‘रजनी’ के १९ राम-भक्तिमय दोहे
‘रजनी’ के १९ राम-भक्तिमय दोहे
१
पावन तेरा धाम है, पुरुषोत्तम है नाम।
हो जग के आदर्श तुम, हृदय विराजो राम।।
२
तुम सम जग में कौन है,दुखभंजन हे राम।
जगवंदित स्वीकार लो,मम करबद्ध प्रणाम।।
३
दुखहर्ता हे राम तुम,करना भव से पार।
सरयू का तट जब मिले,तब होगा उद्धार।।
४
सुखद राम का नाम है,रहूँ शरण श्रीराम।
दया करो अब तो प्रभो,रटती आठों याम।।
५
लगन लगी है राम की,राम राम अरु राम।
‘रजनी’ मनका फेरती,राम तुम्हारा नाम।।
६
बैठीं उपवन में सिया,हृदय बसे श्री राम।
तिनके को ही देख कर,पग ले रावण थाम।।
७
रावण रावण ही रहा,बन न सका श्री राम।
एक मुक्ति की चाह में,लिया बैर को थाम।।
८
गृह-भेदी भी क्या करे,बसा हृदय में राम।
लगन लगी थी राम में,चला छोड़ कर धाम।।
९
रावण जैसी साधना,रावण-सा उद्धार।
मुक्ति-धाम के हाथ ही,मिला मुक्ति का द्वार।।
१०
दंभ-द्वेष अरु लोभ ही,रावण के प्रतिकूल।
पुरुषोत्तम श्रीराम ने,क्षमा किया हर भूल।।
११
राम सदा से जानते,भरे भले हुंकार।
रावण अंतस् से करे,उनका ही उच्चार।।
१२
कुंभकर्ण के हृदय में,बसा राम से नेह।
उठ कर देखूँ तो जरा,जब तक है यह देह।।
१३
लिखी हुई थी भाग्य में,मुक्ति राम के हाथ।
शरणागत-वत्सल सदा,बनते दीनानाथ।।
१४
पछताया था अंत में,बच जाते कुलदीप।
दंभ छोड़ कर राम के,होता अगर समीप।।
१५
राम सदा ही राम थे,रावण का क्या काम।
अपने सद्गुण से हुए,पूजित जग में राम।।
१६
काम राम के आ सके,जीवन है वह धन्य।
सुरगण मुनिगण पूज्य हैं,रखना प्रीति अनन्य।।।
१७
रावण को रावण कहा,रूठ गया था मित्र।
खड़ा हुआ फिर सामने,संकट बड़ा विचित्र।।
१८
पाहन हो यदि यह हृदय,तरल करें रघुनाथ।
जयकारा प्रभु राम का,देंगे फिर वह साथ।।
१९
चित्र हृदय में राम का,मुख से निकले राम।
ऐसे रावण को किया,भ्राता सहित प्रणाम।।
रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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