राम दरबार | Kavita
राम दरबार
( Ram darbar )
अमरावती पृथ्वी पे जैसे, इन्द्र का दरबार।
अद्भुत सुहाना सरस हो, श्रीराम का दरबार।
भवहीन तन आनंद मन,सौन्दर्य नयनभिराम,
श्रीराम का मन्दिर जहाँ, मन जाए बारम्बार।
साकेत दमके पुनः पथ, दर्पण का हो एहसास।
श्रीराम जी आए है जैसै, तन में थम गयी सांस।
तोरण सजा लो रूप उपवन, गोरी कर श्रृंगार,
भगवा पहन लो भारतीय, पूरन हुआ हर आस।
सदियों पुरानी हूंक मिट गई, आज लो हुंकार।
हनुमान बन कर शेर पहुचों, श्रीराम के दरबार।
धरती का जैसे पाप मिटा,पावन हुआ हर धाम,
हिंदू हृदय की भावना, लिखे “शेर सिंह हुंकार”।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )