
मुझे गुरूर है कि
( Mujhe guroor hai ki )
मुझे गुरूर है कि मैं भारत देश का वासी हूं।
लेखनी का दीप जलाता हरता हर उदासी हूं।
लुटाता प्यार के मोती शब्दों की बहारों से।
खुशियां ढूंढता रहता हंसी चेहरों नजारों में।
मुझे गुरूर है बिटिया का पिता हूं मैं प्यारा।
महके आंगन फुलवारी खिला चमन सारा।
खुशियों से भरा दामन बेटी ही मेरा अभिमान।
करे नाम जग में रोशन बेटी देश की पहचान।
मुझे गुरूर है परिवार से मिले पावन संस्कार।
अपनों की आंखों का तारा हूं बड़ों का प्यार।
सीमा पर खड़ा जवान खून का रिश्ता है मेरा।
प्यार का पैगाम लिए प्यारा हिंदुस्तान है मेरा।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )