राम अवतार शर्मा “राम ” की कविताएं | Ram Avatar Sharma “Ram ‘ s ” Poetry
” गौरी नंदन “
मिटा दो मेरे – – – – – –
गौरी नंदन, तुम को वंदन ।
करता बारम्बार ,
मिटा दो मेरे कष्ट अपार ॥
प्रथम पूज्य वंदना तुम्हारी,
दर्शन की उत्कंठा भारी ।
मन मंदिर में आन विराजो,
करना नहीं अबार ।
मिटा दो मेरे – – – – – – – ॥ [ 1 ]
विघ्न विनाशक कष्ट के हर्ता,
तुम जगती के कर्ता धर्ता ।
तुम बिन काम शुरू न होते,
ये है सत्य विचार ।
मिटा दो मेरे – – – – – – – ॥ [ 2 ]
शिवशक्ति के तुम हो छैया,
बीच भंवर में मेरी नैया ।
लेकर के पतवार हाथ में,
कर दो बेड़ा पार ।
मिटा दो मेरे – – – – – – – ॥ [ 3 ]
रिद्धि ,सिद्धि के संग में आना,
शुभ ,लाभ को भूल न जाना ।
सबके संग में जब आओगे,
तब होगा इतवार ।
मिटा दो मेरे – – – – – – ॥ [ 4 ]
मोदक प्रिय ,मूसे की सवारी,
नंदी के संग गहरी यारी ।
जिस पै कृपा तुम्हारी होती,
वो सुख पाये हजार।
मिटा दो मेरे – – – – – – ॥ [ 5 ]
“बाँसुरी और गोपियां “
( छन्द )
“बांसुरी की धुन पै नाचति हैं गोपियां,
हिलोर ले कें नाचतु यमुना कौ पानी है ।
दै दै कर ताल नाचत हैं ग्वाल-बाल,
जग में नहीं जाकौ कोऊ सानी है ।
मन में भरें उमंग तन में उठें तरंग ,
मोहन की मुरली की जगती दीवानी है ।
सब हैं प्रसन्न पर एक अप्रसन्न,
वृषभान की दुलारी राधा रानी है। “
“मधुर सुरीली तान सब हैं बताबत,
पर मोय तौ लगति जिय बेसुरी है।
देव तुल्य मानि कें पूजत हैं नर नारि ,
पर प्रवृत्ति जाकी लगे असुरी है।
मद में भरी जिय बांस की छड़ी,
देखौ कैसी इठलावत जिय ससुरी है ।
बड़ी ही निगोड़ी,निर्लज्ज मोहन के,
ओंठन पै लदी रहति बंसुरी है । “
“नेह के बदले में नेह फूल देने हते,
पर तुमने तो दुख के शूल दये ।
मन मधुबन में रास रचाइबे आवेंगे,
या नहीं सोचि अधर में झूल गए ।
ऐसौ कहा धरियो जा बांस की जायी में, मदमस्त है कें खुशी ते फूल गए ।
मेरी सौतिन बांसुरी ते ही प्रेम है,
अपनी राधा है बिल्कुलि भूलि गये । “
“मोह ,माया छोड़ कें हरि कौ भजन कर,
तेरे सारे फंद कटि जाएंगे ।
अवसाद, चिंता, तनाव, पीड़ा ,वेदना के,
छाये भये सब बादल छंटि जाएंगे ।
काम, क्रोध, मोह, मद ,लोभ, स्वार्थ सिद्धि ,
दृढ़ इच्छा शक्ति ते हटि जाएंगे
राधे राधे नाम गर जपैगौ आठों याम,
बांके बिहारी झट दौड़े चले आयेंगे । “
“राखी का त्यौहार”
( दोहे )
“धूम मचाता आ गया,
राखी का त्यौहार ।
बूँदों के संग बरसता,
भाई, बहन का प्यार ॥ “
“एक संग खेले पढ़े ,
जुदा हुए फिर दूर ।
लेकिन दोनों में रहा,
प्रेम सदा भरपूर ॥ “
“नैहर में आती बहन ,
राखी पर हर बार ।
जब सबसे मिलती गले,
बहे अश्रु की धार ॥ “
“अक्षत रोली से सजा,
भैया जी का भाल ।
यही कामना ईश से,
जिये हजारों साल ॥ “
“देता रक्षा का वचन,
बहना तुमको आज ।
हर संकट के वक्त तुम,
दे लेना आवाज ॥ “
महाकवि तुलसीदास जयन्ती
पन्द्रह सौ ग्यारह में,
जन्मे तुलसीदास ।
इसीलिए तो बन गया,
यह दिन बेहद खास ॥
पिता आत्माराम थे ,
माता हुलसी बाइ ।
इनके जो प्रिय सुत हुए,
‘तुलसीदास ‘ कहाय ॥
‘रत्नावली ‘ भार्या से,
करते बेहद प्यार ।
प्रेम में जब पागल हुए,
उसने ने दी फटकार ॥
हाड़ मांस के बदन से,
करते इतना प्यार ।
गर इतना प्रभु से करो,
हो जाये बेड़ा पार ॥
गृहस्थाश्रम छोड़ के,
गये नरहरि के पास ।
‘रामबोला ‘ गुरु कृपा से,
बन गये तुलसीदास ॥
रचा हनुमान चालीसा ,
रामचरित मानस ।
दोहावली ,कवितावली ,
आदि रचा इतिहास ॥
सोलह सौ तेइस में,
गंगाजी के तीर ।
तुलसी ने शिवपुरी में,
अपना तजा शरीर ॥
कारगिल विजय दिवस
( कुण्डलिया छन्द )
“कारगिल के युद्ध में,
खूब चटाई धूल ।
सीमा तोड़ी पाक ने,
उत्तर दिया माकूल ।
उत्तर दिया माकूल ,
इसी के था वो लायक।
बार बार समझाया किन्तु,
नहीं माना नालायक ।
करते हैं कवि ‘राम ‘,
सैनिको, तुम्हें नमन है।
सिर्फ , तुम्हीं से यहाँ ,
देश में खुशी, अमन है । “
” हार नहीं मानी कभी,
डटे रहे तुम वीर ।
शीश नहीं झुकने दिया,
घणी सही चाहे पीर ।
घणी सही चाहे पीर,
जोश था वो तूफानी ।
शौर्य और बलिदान की,
लिखी तुमने नई कहानी ।
कहते हैं कवि ‘राम’,
शीर्ष पै ध्वज फहराया ।
मुँह की खाकर गया,
सामने जो भी आया ।
भोले शंकर
लगी अर्जी तेरे दरबार – – –
पीर हरो हे भोले शंकर ,
कांटा लगे ना कोई कंकर ।
विनती बारम्बार ,
लगी अर्जी तेरे दरबार ।
शिव सावन में हो मन भावन,
सुखद ,सलोने ,अनुपम,पावन ।
भाल चंद्रमा सोहे सुन्दर,
शीश गंग की धार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – – ॥ [ 1 ]
तुमने तन में भस्म लगाई,
मुंड माल है गले सजाई ।
अंग अंग लिपटे भुजंग हैं,
शोभा अपरम्पार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – ॥ [ 2 ]
बेलपत्र, तृण, पुष्प, धतूरा ।
इनके बिन श्रंगार अधूरा ।
नित्य भांग का भोग लगायें,
अलबेली सरकार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – ॥ [ 3 ]
द्वार तुम्हारे जो भी आता,
कष्टों से मुक्ति पा जाता ।
तन, मन से जो करे अर्चना,
पाये तुम्हारा प्यार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – ॥ [ 4 ]
तुम बाबा भोले भंडारी,
