी होकर तू
गणेश विदा कराने आई l
तुझे देख-देखके तो
लाज भी बहुत लजाई l
भारतीय संस्कृति की
आँखें भी भर आईं l
देख-देखके वह भी
अपनी मुंह छिपाई
कहीं ठौर ना पाई l
समाज को क्या संदेशा
देती डीजे में वो नाची
उसे देखकर हो गई
चारों ओर रे भैया
छा-छा,छी-छी
ऐसी बेहूदा सजी तू
घर निकले क्यों
मौत न तुझको आई
नवयुवती ललनाओं को
क्या कोई धिक्कारे
तेरे जैसी बुढ़िया ने1
भारी गंदगी फैलाई l
शर्म से डूब मरा
कवि जरा हटके
बोलने को अब
बचा नहीं कुछ भाई l

वो कौन है

उसके आंसू मेरी कमजोरी
उसकी मुस्कान मेरी ताकत l

दिल की धड़कनों में समाई
आती-जाती साँसों में आई
उसका नाम मेरे दिल में
ऐसी है छाई है l

उसके हर कदम के नीचे
अपनी हथेली रखता हूं l

उसकी तीमारदारी मैं
सुबह-शाम करता हूं l

मैं कभी थकता नहीं हूं
मैं कभी थकता नहीं हूं l

उनको देख-देख कर
मैं जीता हूं, मरता हूं l

यारों वह और कोई नहीं
मेरी पूज्य माताश्री हैं l

जिनके चरणों में हरदम
अपना शीश धरता हूं l
अपना शीश धरता हूं।

जय मां शारदा

प्रगटो हे मात भवानी
दया कर तरस दिखाओ l

मुझको सन्मार्ग बताओ
कष्ट मिटाओ कष्ट मिटाओ l

हो प्रखर मार्तंड सम तेज
दिव्य ज्ञान ज्योति जलाओ l

मिटे अंधेरा ह्रदय नगर से
बल बुद्धि विवेक बढ़ाओ l

राग देशभक्ति का गूंजे
गद्दारों को धूल चटाओ l

जग में प्रेम का राग सुनाओ
रूखे मन में प्रीति जगाओ।

दो खुशहाली का वरदान
जन-जन का हो कल्याण l

सबसे प्यारा,सबसे न्यारा देश हमारा
यहीं मिले हमें जन्म दोबारा l

त्रिलोक में पहरे कीर्ति पताका
माँ दयामयी दो ऐसी परिभाषा l

विश्व को हो यह पहचान
मेरा है भारत देश महान l

मैं तेरा दीवाना हो गया

श्याम बाबा तेरी बातें
बड़ी मस्तानी l
सारी दुनिया तेरे पीछे
पागल और दीवानी l

कोई पैदल आवे कोई
मोटर गाड़ी लावे l
लूला लंगड़ा जवान बूढ़ा
श्रद्धा से आ निशान चढ़ावे l

आ बाबा के चरणों में
में शीश झुकाए l
दाल चूरमा का भोग लगाए
कोई स्वामनी भोग चढ़ाए l

बाबा बड़ा मोटा लखदातार
दोनो हाथ लुटाए भंडार l
मेरे मन में एक सवाल आए
बाबा तीसो दिन बैठा मंदिर में
तू थक नही जाता क्या ?

छोड़ मंदिर दो~चार
बाहर घूमने क्यो
नही जाता l
सुन मेरे भोले भक्त
बड़ी दूर से आश लगाए
अनगिनत भक्त रोज आएं l

मैं घूमने जाऊं तो
वो आकर किससे
फरियाद लगावे l
इसलिए मैं मंदिर
छोड़ के ना जाऊं l
भक्तो के प्रेम की
ऊर्जा से भर जाऊं l

इसीलिए मंदिर में
बैठा रह पाऊं l
सच्चे मन से फरियाद लगावे
कभी खाली दरबार से ना जाए l
भर दू ऐसा भंडार कोई
उसका ओर~छोर ना पाए

जो मेरा भजन सुनाए
उसका घर रिद्धि सिद्धि
से भर जाए l
ऐसा है बाबा लखदातार
सब मिल के बोलो
इसकी जय जयकार l

अच्छाई में संसार समाया

अच्छा देखो
अच्छा सुनो l
अच्छा बोलो
अच्छा लिखो
अच्छा दिखो
अच्छा पढ़ो
अच्छा कढ़ो
अच्छे कर्म में
छिपी अच्छाई
मिले नाम काम,दाम
जग में मिले प्रभुताई।

अच्छाई के बल के आगे
नकाराक का दल भागे ।
दबा हुआ सकारक की
भी से सोई किस्मत जागे।

अच्छे सुंदर होते जब काम
जग में मिलेते मान-सम्मान l
मिलें अच्छे को अच्छे जन
अच्छे से दूर भागे शैतान l

अच्छाई से रखोगे नाता तो
बन जाओगे भग्य विधाता।

अच्छाई के संग सुख
शांति संपत्ति भी आए।
दारुण दुख और दरिद्रता
जीवन में नजर ना आये।

बुराई ने सत्यानाश कराया
अच्छाई में संसार समाया ।
अच्छाई में संसार समाया l

पियक्कड़ बड़े महान

सुन मूढ़मति नादान
भूल के ना बोल
बुरा कर्म मद्यपान l
पियक्कड़ होते हैं
जग के सच्चे महान
देश के राजस्व की
बढ़ते हैं वो ही खान l
होते हैं उद्योगों की
रीढ़ की हड्डी और जान l

पियक्कड़ों ने देश पर
किया है भारी उपकार l
पी~पी के बोतल देशी
राजस्व का भरा भंडार।

बोतल वालों का भी
चलता फुल कारोबार।
बियर कोल्ड ड्रिंक वाले
हो गये हैं मालामाल l

चखना,अंडा,
नमकीन वाले
भी हो गए हैं
ख़ूब निहाल l

वे नशे में होकर टुन्न
आकाश में रखते पांव।
सड़क में चलते-चलते

रह जाते ठाँव-कुठाओं।
डॉक्टर दवाई वालों का
खूब करते हैं सम्मान।

गुल-गपाड़ा खूब मचाएं
भरती जेबें पुलिस की।
हरे~हरे नोट की मायाl
हर किसी को देता दांव।
राजेंद्र कुमार रुंगटा

कड़वे बोल

करे सरकारी नौकरी
हैं बड़े ताम~झाम l
टपके रूतबा रोम रोम से
जैसे हो चक्रवर्ती सम्राट l

जनता कीट ,पतंगा लागे
समाज बजबजाती नाली लागे l

बन बैठे खक्काशाह
मानो है सबसे बड़ी हस्ती l
चाहे हो कलेक्टर, एस, पी
थानेदार
ओर हो पटवारी कानून को तहसीलदार l

मारे भयंकर फुंफकार
जन-समाज से नहीं सरोकार l
सेवा निवृत्ति पश्चात
इनकी चर्बी उतरती है l

जनता इनको ठेंगे पर
हरदम रखती है l
कड़वे बोल कहे कवि
जरा हटके l
तुम्हारी इतनी ही हस्ती है
जानता तुमको
कुछ नहीं समझती है

भाग्य तेरे पीछे आएगा

बढ़ती देख दूसरे की
हताशा ना मन में लाना l

ना रहे दिल में बुरी भावना
ईर्ष्या भाव को दूर भगाना l

दुखी होना छोड़ो
हिम्मत ना तोड़ो l

कठिन परिश्रम से नाता जोड़ो
लिखी विधाता की लकीरें
चले तेरे इशारों पर l
चढ़ काल की छाती पर
ऐसा तांडव कर l
बड़ी लकीरें खींचा कर
सब लकीरें छोटी पड़ जाएं
तुझ तक कोई पहुंच ना पाए l

अनल लपटों से
फूटे जलधारा
ऐसा परिश्रम तू करता चल l
लिखने वाले ने लिखी
निष्ठुरता भाग्य में l
तेरी मेहनत के आगे
वह भी बक-बक रह जाए l

ना रहे ईर्ष्या द्वेष का भाव
लंबी लकीरें खींचता चल
भाग्य तेरे पीछे-पीछे आएगा
जमाना दांतों तले
उंगलियां दबाएगा l

भूल रहे हम अपने गौरव को

भूल रहे हम
अपने गौरव को
पहचानो
अपने आपको तुम
कुछ इस तरह पहचानो।

क्यों कर भूले प्रताप को
अकबर जैसे लुटेरे से
जिसने था रण ठाना l
दिन रात बजी तलवारें
ना वो थके न वो हारे
अकबर को धूल चटाया
तब वो राणा प्रताप
इतिहास पुरुष कहलाया।

घास की रोटियां खाईं
गौरव पर न आने दी आंच
उनको तुम भूल गये
ना ही पाये इतिहास बांच
भूल गए तुम जो था
हल्दी घाटी का वीर
तुम अकबर महान का
पीटते रहे लकीर।

जिन जयचंदों ने यह
महापाप किया
उनको सूली पर
वीर जवानों लटकाओ।

हम हैं उसके
वंशज अनुयायी
जिसके एक बंदे ने
सवा लाख
फिरंगियों को
थी धूल चटाई l
जिसने हमारा गौरव
मान बढ़ाया l
दो मासूम शहजादों को
दीवारों में चुनवाया l

हम हुए कितने कृतघ्न
उनकी कुर्बानी को भूले
उन गुरुओं को कैसे
मुख दिखलाएंगे l
लज्जा के सागर में
डूबकर मर जाएंगे l

चीख~चीख कर कहे
भारत माता की आहें l
मेरे दूध को लज्जाया
स्वार्थ में चुन ली बर्बादी
निज स्वाभिमान की
बलि चढ़ा दी l

छत्रपति शिवाजी,
महाराणा प्रताप और
गुरु गोविंद सिंह को भूला l
हिंदुओं के स्वाभिमान
गौरव की रक्षा के
खातिर अपनी जान गंवाई।

जागो,जागो,जागो
मत बनों दोगले l
निज गौरव को पहचानो
तुम देश का गौरव
और मान बढ़ाओ l
भारत माता के दूध को
तुम न लज्जाओ l

दम में दम है

हम दीवानें-मस्तानें
थकना ना जाने l
रुकना ना जाने
आगे ही बढ़ाना जाने l

पथ रोके जो पर्वत
हमें नहीं घबराना l
कर पद दलित
हमें है बढ़ जाना l

जितनी रुकावटें आएं
उनसे है हमें टकराना l
करके छिन्न-भिन्न
आगे है हमें बढ़ जाना l

चाहे उठे जितने बवंडर
हम उनसे बड़े खिलंदर l
भांगड़ा नाच नचाएंगे
बनाके मदारी का बंदर l

कदम आगे बढ़ाना है
मंजिल को पाना है l
मधुर फल श्रम का पाना
हार को मार भगाना है l

कवि जरा हटके बोले
विजयपथ हमारा ठिकाना है l
मंजिल की ओर बढ़ते जाना है
मंजिल को पाना है
मंजिल को पाना है l

मतवाला/मस्ताना/दीवाना

तू अल्हड़ मतवाला l
कभी कंजूस तो कभी
बड़ा दिलवाला l

कर-कर मस्ती
हो गया मस्ताना l
मचाया ऐसा धमाल
रहा न कोई ठिकाना l

मनमौजी बड़ा दीवाना
आँख,कभी मारे ताना l
कड़कड़ धड़~धड़कर
मुर्गी को डाले वह दाना।

लपालप कर लाल~लाल
है जीभ दिखाता l
कभी हंसता कभी गाता
कभी छाती में चढ़ जाता।

कहीं पर रिमझिम तो
झमाझम कहीं बरसता l
भर गए ताल तलैया सारे
कभी नदिया सा उफनात।

ओर ओ मेघा काले-काले
दीवाने अरे ,ओ मस्ताने।
गरज-गरजकर रे मतवाले
तू कितने रूप दिखता।

तू ही जाने क्या
~क्या करता है ?
सारा जीवन चुभुक-चुभुकके
गागर भर-भर पानी भरता है।

खुद से करो शुरुआत

सुधार की शुरुआत
खुद से करो।
पहले खुद सुधरो
जग तो स्वयं
सुधर जाएगा l
जब खुद एक
आदर्श बनेगा
जग तेरे पीछे-
पीछे आएगा l

संकल्पित रहो
नियमों पर
दृढ़ प्रतिज्ञ रहो
अपने वचनों पर l
सत्यता का
ना छूटे दामन
खुद का स्वार्थ त्यागो
फिर जगाओ अन्यों को

सब की खुशियों का
खुद बनों कारण
जन-जन के दुख का
करो निवारण l
परोपकार की
गंगा बहाओ
तब दूसरे को सिखाओ।

खुशियों की ज्योति जला दो l

सुधारों की शुरुआत
करो पहले खुद से
बिना तिलक का
कोई न होता बादशाह
पहले खुद का
तिलक कराओ
तब अपनी बादशात
किसी और को दिखाओ।

जनमानस तेरे नाम का
तब गीत गाएगा
जब खुद औरों के
दुख में काम आयेगा।

शिक्षक या भगवान

वाह रे विधाता तेरी विधना
टेढ़ी,मेढ़ी राहें ,विकट रचना l
हम कहे सब सुखी,स्वस्थ रहना
सब बीमार ना हों ,डॉक्टर की जरूरत
न हो कामना l
किसान कहे प्रभु दम भर बरसाना
मेरे खेतों में हीरा-मोती जैसा अन्न
उपजाना l
कुम्हार कहे प्रभु अभी मत बरसाना l
मेरे कच्चे बर्तनों को बचाना l
पुलिस चाहे सब बने अपराधी
ले-दे के चलती रहे तेरी-मेरी रोटी आधी~आधी l
नेता चाहे जनता रहे अनपढ़ भोली- भाली l
हम चाटें मलाई ,सुखचैन की बजायें ताली l
शिक्षक बिना स्वार्थ भविष्य गढ़ता है
ईश्वर से ऊंचा पद रखता है l
जन~जन का भला चाहता है
बिना भेद-भाव सबको शिक्षा देता है l
देश,समाज के प्रगति रथ को दौड़ता है l
इसीलिए शिक्षक भगवान से
बड़ा कहलाता है l

तड़पाती रात अंधेरी

हंसी खुशी से
बीत रहा जीवन
आमोद-प्रमोद
सब छाया था l
ना जाने क्यों मति
कालगति की बौराई
मेरी खुशियों में
आग लगाई l
अपने संग ले चली
जीवन संगिनी
जीवन में काली
फिर अंधियारी
रातें घिर आईं l
टूटा जीवन संबल
नरक हुआ भाई l
यूंही सुबह से
शाम होती आई।
जीवन की रस्में
तमाम होती आईं l
हूक उठे दिल में जब
सूनी सेजें पाता हूं
तड़पती रातों में
जब उसको अपने
आगोश में नहीं पाता हूं l
तड़पती है रात अंधेरी
तब रौशनी नहीं पाता हूं l

चक्रअष्टक

(1)
सुखी जीवन का सार
गांठ बांधे ये बातें चार l
सादा जीवन~उच्च विचार
सहज सरल रहे व्यवहार l

(2)

मोटा पहनो, मोटा खाओ अन्न
सीमित रखो जरूरतें सारी l
मितव्यता सतत् रहे यारों
जीवन,परिवार रहे प्रसन्न l

(3)

मोल से शिक्षा मिले,संसार में
संस्कार मिले ना किसी बाजार में l
संस्कार का बसेरा परिवार में
संस्कार,पहचान परिवार की
संस्कार दे मान-सम्मान
शिक्षा,संस्कार जीवन का सार l
शिक्षित ,संस्कारी हो भावी पीढ़ी
देश चढ़े सफलता की सीढ़ी l

(5)

मैं सुखी, संसार सुखी
सुख तुम्हारा ये अधूरा है l
कितनी को मिली खुशी तुमसे
तब जानो यह सुख पूरा है l

(6)

आए संकट हार ना मानों
उनसे लड़ना बढ़ाना जानों l
घोर निशा दिनकर दे जाती है
हर संकट ‘ हर ‘ सवेरा आता है l

(7)

मृग मरीचिका है मोह-माया
मनुवा इसमें क्यों भरमाना l
परोपकार, सत्कर्म कर ले बंदे
अगला घर है तेरा ठिकाना l

(8)

एक उंगली उठाओ जिस पर चार तुम्हारी ओर मुड़ती है l
किसी को उठाने हाथ बढ़ाओ
बीस उंगलियां तब जुड़ती है l

कहे कवि जरा हटके
हाथ से हाथ मिलाओ।
संकट हटते जायेगें
खुशियां बढ़ती जायेगी।

पांच मिनट का बूढ्ढा

उम्र का चले पचहत्तरवां साल
दिल कहे क्यों हुआ बावला l
तू है छैला मस्त रंगीला
तेरा चले सत्रहवां साल

अभी है कड़क गबरू जवान
रण बांकुरुओं सी तेरी शान l
हाथ पांव में दम नहीं
तू किसी से कम नहीं l

सजने धजने देखूं जब दर्पण
चुगली कर कर कहता दर्पण l
सफेद बाल पिचके गाल
तू हो गया कण्डम
निचड़ा रस हो गया बेदम l

देख दिल को धक्का लगता है
पांच मिनट को बुड्ढा लगता हूं l
हंटू जब दर्पण के सामने से
सत्रह साल का बच्चा लगता हूं l

पांच मिनट को बुड्ढा लगता हूं
पांच मिनट को बुड्ढा लगता हूं

मति गई भरमाय

(1)

ऐसी-वैसी बातें हैं
कैसी-कैसी बातें
होश उड़ गए
बुद्धि भी चकराय गई
कवि जरा हटके बोले
दो लब्जों में वो हमें
जीवन भर का
पाठ सभी पढ़ाये गई।

(2)

होंठ कपड़ा है नहीं
तो सिल कैसे जाता है
जो घिस-घिस कर भी
कभी लाल नहीं हुआ
वह दो डंडों में कैसे
लाल कराये गई ?

(3)

आत्म~सम्मान अंग ना गात
घायल क्यों कर होये गई l
चोट तो नज़र ना
आए हमको फिर भी
हाय-हाय कराये गईl

(4)

दुश्मनी कोई बीज नहीं है
दुकानों की कोई चीज नहीं है
फिर कैसे वह कुटनी
सारे खेत बोआये गई।

(5)

इंसान मौसम तो है नहीं
फिर भी बदल जाता है l
पल-पल बदले रंग जमाने
गिरगिट भी शर्माता है l

(6)

किस्मत किसी की सखी नहीं
फिर भी रूठ जाती है l
टेढ़ी-मेढ़ी राहों से आई
सबके छक्के छुड़ाय गई।

(7)

बुद्धि में पत्थर पड़ जाता
पर लोहा नहीं हो जाता।
जिस जगह जड़ जाता है
मानों घोड़ा अड़ जाता है।
इसमें रंग लग जाता है l
बताओ जरा कौन है बैरन
लोहे में जंग लगाये गई।

(8)

बनकर ऐड़े ,खाए पेड़े
चिंता मुक्त जीवन जीता है l
काम करे विध्वंसकारी
फिर भी वह पुनीता है।
कभी तो यह सुन पाते
पुलिस उसे हंटर लगाये गई।

कवि जरा हटके
जीवन का राग सुनाता हैं

पंचास्त्र

(1)

शस्त्र उठाओ द्रौपदी
कृष्णा बचाने नहीं आएंगे l
इस कलयुग में निज
भुजदंडों का बल ही
तेरा प्राण बचाएगा l

(2)

हस्तिनापुर की भरी
राजसभा में आज
आज दिखाई देता है l
सत्ता के लालच में
चीरहरण हो जाता है।

(3)

कृष्ण जैसा युगपुरुष
पैदा हुआ द्वापर में l
लाज बचाई उसने
स्वप्न हो गई सारी बातें
अब कौन,किसी की
लाज बचाने आता है?

(4)

ना होंगे राम,न कृष्ण
अवतरित इस कलयुग में l
उठे बुरी नियत से जो आंखें ,
उनको दंडित करने हमको
राम और कृष्ण जन्मना होगा।

(5)
ऐसा युग आया है कि
न राम,न कृष्ण याद आता है।
द्रौपदी और माता सीता की
जिसने लाज बचाई थी l
अब तो धरकर वेश
राम कृष्ण का जग में
पग-पग भेड़िए बैठें हैं l
चक्रसुदर्शन कौन उठाये
इन प्रश्नों को हल करना होगा।

(6)

सामर्थ्य इतना पैदा कर
अपने ही बाहुबलों में तू
वासना के भूखे भेड़ियों पर
अब तुझे कलम चलाना होगा।
नजर उठा कर देखे कोई
इसके पहले सोचे सौ बार।
रणचंडी बन खड़ी हो जाये तो
शिखंडी उन्हें बना देती है l

(7)

वासना के भूखे कुत्तों के
दम पर सत्ताएं चलती हैं l
व्यभिचार पनपता रहता है
ललनाएँ सिसकती रहती हैं।
कौन सुनता है गोहार द्रौपदी की
सत्ताएं भोगियों को ढोती रहती हैं
द्रवित ह्रदय और द्रवित होता है
युद्ध क्षेत्र में द्रोण दुखी होता है
होगा फिर क्या नया महाभारत
युग ये पूछ रहा होता है l

(8)

हे !द्रौपदी अब शस्त्र उठाओ
बन जाओ काली-रणचंडी।
इन दुष्टों को तुम निपटाओ
संहार करो हे माता रणरंगी।
हे,भाइयों तुम बन जाओ
पवनसुत विक्रम बजरंगी।
काल से तुम नयन मिलाओ
भैरव सा बन जाओ शिव संगी l
पनपे जितने दुष्ट दुराचारी
सबको यमपुर पहुंचाने
द्रौपदी तुम शास्त्र उठाओ
लेकर तलवार,कर हुंकार
रणक्षेत्र में तुम अपना
कौशल दिखलाओ।

भोर ( मुक्त छंद )

तम जब घटते जाता है
उजाला तब बढ़ाते जाता है l

जब रजनी के आगोशों से
दिनकर आने लगता है l

भंग होती निशा निविरता
कोलाहल छा जाता है l

प्रकृति लेती है अंगड़ाई
शबाब बागों में जाता है l

किरणों संग निखरे जीवन
प्रकृति में रंग भर जाता है।

कलरव करते हैं पँछी
डाल-डाल से इतराता है l
दाना चुगता है जग में
जगती घर कर लेता है।

स्कूल चले बच्चे पढ़ने
किसान खेत जाता है l

कमिया काम से जब
लौटकर घर आता है

भोर अवचेतन मन को
तब चेतन कर जाता है।

इस प्रभात का वंदन करता
सूरज तब नमन कर जाता है।

अष्टावलि

सुबह हुई भेंट जब
निकला टहलने
मेरी पड़ोसन
मिली सामने l
हंस कर बोली
कवि जरा हटके जी l
बड़ी रचनाएं रचते जी
कविताओं में कुछ
मुहावरे हम महिलाओं
पर कर दो झटके जी l
मैं हंसकर बोला
वो हमारी भाभी जी
अष्टावलि है तैयार
झेलो अब इसका वार l

(1)

हम खतरों के
हैं खिलाड़ी
जान हथेली पर रखते हैं l
कर शादी जीवन भर
उनका आतंक सहते हैं l

(2)

आ बैल मार मुझे
खुंदक सूझी मुझको
भोर भये श्रीमती जी से
और ले बैठा मैं पंगा
तूफान मचाया और
किया जमकर दंगा
ठोंक-ठाककर
सात पुस्तों की
तबीयत कर दी चंगा l

(3)

श्रीमती जी हमारी
जिद्दी हैं बड़ी भारी l
इनको समझाना
दीवारों पर सर टकराना l
पकड़ लो तुम
अब पतली गली
फूट जाओ दरभंगा l
शीश हाथ धरकर
पछताओ वरना l

(4)

मेरी बीवी है
बड़ी हंगामेदार
भाग गई है मायके l
चार दिनों की
छाई है चांदनी
फिर बिगड़ेगा जायका l
खुशियां ज्यादा
कहाँ टिकती हैं ?
तूफान मचाते
लौट आती बीबी है।
इसके बाद कहूँ क्या
अंधियारी घटा घिर आती है।

(5)

भाई मजनू लाल
मेरे है जिगरी यार l
समझाकर ऊंच-नीच
शादी को किया तैयार l
लौटकर मैं पछताया
बीवी का कितना
सहता अत्याचार l
भोले भाई मजनू को
आत्महत्या के लिए
क्यों मैंने किया तैयार l

(6)

शैतान सिंह में भरी
शैतानी शैतान की।
झगड़ाकर खींचता कान
जय बोलो भगवान की।
सब जुगाड़ लगाया
लंगोट छुआ पहलवान की।
तेज तर्रार लड़की से
कर दी शादी बेईमान की।
लगा विराम शैतानी पर
उस साल शैतान की।
दुश्मनी का हिसाब चुकाया
बोलो जय श्रीराम की।

(7)

सुरूर चढ़ा जवानी का
गोरी से दिल लिया लगाय l
बाजे-गाजे से लाये दुल्हन
जैसे अपने पर करने
जब-तब लाठी भाजन।

(8)

हमें ना कोई रोके
ना कोई टोक
ना कोई झंझट
ना कोई होये दंगा l
रहो कुंवारे भाई
बोलो हर-हर गंगा l

टेढ़ी-मेढ़ी बातें

अत्र, तत्र, सर्वत्र करने प्यार
ना पहुंच सके जग दातार l
इस कमी को पूरी करने
भेजा मां को करने प्यार l

सजा देने उल्टी करनी की
बनाया सुंदर विधान l
संग पत्नी कर दिया
खींचने का कान l

आज कल के माता-पिता का
बड़ा अजब गजब का हाल l
बैठा बच्चों को स्कूल बस में
ऐसा करते टाटा बाय
मानो विदेश पढ़ने जाए l

हमारे जमाने का था
बड़ा बेढब हाल l
ले फूल डोज चार लात का
दन दन करते स्कूल जाए l

खाना पचता नहीं
कमाते बचता नहीं l
पर्स में मानो बैठा गोडसे
गांधी बाबा टिकता नहीं l

लड़की पास तो
रेस्टोरेंट का बिल l
लड़की दूर तो
आए रिचार्ज बिल l
छोड़ चली लड़की
आए दारू का बिल
कहे कवि जरा हटके
ना लगाओ दिल
ना आएगा बिल l

अच्छी करनी करते रहो
फल मिले ना मिले l
शायद फलानी मिल जाए l
पुनः कहे जरा हटके
हंसते जाओ मुस्कुराते जाओ
जीवन का यूं लुफ्त उठाओ l

माँ का कर्ज

पढ़ लिख बेटा बड़ा हुआ l
रखे सबसे सद व्यवहार

जोरदार चलने लगा व्यापार
कमाई दौलत अपरम पार l

सर चढ़के बोला अहंकार
बोला माता से वचन
बिना सोच-विचार l

नहीं रखना तेरा एहसान
तेरा कर्जा नक्की करना है l

तब मां बोली फुंफकार
आजा बेटा मैंने रखा है
सारा हिसाब तैयार।

कर कर्ज चुकता मेरा
हो जाए तेरा उद्धार l
पैदा कर इस जग में लाई
ये हिसाब कौन चुकाएगा?

पैदा करते में जो दर्द सहा
उसका कैसे मोल लगाएगा?

तू भर-भर रोया रातों में
चुप करती मैं रातों में
उसे नींद का मोल चुकाओl

सूखे में सुलाया
तेरे गीले बिस्तर में सोई
गल गई चमड़ी उसका
क्या भाव लगाएगा?

चलना सिखलाया
बोलना सिखाया
लगे हाथ उसका
भी मोल चुका दे बेटा l

गर्म खाना तुझे खिलाया
मैं खाई रोटियाँ बासी
तू बुढ़ापे में मुझे सुख देगा
ये सोचकर सारी उमर
मैंने व्यर्थ गंवाया l

कर मालिश मजबूत कर दी
तेरी सारी हड्डी-पसलियां।
आज तू लगा नोचने
मेरी ही मांस-पेशियाँl

तुझे बचाने खाई हजारों बार
तेरे बापू से बेहिसाब गालियाँ
उनका कैसे होगा हिसाब जरा
बता दे तू ओ मेरे बेटे l

मेरा पाई-पाई हिसाब
चुकाने में तू बिक जाएगा
तब भी ढेर सारा पैसा
बाकी रह जायेगा।
तू मेरे कर्जे से भला बता
कैसे पार पाएगा l

माँ का कर्ज कान्हा भी
ना चुकता कर पाया l
फिर तेरी क्या हस्ती है
मेरा कर्ज चुकाएगा।

पिता की महिमा

सबसे प्यारा
पिता हमारा l
जग से न्यारा
पिता हमारा l

बनकर वट वृक्ष
वह रहता है खड़ा।
तूफानों,झंझावातों से
हमें हरदम बचाता रहा।
स्वयं रहता है वह दीन-हीन
अपने बच्चों को देता है
वह इंसान आसमान में चढ़ा।
कैसे करें सामना वक़्त का
इसका हुनर वह बता देता है l
अपने पिता होने का हक
अदा वह कर देता है।
हर मुसीबत के सामने
वह बनकर छतरी
हर पल रहता है खड़ा l

सदैव खुशहाल
रहे संतान l
पता नहीं पिता
क्या-क्या करता है l
खुद मरता है पर
जग बच्चों के नाम
पिता कर जाता है।
ईश्वर भी ना जान सका
पिता वह अबूझ पहेली है।
जिसने अपने दम पर
सारी मुसीबतें झेली हैं।

सिर पर हाथ रहे पिता का
दुनिया में वह बेटा
भाग्यवान बड़ा होता है l

दूर खड़ा-पिता
निहारे संतानों को
तब दुनिया में पिता
शक्तिशाली होता है l

पिता संतान के लिए
भगवान होता है l
पिता संतान के लिए
भगवान होता है l

भैंस रानी की व्यथा

अपनी कल्लो रानी
भैंस से पूछा एक सवाल l
गुमसुम सी क्यों
खड़ी हुई हो उदास l
क्यों तेरे मन में
क्या छाया विषाद l
पागुर मारती हुई
बोली भैंस रानी
मेरे साथ करते
भारी बेईमानी l
तेरी गृहस्थी का
मैं हूँ धुरा l
मेरे बिन
तू है अधूरा l

बच्चा सुडूक~सुडूक
दूध मेरा पीता l
निबंध में प्यारे लगते हैं
गाय ,घोड़ा कुत्ता l

काम बिगड़े
तुम्हारे कर्मों से
मुझको भेजो
पानी में l
और बताओ क्या रखा है
मेरी इस जिंदगानी में
जानवर क्या नहाए
और क्या निचोड़े।

जब कोई ना माने बात तुम्हारी
भैंस के आगे क्यों
तुम बीन बजाते l
और जानवरों को क्या
लता मंगेशकर का राग सुनाते l
मुझ पर बड़ा
गजब ढाया है
मुझको फंटर बनाया है
मुझको फंटर बनाया है

हकीकत मे हम

हकीकत में हम अकेले हैं
बाकी सब दिखावे के मेले हैं
लगाव के भ्रम में उलझे हैं सभी
यही सबके संग झमेले हैं

दिखती है रिश्तों की भीड़ यहाँ
मगर रिश्तों में रस रिसता हि नहीं
भरते हैं दंभ सभी अपनेपन के
पर अपनों मे अपना मिलता हि नहीं

लगी है होड़ नयेपन की रोज
भूलते हि जा रहे अपने अतीत को रोज
नया तो होता है फकत नव दिन का हि
इस हकीकत से दूर हो रहे हैं रोज

माना कि जरूरी है आगे का बढ़ना
जरूरी है पर सार्थक का गढ़ना भी
मिलती नही उचाई सिर्फ ख्यालों की गहराई से
जरूरी है इन कदमों से उचाई चढ़ना भी

छोड़ चले साथ हम जब पुरानों का
बताएगा राह कौन हमे ठिकानों का
झूठे स्वाभिमान का मोल हि कितना है
आईने के भीतर लहराते सागर जितना हि है

मेहंदी रंग लाती है

जय पराजय से
ना हो विचलित l
मेहनत कर,मेहनत
मेहनत से रंग लाती है।
जहां श्रम की होती है पूजा
उन पर चढ़े न कोई रंग दूजा
पसीने की बूंदें,अंग-अंग में
चंदन बनकर महकाती है l
ललाट पर जैसे
चमके भाग्य की रेखा
जिसने पहुंचा नभ में
उस बंदे ने कभी ना
फिर पीछे पलट के देखा।

लाल चटक रंग मेहंदी का
धीरे-धीरे चढ़ता जाये l
एक बार चढ़ा रंग तो
जीवन भर ना उतर पाये l

तम हर ले
जन्म जन्मांतर के
युगों~युगों, परिपाटी
चलती तक मेहनत की
परिपाटी सुंदर चलती जाये।

मेहनत से
रंग लाती है मेहंदी l
मेहनत का रंग
हरदम चढ़ता जायेl

बता सांवरा दिन भर

बता सांवरा दिन भर
मंदिर में बैठा क्या करता है ?

सिंहासन में बैठे-बैठे तू
क्या नही उकताया करता है ?

कभी-कभी क्या तेरा मन
क्या घूमने का नहीं करता है ?

बता रे सांवरा तू दिन भर
मंदिर में बैठा क्या करता है ?

या तू हो गया है अलाल
या भक्तों की बाट जोहता है ?

बैठे भक्त करें रखवाली
तेरे माल खजाने की l

तू भी दो-चार दिन कर ले सैर
इस-उस बंदे के घर की l

सारा माल असबाब
तेरा तू यहीं पायेगा l

तेरा सिंहासन लेकर
कोई नहीं भाग जायेगा l

खा-खाकर मीठा
मोटा हुआ जाता है तू।

पेट निकल आया है तेरा
तू क्यों नहीं समझ पाता है।

प्रसाद खाना छोड़ दे
वरना हो जायेगा शुगर ।
तब दौड़ना होगा तुझको
भी डॉक्टरों के घर।

सुनरे मेरे भोले-भाले
दुनिया आए आस लगाए l

सबकी फरियादें सुन-सुनकर
दोनो हाथ मॉल लुटाए l

खजाना बांटते~बांटते
क्योंकर न तू थक जाए l

धैर्य,लगन,निष्ठा ,विश्वास
की परीक्षा लेता भारी l

जो हो भगत के लिए अच्छी
वह चीज देता सारी l

सनातनी परंपरा

आदर करें बड़े बुजुर्गों का
छोटो का करें सम्मान l

भाषा प्यार भरी बोलें
जिसमें हों मन-प्राण।

सबके मन में रस घोलें
सबको दें प्रेम-प्रतिदान।

कड़वी वाणी कभी ना बोलें
त्यागें हम कलुष-विचार।

नाप-तोल संयम से बोलें
ये ही है जगत का सार।

मतवाले हम मस्ती में डोलें
सबके दिल में भर दें प्यार l

कभी किसी को ना हम छेड़ें
इसमें है जीवन का सारा।
पाताल से ढूंढके अमृत लाएं
जगती का हम करें उपकार।

बलिदानी हों देश की खातिर
देश की बढ़ाएं हम शान।
ताकि दुनिया यह कह दे
देशों में देश मेरा हिंदुस्तान l

खुशियों की चाबी

खुशियों की चाबी
तेरे हाथ में यार l
संतानों को दे
अच्छे संस्कार l
खुले खजाना
खुशियों का
खुशियां चलकर
आए द्वार l

पकड़ हाथ वृद्ध
मात~पिता का
बेटा सुबह
सैर सपाटे में ले जाए l
उस दिन खुशियों की
चाबी मिल जाए l

वृद्ध मात~पिता को बेटा
खाने पर होटल ले जाए l
खाना गिरे कपड़ों पर
बेटा क्रोध न दिखाए l
उस दिन खुशियों की
चाबी मिल जाए l

बैठ वृद्धि मात-पिता संग
पूछे मात~पिता का हाल
अपने दिल का हाल बताए l
मात-पिता संग
समय बिताए
उस दिन खुशियों की
चाबी मिल जाए l

बिस्तर मात-पिता से
गंदा हो जाए l
बिना झुंझलाए
कपड़ा बदले,
मात-पिता को
प्यार की झप्पी दे l
उस दिन स्वर्ग की
खुशियां जमी पर
उतर आए l
उस दिन जमाने की
खुशियों की
चाबी मिल जाए l

बहुत याद आते हो

छोड़कर क्यों तुम
इतनी दूर चली ?
संग-संग चलने का वादा
क्यों पल में तुम तोड़ चली ?
तेरे बिन जीने की
राह नजर नहीं आए
अब हमको कौन
भला राह दिखाये

तुम बिन ऐसे तड़पूं
जैसे जल बिन मछली l
यार कसम ले लो तुम
बहुत याद आती हो
दिल डरता है जब
कड़ाके नभ में बिजली।

कुसूर क्या था मेरा
तुम इतनी दूर चली l
अंधियारी सुरंग से जैसे
गुजरे कोई अंध गली।
अब जीना हुआ दुश्वार
मुझे काटता है हर पल
मेरा ही अपना घर-द्वार।

अगले जन्म मिलेंगे हम
बैठे हैं यह आस लगाए l
हाय.. तुम नजर न आते
हाय तुम याद बहुत आते l

रंगदारी

ठसके से चली
जीवन भर
अपनी रंगदारी l
यारों अपनी
रंगदारी का
क्या कहना ?

छोड़के दुनियादारी
जाएंगे तब भी हम
रंगदारी से जाएंगे l
लोग चलेंगे अपने पीछे
उनके कंधों पर
हम चढ़कर जाएंगे l

हम रोते आए जग में
सबको रुलाके जाएंगे l
दुनिया में सबसे बड़े
रंगदार हम कहलाएंगे l

समय

समय से मैंने पूछा
समय कौन सा अच्छा l

समय हंसकर बोला
वर्तमान है बच्चा l

इसमें जी भरकर जी ले
हंस ले ,गा ले या रो ले l

एक दिन हाथ मलकर
तू खूब सिर धुनेगा।
हाथ-पैर भी खूब मारेगा
पर हाथ न कुछ आएगा।

मैं चला गया उठकर
वापस नहीं आऊंगा l

बीता तो बीत जाऊंगा l
तू यहाँ ही रहा जायेगा l

किसके साथ कुछ गया
जोसाथ तेरे जाएगा ?

आस न लगा भविष्य की
स्वयं भविष्य नहीं जानता।
अपना खुद का भविष्य
तेरा भविष्य क्या बनाएगा l

वर्तमान में जी ले बंदे
राम रस प्याले पी ले l

जी भर कर जी ले
जी भर कर जी ले l

तौल के बोल

तौल-तौलकर तू
मीठी वाणी बोल l
मीठी वाणी है यारों
दुनिया में अनमोल l
जीवन में देती है वह
रस का सागर घोल l

तौल~तौलकर तू
मीठी वाणी बोल l

वाणी ऐसी बोल रे मन
हर्षित हो जाये सब जग।
कांटे-कंकड़ वाले दुर्गम
सरल-सुगम हो जायें पथ।

बिगड़ी बात बन जाए और
काम सभी हो जाएं सुफल।

तौल~तौलकर तू
मीठी वाणी बोल l

मिश्री सम वाणी से
चटक-चांदनी-चटके ।
जीवन में जन-मन के
अमृत रस टप-टप टपके।

कड़वी तीखी वाणी में तो
होती है खाँड़े जैसी धार l
चल जाये गर् वह धोखे से
धड़ से लेती है शीश उतार l

अब सोच समझ ले प्राणी
किसमें है तेरा लाभ।
समझ ले रे मूरख मन तू
किसमें है तेरा हानि l

बरसात की रात

हम ना भूलेंगे
वो बरसात की रात l
हुई जब उनसे
हसीन मुलाकात l

घनघोर बारिश से बचने
हम दोनों जब छत के नीचे l
जब आंखों से आंखें लड़ गईं
वह सकुचाई और अकुलाई

चला सिलसिला बातों का
बातों से बातें निकल आईं
मिटी दूरियां ,कुछ सहमी सी
वह निकट सिमट आई l
शुरू आपसे-आपसे वाली बातें
झट तुम-तुम पर बढ़ आई l

मेरा अपना मनमीत लगी
नहीं रह गई अब पराई l
दामिनी से डरी-चमकी
आगोश में मेरे लिपट आई l

टूटी तंद्रा दिवास्वप्न की
मैं बिस्तर पड़ा हुआ था
साथ में थी मेरी तन्हाई l
हाय हाय रामा ये क्या
बरसात की रात आई ?

मां

मरणांतक पीड़ा सह कर
तुझको जग में लाई l

भूखी प्यासी रहकर
रातों की नींद गवाई l

शीत निशा में सूखे में है
तुझे सुलाया।
तेरे गीले कपड़ों में काटी राते l

तेरे कोई आई आधी व्याधि
तेरी लंबी आयु के लिए
झाड़ फूंक की नजर उतरी l

प्रभु से मांगी तेरे सुख की कामना
तब जाकर तू पल बढ़कर बढ़ा हुआ l

मां को जब तू याद आया,
फूट फूट कर मां रोई l

संतानों की कमी,
नहीं पूरी कर सकता कोई

चुकाते चुकाते ऋण माता का
कम पड़ जाए तन की चाम l

ऋण चुकता करदे मां का,
बेटों की क्या औकात l

मां के विराट व्यक्तित्व को
भगवान की महिमा से भी
ना तोला जाए l

माँ ही मात्र माँ हो सकती है
जिसका ना कोई ओर छोर l

मां सा जग में ना कोई ओर
माँ सा जग में ना कोई ओर l

धरती कहती बादल से

धरती कहती बादल से यूं
सुन ले छटे ~छटाए शैतान l

किसी की तो बातें मान लो
आजा पकड़ लो अपने कान l

जीव जगत को करता त्रस्त
प्यासी धारा हुई हलाकन l

क्यों इतना तू भाव खाता है
तड़पे गर्मी में सबकी जान।

शर्म तुझको कुछ आती है
बेशर्मी है क्या तेरी पहचान।

आसमान में क्यों इतराता है
क्यों ना माने किसी की आन।

मेरा बेटा गिरी रोकेगा राहें
क्या सर टकराके देगा जान।

इतना सुनकर बादल काँपा
दिया झमाझम पानी का दान।

आधार

सुनो दो-चार बातें मेरे यार
क्या है सुख,
परिवार का आधार ?

घर में शिष्टाचार रहे
बड़ों का हो सम्मान भरपूर l

तोड़े से ना टूटे प्यार कभी
छोटों की बातें सुने जरूर l

क्षमा हो एक दूजे की भूल
भूलें बातें और तकरार l

सच का सदा हो बोलबाला
झूठ को कर दें दरकिनार

बकवास के मुंह में ताला
तुम तुरंत जड़ दो मेरे यार

पालन करोगे बातें दो~चार
सुखी रहेगा हरदम घर बार l

सुन लो मेरा मंत्र यही है भाई
सुखी जीवन का यही आधार l

ओ भोले भंडारी

ओ भोले भंडारी
सुन ले अरज हमारी l
हमें छोड़ ना जाना
थाम लेना बांह हमारी l

भोगा कष्ट अपार घनेरा
भटक दर-दर मारा फेरा l
मैं बेचारा समय का मारा
चला पता न तेरा द्वार ।

डूबा जब मैं भक्ति में
देखा भवन विरक्ति में।
नाम तेरा जग में है प्यारा
तूने ही भव पार उतारा।

ओ बाबा औघड़दानी
बनी रहे कृपा-मेहरबानी l
आठों पहर नाम जपूं मैं तेरा
कलजुग में है नाम अधारा।

ओ भोले भंडारी
सुन ले अरज हमारी।
हमें छोड़ ना जाना
थाम लेना बांह हमारी।

टेढ़ी मेढ़ी राहें

सोच विचार कर
करें काम ये चार l
संकट कटे मिटे पीर
मत भूलो शिष्टाचार l

कहो शब्द नापतोल कर
वजन बढ़े बातों में l
और गरिमा मिले सिवाय
जग में गूंजे जय जयकार l

बिन मांगी सलाह
मत दीजिए l
ओ मेरे साईं सरकार
बातों~बातों में रार बढ़े
आपस में हो तकरार l

हो सके तो मदद कीजिए
उधारी मत दीजिए यार
चाहे हों वो नाते रिश्तेदार l
अपयश,अपमान मिले
दुश्मनी का बने आधार l

रब दरिद्रता किसी को
भी ना दीजिए
गरीबी की बड़ी निष्ठुर मार l
जिल्लत भरी जिंदगी मिले
कदम~कदम पर
पड़े भूख की मार l

यादें गरीबी की
भुलाए ना भूले
जीवन की खट्टी-मीठी
यादें अन्तरतम् में झूलें l
बीते दिनों की यादें
दिल विचलित कर जाती है
सकल सुख चैन-छीनकर
वो बैरन ले जाती है l

मर्दों~ मर्द बनों
मार भगाओ।
उन यादों को और
आगे बढ़ते जाओ ।
अपनी लकीर लंबी खींचो
मान-प्रतिष्ठा पाओ।
सुख में ,दुख में तुम
सम भाव रह जाओ।

गुरु नाम अधरा

जनम जनम का साथ है
तुम्हारा हमारा
हमारा तुम्हारा l
एक गुरु नाम अधारा
एक गुरु नाम सहारा l
जब जब भटकी राहें
गही कर तूने उबरा l
एक गुरु नाम अधारा
एक गुरु तू ही सहारा l
चरण वंदन, पूजन
करूं मैं तेरा l
ज्ञान की ज्योति जालना l
रहे कृपा दृष्टि तेरी
बन जाऊं चांद सितारा l
एक गुरु नाम अधारा
एक गुरु तू ही सहारा l
माया,लोभ,मोह ने घेरा
लगा उर मुझको उबारा l
गुरु में दास तुम्हारा
तूने भाव पार उतारा l
मैं दास तुम्हारा
मैं दास तुम्हारा l
मैं दास तुम्हारा
मैं दास तुम्हारा l

वाह रे अंधविश्वास

जब जब देखा
उसने मुझको l
हौले~हौले देख मुस्काई
जली प्रेम रोग की ज्वाला l

अब नैनो से नैनो की
होने लगी बातें l
उठते~गिरते दिल में
अरमान मचलते l

छम्मक छल्लो रानी
छल्ला दे दे निशानी l
निकाल कर दिया
चप्पल का ताल्ला l
ले राजा खेल ले
बना के बैट~बल्ला l

पा कर निशानी
भाग्य पर इतराया l
उसी पल सुनार की
दुकान आया

ले फकीर चंद लाला
मैं बड़ी ऊंची चीज लाया l
इस पर सोन पत्तर पर चढ़ा दे
मेरा सोया भाग्य जगा दे l
कल आकर ले जाना
चांद सितारा जड़
सुंदर जनतर बना दूं l

दूसरे दिन जब
पहुंचा दुकान l
फकीरी लाला बोले
मीठी मीठी जुबान l
मेरी इस पीर से
करा दे पहचान l

रात भर घर वाले
धूप~दीप जला
पूजा पाठ किए l
ले~ले चुम्मा माथा
टेक ~टेक आशीर्वाद लिए l

लाला फकीरी चंद को
जब हकीकत बताया l
ले चिमटा~हथौड़ा
पीछे दौड़ा l
मैंने ये मोहल्ला छोड़ा l

बचो अंधविश्वास से
करो तौबा~तौबा l
साधु, संत, दरगाह
पीर , मजार
सब लूटमार अड्डे l
फैला झूठ फरेब का
झूठा आडंबर
गढ़ लिए ठगने
का हथियार l

इससे बचना है भाई
इससे बचना है भाई l

हम दो हमारे नौ

हम दो
हमारे नौ
लटक झटक कर
चले स्कूटर पर l

इत्तो छोटो सो
मेरो परिवार
इस पर कोई
नजर न लगा दे यार l

बच्चे भारी शैतान
घर में करे
खींचतान l
घर बना
मनोरंजन स्थान l

मैं हो गया
फटे हाल
यही मेरी
पहचान l
फिर भी
मेरा देश
महान l

सुनसान डगर के राही

सुनसान है डगर
अनजान है सफर l
मौन खड़ा है राही
ये कौन सा है नगर l

लक्ष्य को है पाना
बड़ी दूर है जाना।
किस मोड़ पर टूटे दम
कोई नहीं ठिकाना।

मंजिल से पहले
तू बैठ ना जाना ।
हंसने को तो है
यह सारा जमाना।

तू पौरुष दिखाना
अपने पद से सागर।
पर्वत एक-एक कर
पल में लांघ जाना l

लोहा मानेंगे लोग
सब बनेंगे दीवाने l
होगी जय-जयकार
तुम्हारी ओ मस्तानें l

बीबी नामां

फौजी बोला दुश्मन
हमसे डरता है।
हथियार डाल हमारी
शरण में पड़ता है l

घर पर राज बीबी
का ही चलता है l
उसके ख़ौफ़ से
फौजी भी डरता है l

मोची कहे अपनी
राम कहानी l
दुनिया के जूतों की
मरम्मत मैं करता हूं l
गर बीबी भड़की घर में
चिमटों से मरम्मत
वह ही करती है l

स्कूल में बोले टीचर
लेक्चर देना मेरा काम
पाठ पढ़ाना मेरा काम l
घर में बीबी मुझे
सबक रोज सिखाती है
जमकर झाड़ लगती है l
हरदम दुनियाबी
ज्ञान वही सिखाती है l

ऑफिसर बोले
ऑफिस में मैं
सब पर रौब जमात हूँ l
पर घर में अपनी बीबी
मैं हर रोज
फटकारा जाता हूँ।
ऑफिस में बॉस हूँ
मैं सभी का
सब मुझको
शीश झुकाते हैं।
घर में आते ही
मैं बीवी का नौकर
बन जाता हूं ।
उसकी बातों में
हां जी हां जी कर
अपनी जान बचाता हूं l

बोले जज मैं
दुनिया को देता
फिरता हूँ न्याय l
घर पर सहता हूँ
मैं अन्याय।
धाराएं कुछ
काम न आतीं
घर पर मैं
पानी भरता हूँ।
मेरे ऊपर जो
गुजर रही है वह
मैं किसी से
कह सकता हूँ ?

बोले बनिया
मैं दुनिया को
नाप तौल कर
ठगता हूँ l
बीबी है मुझसे
ज्यादा महाठगिनी
बिना माप के
सारी प्रॉफिट
पल में ठग लेती है।
घर जाते ही बीबी
मेरी सारी शेखी
हर लेती है।

बोले डॉक्टर
मैं दवा-दारू कर
इलाज मरीज का
मैं करता हूं l
घर पहुँचूँ मैं लेट
बेलन मुझे चढ़ाती है।
फीस सभी का
वह लेती है
इस तरह इलाज़
मेरा वो ही करती है।

कुंवारे भाइयों अब
तुमको क्या करना है ?
यह सोच समझ लो
मैंने तो सीधी-सच्ची
बात बता दी है l
शादी-शुदाओं के
जीवन की
यही सच्ची राम कहानी है
बाहर में है शेर
घर पर आँखों में पानी है।

आशा की किरण

बुरा समय जब आता
तब मति हर ले जाता l

गलती पर गलती
वह शख्स दोहराता
और जमाने की
फटकारें खाता है l

तन का वस्त्र
बैरी हो जाता l
मानव अपनी पूरी
शक्ति लगाता l

पार नहीं वह पाता
मंझधार में फंस जाता है
अंत में उस मनुष्य को
कण-कण में
प्रभु नज़र आता है।

प्रभु चरण में चित्त लगता है
आर्तनाद सुनकर प्रभु
आशा की किरण दिखता

दे नई शक्ति,नई ऊर्जा
जीवन पथ पर
उसकी गाड़ी दौड़ाता l
नई आशा किरण दिखाता है
नई आशा किरण दिखता है

तेरा अपना कुछ नहीं

तेरा अपना कुछ नहीं
सुन मूढ़मती नादान l
जो दूसरों ने है दिया
मानो उनका एहसान l

जन्म दिया मात-पिता ने
इसमें क्या तेरा योगदान l
नामकरण पंडित ने किया
गुरु ने दिया विद्यादान l

भई शादी ने जीवन संगिनी
दिया किसी ने कन्यादान l
करी नौकरी-चाकरी
किया दम भर काम l
समाज ने तब दिया दाम l

मिथ्या की है मोह-माया
उधार की है तेरी काया l
अंत समय जब आएगा l
कुछ उजर-बसर न पाएगा l

दूसरे के भाग जग में आया
दूसरों के कांधे चढ़ जाएगा l
मुट्ठी बांध आया जग में
हाथ पसारे जाएगा l

तेरा-मेरा करते मर जाएगा
हाथ न तेरे कुछ आएगा l
कर ले गर काम भलाई का
लोगों के दिल में बस जाएगा l
वरना तू तो गुमनामी के
अंधेरे में गुम हो जाएगा l

भाव शून्य ह्रदय

क्या समय आया भगवान
मरी मानवता पाषाण
हुआ इंसान l
रिश्तो की टूटी डोर
स्वयं का ना कोई ठोर l

पहले घर में आए मेहमान
हो दिल बाग बाग
बांछे खिल जाती थी l
घर में रौनक छा जाती थी
दो-चार दिन और रुकने की
मनोहर चला करती थी l

अब घर आए मेहमान
ग्रह~लक्ष्मी भन्ना जाती है
एक गिलास पानी देने में
ग्रह ~लक्ष्मी को सिया
ताप चढ़ आती है l

शर्म से हो शर्मसार
पुरुष मुंह छुपाते है l
पल पल पश्चातापी
अग्नि में जलते हैं
और सिसकते हैं l

जन्म~ मृत्यु हो गए महंगे
सिजेरियन बिन
कोई आता नहीं l
वेंटिलेटर बिन
कोई जाता नहीं l
खुशी गम हुए नदारत
चेहरे पर फैली
हवा हवाई l
हर शख्स तनाव में
जीता भाई l

जब शमशान भूमि में जाते थे
पूरा गांव शोक मनाता था
उसके गम में शामिल हो
उसका हाथ बटाता था
अब श्मशान में जाते हैं
अपने मतलब की गप्पे
लड़ाते हैं
घर आ खा~पी सो जाते हैं l

सच्चे इंसान की
कैसे हो पहचान l
दोनों नकली हुए
आंसू और मुस्कान l
मर गई संवेदनाएं
ह्रदय भाव शून्य हुआ
मनुष्य~ मनुष्य ना
होकर पाषाण हुआ
पाषाण हुआ l

कलम को नही झुकाऊंगा

दौलत शोहरत की चाहत में
दरबारों में शीश नहीं झुकाऊंगा l

पदकों की चाहत में
बन चारण भाट वंदन नहीं कर पाऊंगा l

समेट दुख~दर्द जनमानस का
उनकी दुख पीड़ा का राग सुनाऊंगा l

खोल पोल भ्रष्टाचारी कोढियों की
काल कोठरी तक पहुंचाऊंगा l

फैला है कैंसर देशद्रोही गद्दारों का
हो फांसी इसका जतन भिड़ाऊंगा l

दीमक लगी है सरकारी तंत्र में
काम चोरी रिश्वतखोरी की

छिड़क नमक कर भस्मी भूत
राख का ढेर बनाऊंगा l

हो उन्नति शोषित वंचित की
इसकी अलख जगाऊंगा l

करे शील हरण जो मां बहनों की
खुदवा घर उसका पक्का ताल बनाऊंगा l

तोड़ कमर गुंडे~लुच्चो की
जीवन उनका नरक बनाऊंगा l

काट हाथ पैर आतंकवादी ,हत्यारों का
जिंदा मांस पिंड बनाऊंगा l

फैलाये जहर जात-पात का
उनका घर दावानल की भेंट चढ़ाऊंगा l

खड़े प्रहरी सीमा पर, देश रक्षा में
करने चरण पखारण उनके
स्वर्ग लोक से अनेकों गंगा ले आऊंगा l

करे गुणगान कलम जिस दिन दरबारों का
टांग कलम कलम दान पर
संन्यासी बन जाऊंगा l

ले इकतारा हाथ जन जन की
उठती गिरती धड़कन की तान सुनाऊंगा l

कलम को हाथ ना लगाऊंगा
संन्यासी बन जाऊंगा l

दरबारों में शीश न झुकाऊंगा

प्रकृति कितनी सुंदर लगती है

विधाता तेरा
बड़ा उपकार
त्रय धात्री का
मिला दुलार l
प्रथम मात
जन्म की दातार
दूजा मिला
वसुंधरा का प्यार l

तीजी प्रकृति माता
जग की भाग्य विधाता l
प्रकृति माता की देखो
अद्भुत रचना
कहीं नदी नाले
कहीं पर्वत झरना l

हरे~भरे नाना भांति तरु
खड़े सीना तान
जिन पर वास करें
चिखरू,पंख~पंखेरू नादान l
नीड़ के पंछी मस्ती में गाते
फुदक~ फुदक कर
सबका मन बहलाते l

कहीं घनघोर घटा छाई
कहीं बारिद बरसे अधिकाई l
गगन में रंग~रंगीली
इंद्रधनुष की छटा छाई l

बोले दादुर, चातक
मोर, पपहिया
कोयलिया की कूक
से गूंजे अमराई l
पावक रितु
मनभावन आई l

कहीं बहे शीत
पवन के झोकोरे
कहीं हिम
झर~ झर झरे l
चौक~चौराहे पर
अलाव जले
गर्म कपड़ों के
सजे गए मेले l

शिशिर ऋतु ने ली अंगड़ाई
लू-थपेड़ों ने आफत मचाई l
तप प्रचंड दिनकर
करें हालकान
सोखा~ चूसा सब पानी
आफत में पड़ गई जान l

रात को सोए आंगन में
तारे चम~चम
चमके गगन में l
अब कहानी-किस्से
सुनाने की ऋतु आई l
कहानी सुनाती दादी^ताई
कहानी सुनते-
सुनते नींद आई l

वाह प्रकृति माई
तेरा क्या कहना
तू है जग का है
सुंदर गहना
तू है जग का
सुंदर गहना

अमानती-संसार

तेरा अपना कुछ नहीं
ये समझ ले तू नादान l

मेरा-मेरा क्यों करता इंसान
सुन जग का सुंदर पैगाम l

बेटा हुआ अमानत बहू की
उनमें क्यों दख़ल करता है ?
बेटी हुई दामाद की अमानत
तू क्यों इसमें उजर करता है?

जो दिखती है सुंदर काया
उस पर करे तू अभिमान l
होगी एक दिन खयानत
और तू पहुँचेगा श्मशान l

जीवन गिरवी मृत्यु की है
इसी राह पर सब जाएंगे।
मेरा-मेरा करते मर जाएगा
काम न कोई तेरे आएंगे।

अच्छे कर्म ही साथ जाएगा
बाकी किया धरा रह जाएगा।
अच्छे कर्म फैलेंगे सारे जग में
जगमग-जगमग दीप जलाएंगे
तेरे नाम का लोग गुण गाएंगे l

फूल भेजा है

फूल भेजा है बेटा तुमको
छिपा इसमें जीवन संदेश l

नाजुक,कोमल बना रहे तू ,
कायम रखना यह परिवेश l

फूलों जैसी बसी रहे महक
महका देना तुम पूरा देश l

कंटीले पथ पर चलना सीख
कठिनाइयों से लड़ना सीख l

सीखो,सिखाओ खुश रहना,
विपत्तियों में मुस्कुराना-हंसना l

किसी का दिल न जलाना
बनके फूल मन बहलाना l

दास सरीखा सेवा-भाव
प्रभु शरण में हरदम रहना l

फूल भेजा बेटा है तुमको
इसकी सीखों पर चलाना l

ओ मेघा रे…मेघा रे

मेघा रे, मेघा रे, मेघा l

ओ उड़ते मेघा रे
तू चला कौन प्रदेश रे
थम जा, रुक जा ,
थोड़ा खड़ा हो जारे l
यहां भी थोड़ा
बरसता जा रे l

बोले-रे दादुर
चातक, मोर ,पपीहा रे l
क्या तुझसे किया क्लेश
जो भाग गया प्रदेश l
यहां भी झमाझम पानी
बरसता जा रे l

धरा, पशु,पंछी,प्राणी
सब अकुलाए बिन पानी l
बात सुने ना किसी की
खूब कर ली मनमानी l
मेघा पानी देता जा रे l
बढ़ती गई तेरी
खूब शैतानी l
अब थोड़ा ठंडा
मिजाज दिखाता जा रे l
ओ मेघा पानी देता जा रे l

ऊपर से सूरज दादा
रुतबा खूब बघारे l
घर प्रचंड गर्मी
सब कुछ फूंक डारे l
ओ उड़ते मेघा पानी
देता जा रेl

क्यों ऊपर से निहारे
हाथ जोड़ सब पुकारे
बड़ी मान-मनौव्वल से
अब दिखलाये धारे

खूब झूम-झूम
झमाझम बरसा पानी
सब की बात मानी
खूब बरसा पानी
खूब बरसा पानी

मुझे ना ठुकराना

हे प्रभु मुझे
ना ठुकराना ~ठुकराना
प्रभु मुझे ना ठुकराना l

आया तेरे दर पर
मुझे तुम
अपना बनाना l (टेर )
हे दयासागर
तेरी दया का मिला मुझे
भरपूर खजाना l

प्रभु मुझको
ना ठुकराना~ना ठुकराना
मुझको ना ठुकराना l

मिली दौलत ~शोहरत
तेरी कृपा से पाया सब l
सब कारज हो गए पूरन
जब मैं तेरा ध्यान लगाया l
एक ही आशा दिल की
तेरा दर्शन पाना l

प्रभु मुझको
ना ठुकराना~ठुकराना
मुझको ना ठुकराना l

अपने शरण में
रख मेरे दाता l
हो कृपा तेरी
तो पार उतर जाता l
छोड़ तेरा द्वारा मुझे
और कहीं नहीं जाना l

प्रभु मुझको
ना ठुकराना~ठुकराना
मुझको ना ठुकराना l

आश टिकी है तुझ पर
तू ही मेरा सहारा l
तेरे सुमिरन में बीते
हर सुबह-शाम गुजारा l
हर संकट में सहाय तू
मैं जग छल-छंदों से हारा l

प्रभु मुझको
ना ठुकराना~ठुकराना
मुझको ना ठुकराना l

नयन/अश्रु

मैं सुनाऊं नयन पुराण
मीत सुनियो धर ध्यान l

नयन पुराण की
महिमा अति महान l
नारद~ शारद करें
बखान l

प्रभु निरखे तेरे नयन
उर में छाया सम्मोहन l
हों कृपा दृष्टि भरे नयन
सफल हो जाए जीवन l

वात्सल्य परिपूर्ण
मां के नयन l
सुत के जीवन में
बरसे सुखचैन l

लाल क्रोधित
पिता के नयन l
लगा पर लाल
उड़े गगन l

कजरारे तिरछे
नैनों की चितवन l
उर में बांधे
प्रीत का बंधन l

व्यथा~ हर्ष के अश्रु
छलकाते के नयन l
मन का हाल
बताते नयन l

हां ~ना की बोली
बोले नयन l
संकेत में कही ~अनकही
सब कहते नयन l

सुख-दुख के नजारे
समेटे नयन l
नयन में संसार समाया
बिन नयन सब सुनl

इति नयन पुराण कथा
कही बनाए सुनाए
त्रुटि पर ध्यान न करियो
मीत सुजान l

योग से लाभ और हानि

दिया पतंजलि ने,
योग ज्ञान-विज्ञान l
क्यों भूला बैठा उसे
विषय भोगी इंसान ?

ऋषि-मुनियों का
मानो तुम एहसान l
एक सूत्र में बांधकर
जग को परोसा ज्ञान l

आओ भोर-सकाले
करें योग-प्राणायाम l
निर्मल,शीतल वायु का
करें हम अमृत पान l

हजार रोगों की
है एक दवाई l
नियमित योग
तुम करो भाई l

योग से सबकी भलाई
पैसा बचाये पाई-पाई l
महिमा इसकी अति भारी
मनन करें सब नर-नारी l

डॉक्टर को ये दूर भगाए
तन-मन कांतिमय हो जाए l
योग मुझे है अति भाया
निरोगी-सुखी रहे काया l

करें योग रहें निरोग
आएं रोज भगाए रोग l
योग करने जाओगे
निरोगी काया पाओगे
अपने परिवार को
खुशहाल बनाओगे l

इश्क खुद से

छोड़ा जमाने का
झूठा माया ,मोह ,प्रपंच l
हर कदम अपनों ने
मारे कपटी पंच l

अपनों ने भोंके
खंजर छाती में l
अपनों ने बांधी
जंजीरें कदमों में l

टूटा हौसला
इन गहरे घावों से l
निकली आहे
इस टूटे दिल से l

रोते दिल ने
छोड़ी जग से प्रीत l
इन कड़वे सबको ने
सिखा दी नई रीत l

अब बांधी डोरी
इश्क खुद से करने की l
अपने लिए ही जिऊंगा
इश्क खुद से ही करूंगा l

अपने लिए ही जिऊंगा
अपने लिए ही मारुंगा
खुद का इश्क खुद से
ही करूंगा l

अपने में मस्त रहूंगा
अपने आप में खुश रहूंगा
खुद का इश्क खुद से ही करूंगा l

Rajendra Rungta

राजेंद्र कुमार रुंगटा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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