सब देवों से लीला न्यारी ।
देते हैं आशीष भक्त को,
बिन सोचे औ ‘ विचार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – ॥ [ 5 ]
आशुतोष तुम अवढ़र दानी,
किसने शक्ति तुम्हारी जानी ।
अंतर्मन की जानने वाले,
करो मेरा उद्धार ।
लगी अर्जी तेरे – – – – – – ॥ [ 6 ]
“जय गुरुदेव “
लगा दो मेरी नैया पार – – –
हे गुरु वंदन , है अभिनंदन,
विनती बारम्बार ।
लगा दो मेरी नैया पार – – – ॥
ईश्वर से पद उच्च तुम्हारा,
तुम्ही बताते उनका द्वारा ।
राह बता दो हमको गुरुवर,
नमन सैकडों बार ।
लगा दो मेरी – – – – – – – – – ॥ [ 1 ]
ज्ञान मुझे है बेहद थोड़ा,
सबने तेरे सहारे छोड़ा ।
कोरा कागज हूँ जो लिख दो,
वही मुझे स्वीकार ।
लगा दो मेरी – – – – – – — – -॥ [ 2 ]
आप गुरुजी ज्ञान के सागर,
मुझे बना दो अच्छा नागर ।
ऐसा ज्ञान मुझे दो गुरुवर,
हो जाये उद्धार ।
लगा दो मेरी – – – – – – – – ॥ [ 3 ]
बीच भंवर में मेरी नैया,
बन जाओ तुम मेरे खिवैया ।
कैसे भी गुरु आप करा दो,
कस्ती भव से पार ।
लगा दो मेरी – – – – – – – – – ॥ [ 4 ]
शिक्षा की ज्योति
शिक्षा से ही हो सकता है
सबसे बड़ा विश्व में होता है,
शिक्षा का दान ।
शिक्षा से ही हो सकता है,
जीवन में उत्थान ।
पढ़े लिखे को सभी पूछते,
अनपढ को न कोई ।
शिक्षा के बलबूते पर ही,
कोई कलेक्टर होई ।
पढ़े लिखे को नहीं आता है,
जीवन में व्यवधान ।
शिक्षा से ही हो सकता है – – – ॥ [ 1 ]
लिंग भेद और जाति भेद की,
शिक्षा खाई पाटे ।
निर्धन का बेटा अधिकारी हो,
अमीर को डांटे ।
शिक्षित के आगे झुकते हैं,
बड़े बड़े इंसान ।
शिक्षा से ही हो सकता है – – ॥ [ 2 ]
बेटी को शिक्षित करना है,
दो परिवार पढ़ाना ।
पढ़े लिखे परिवारों में,
एक कढ़ी औ ‘ बढ़ाना
शिक्षित बेटी ही कर सकती है,
पूरे अरमान ।
शिक्षा से ही हो सकता है – – ॥ [ 3 ]
निरक्षरों को साक्षर करके,
अच्छा जीवन देना ।
इसके बदले में तुम उनसे ,
बड़ी दुआऐं लेना
नहीं रहें महरूम खुशी से,
और मिलेगा मान ।
शिक्षा से ही हो सकता है – – ॥ [ 4 ]
साक्षरता के माध्यम से,
शिक्षा की ज्योति जलायें ।
हर नारी को शिक्षित करके,
गृह गुलशन महकायें ।
शिक्षित होकर ही पायेगी,
वह ऊँचा स्थान ।
शिक्षा से ही हो सकता है – – ॥ [ 5 ]
“गोरी तेरा रूप “
गोरी तेरा रूप सुहाना – – – –
गोरी तेरा रूप सुहाना ,
दिल में उतरने लगता है ।
तुम्हें देख जीवन प्रसून भी ,
खुलके खिलने लगता है ।
काली घटा सी अलकाऐं हैं,
आँखें सागर जैसी ।
उनमें डूब अगर मैं जाऊँ ,
बात रहेगी कैसी ?
मोती जैसे दाँत तुम्हारे ,
अधर अधखुली कलिकायें ।
भंवरा बनके रस पीने क्या,
पास तुम्हारे आयें ।
तुमसे मीत इश्क करने को,
दिल मचलने लगता है।
गोरी तेरा रूप सुहाना – – – ॥ [ 1 ]
हिरनी जैसी चाल तुम्हारी,
कोयल जैसी वानी ।
तुम्हें देख ऐसा लगता है ,
जैसे हो प्रीति पुरानी ।
पलकें गिरने उठने से,
होता सांझ सवेरा ।
चांद से मुखड़े ने लूटा है
अमन चैन सब मेरा ।
तेरा साथ नहीं मिलता तो,
मुझको खलने लगता है।
गोरी तेरा रूप सुहाना- – – ॥ [ 2 ]
हँसी तुम्हारी निर्झर जल सी,
बातें जैसे झरना ।
मौन मूर्ति सी लगती हो तुम,
जिसमें कोई स्वर ना ।
बिना तुम्हारे मेरा जीवन,
जुदा पेड़ से डाली ।
पास मेरे होती तो लगता,
जैसे महा निधि पाली ।
पास न हो तो विरहाग्नि में,
तन मन जलने लगता है।
गोरी तेरा रूप सुहाना – – – ॥ [ 3 ]
योग भगाये रोग को ( कुंडलिया छंद )
“योग भगाये रोग को ,
निश्चित लीजे मान ।
प्राणायाम के साथ में,
आप कीजिए ध्यान ।
आप कीजिए ध्यान,
पास में रोग न आते ।
केवल योगी नहीं बात,
ये डॉक्टर भी बतलाते ।
कहते हैं कवि ‘राम ‘,
रोज ही योग कीज
स्वस्थ रहके जीवन ,
का सोमरस पीजिए । “
पिता
ममता की मूरत गर माँ है,
ओठों की मुस्कान पिता ।
जीवन के घनघोर तिमिर में,
आशा की एक किरन पिता ॥
माँ कहतीं हैं तेरे जन्म पर,
खुशियाँ खूब मनाई थीं ।
हर पीड़ा काफूर हो गई,
दुःखों से अनजान पिता ॥
उँगली पकड़ के चलना सीखा,
मैंने तुमसे बाबूजी ।
निश्चिंत, महफूज रहा हूँ,
मेरी तो हैं जान पिता ॥
अनुशासन और संस्कार के,
पाठ पढ़ाये तुमने ही ।
ऊपर से दिखते कठोर हैं,
अन्दर मोम समान पिता ॥
करते हैं दिन रात मेहनत,
हम सब लोगों की खातिर ।
हार नहीं मानी जीवन में,
खड़े अटल चट्टान पिता ॥
राशन , गुड़िया ,गेंद, किताबें,
लाते हैं सब बाबूजी ।
हर सदस्य की जरूरतों का,
रखते पूरा ध्यान पिता ॥
कंधे थोड़े झुके हैं लेकिन,
शीश हिमालय सा ऊँचा ।
द्वार ,देहरी, घर, बैठक की,
आन ,बान और शान पिता ॥
“विश्व साइकिल दिवस ”
वाहन में साइकिल भली,
करवाती व्यायाम ।
यह घुटनों के दर्द में,
देती है आराम ।
देती है आराम , निःशुल्क
सैर कराये ।
धूल, धुँआ से दूर रख,
पर्यावरण बचाये ।
कहते हैं कवि राम,
साइकिल सभी चलाओ ।
रखो शरीर को स्वस्थ,
पर्यावरण को भी बचाओ । “
एकाकी परिवार ( दोहे )
एकाकी परिवार ने,
छीना सबका चैन ।
समझाने वाला नहीं,
अतः दुःखी बेचैन ।
निज सपनों के बोझ को,
बच्चों पर मत डाल ।
इनका बचपन छिन गया,
परेशान नौनिहाल ।
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में,
घर वालों से दूर ।
अच्छे अंक न ला पाये,
मरने को मजबूर ।
बूढ़े माँ और बाप का,
रखते हैं जो ध्यान ।
उनके जीवन में नहीं,
आते हैं व्यवधान ।
अनुभव की पूंजी बड़ी,
होती उनके पास ।
मिट जाते हैं कष्ट सब,
बिना किसी अहसास ।
जो भी मन में है घुटन,
घर वालों में बाँट ।
पलक झपकते ही वे,
इसको देंगे छांट ।
अनबोलेपन ने किया,
सबका बंटाधार ।
आपस के संवाद से,
बच सकता परिवार ।
संतोषीपन में महज बसा,
खुशी का राज ।
अटल सत्य था कल तक,
और सत्य है आज ।
भगवान बुद्ध
गौतम बुद्ध के चरणों में है,
मेरा कोटि-कोटि नमन ।
शांति ,करूणा और ज्ञान से,
रह सकता है यहां अमन ।
जन्म हुआ नेपाल लुंबिनी के,
राजा रानी के घर में ।
पिता शुद्धोधन माँ महामाया की,
गूँज थी अवनि अंबर में ।
नाम सिद्धार्थ था बचपन का,
बेहद सुंदर कमल नयन ।
शांति करूणा और ज्ञान से – – ॥ [ 1 ]
माँ नहीं रही गौतमी मौसी ने,
ही शिशु को पाल लिया ।
यशोधरा से ब्याह हुआ फिर,
राहुल सुत का जन्म हुआ ।
हँसी खुशी से गुजर रहा था,
सिद्धार्थ का वह जीवन ।
शांति, करूणा और ज्ञान से – – ॥ [ 2 ]
सिद्धार्थ ने इक बूढ़े औ ‘अर्थी को,
को जाते देख लिया ।
शोक मनाते लोगों ने उनके,
हृदय को बदल दिया ।
फिर इक खुश सन्यासी देखा,
हुआ यहीं से परिवर्तन ।
शांति, करूणा और ज्ञान से – – ॥ [ 3 ]
वर्ष उन्तीसवें में घर का सुख,
एवं वैभव त्याग दिया ।
किया कठिन तप घोर विपिन में,
ज्ञान और वैराग्य लिया ।
कई समस्याओं का किया,
होकर ध्यानमग्न चिन्तन ।
शांति, करुणा और ज्ञान से – – ॥ [ 4 ]
हिंसा ,चोरी, नशा, व्यभिचार,
झूँठ छोड़ दो जीवन में ।
फूल खुशी का खिल सकता है,
जीवन रूपी उपवन में ।
परोपकार बस करते जाओ,
यही फलसफा और दर्शन ।
शांति, करूणा और ज्ञान से – – ॥ [ 5 ]
सिर्फ माँ को पुकारता है
माँ सच में ममता ,
की मूरत होती है ।
माँ कैसी भी हो बहुत,
खूबसूरत होती है ।
शिशु की प्रथम गुरु,
पाठशाला होती है ।
संतान की खातिर,
खुद का चैन खोती है ।
माँ के स्पर्श से कष्ट,
छूमंतर हो जाते हैं ।
खुशी से मन के तार,
झंकृत हो जाते हैं।
माँ बहुत प्यार से,
जीवन संवारती है ।
संतान के लिए अपनी,
इच्छाऐं मारती है ।
जिन्दगी की जंग में,
इंसान जब हारता है। ‘
किसी और को नहीं,
सिर्फ, माँ को पुकारता है ।
जननी जगत में ,
देवी का रूप है ।
जीवन में छाँव औ ‘
सर्द गर्म धूप है ।
इसीलिए ,हर समय,
माँ को नमन कीजिए ।
बुढ़ापे में सेवा -सुश्रुषा,
अभिनंदन कीजिए ।

राम अवतार शर्मा ” राम “
बाड़ी ( धौलपुर ) राजस्थान
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