रामकेश एम. यादव की कविताएं | Ramkesh M. Yadav Hindi Poetry

मैं भारत का संविधान हूँ

मैं कानूनी लक्ष्मण रेखा हूँ,
बाबा साहेब का लेखा हूँ।
आजादी की विजय पताका,
फ्रीडम फाइटर देखा हूँ।

अमर शहीदों के माथे का चन्दन,
लोकतंत्र का उदबोधन हूँ।
देता सबको समता का अधिकार,
धुंधली आँखों का अंजन हूँ।

दंडविधान, न्यायालय मुझमें,
मैं एक सुनहला विधान हूँ।
उखाड़ा मैंने असमानता जड़ से,
मैं सबकी मुस्कान हूँ।

सबके हितों की रक्षा करता,
मैं भारत का विधान हूँ।
न्याय पक्ष उदघाटित करता,
लोकतंत्र का वरदान हूँ।

बोझ उठाओ अपना-अपना,
मैं सबकी पहचान हूँ।
बने देश यह महाशक्ति,
मैं देश की आन हूँ।

चाँद का दीदार!

बाँहों में बीते उनके सारी उमर ये
खंजन की जैसी नहीं हटती नजर ये।
जिधर देखती हूँ बहार ही बहार है
पति मेरे जीवन का देखो आधार है।

सोलह श्रृंगार करती नित्य उनके लिए मैं
आज करवा की व्रत हूँ ये उनके लिए मैं।
वो मेरे चाँद हैं औ मैं उनकी चाँदनी
वो मेरे राग हैं और मैं उनकी रागिनी।

धन वैभव यश कीर्ति ये पल पल बढ़ेगी
मोहब्बत की बेल नित्य नभ को चढ़ेगी।
हाथों में मेंहदी औ माथे पे बिंदिया
चुराऊँगी साजन की नथुनी से निंदिया।

चाँद का दीदार उनकी नजर से करुँगी
मानों स्वयंवर में मैं उन्हें फिर चुनूँगी।
सावित्री सत्यवान जैसा हो मेरा साथ
सुहागनों की मांग का ये पर्व बने ताज।

बादल की ओट से मेरा चाँद इठलाये
भारतीय संस्कृति को ये सदा महकाये।
जीवन का सितार ये ऐसे बजता रहे
मोहब्बत का साज ऐसे सजता रहे।

गांधी जी!

बिखरे देश को बाँधा जिसने
गांधी उसको कहते हैं।
सत्य-अहिंसा के थे पुजारी
दिल में हमारे रहते हैं।

तूफानों से लड़ना उनका
देखो खेल खिलौना था।
सत्य के आगे अंग्रेजों का
कद भी कितना बौना था।

भारत छोड़ो के नारों से
देश में क्रांति आई थी।
क्या नर क्या नारी सब मिलके
वस्त्रों की होली जलाई थी।

यूँ खूब बही खूनों की नदी
फाँसी पे कितने झूल गए।
कांप गए वो जुल्मी फिरंगी
कितने ठिकाने भूल गए।

हुआ देश आजाद हमारा
जय हो अमर शहीदों की।
जब तक सूरज -चाँद रहेगा
बात चलेगी गांधी की।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह!

खेतों    में    बंदूकें   बोकर,

क्रांति का बिगुल बजाये थे।

राजगुरु सुखदेव,भगत सिंह,

दुश्मन   को  धूल  चटाए थे।

तब  कांप  गई अंग्रेजी सत्ता,

वन्दे  मातरम  के  नारों   से।

इंक़लाब की ज्योति जली थी,

ऐसे     नये     सितारों     से।

चमक  रहा  था नया लहू ये,

लिख   रहे  थे  नई  कहानी।

थम-सी गईं दुश्मन की साँसें,

ये    ऐसे    थे      बलिदानी।

बम विस्फोट कर असेंबली में,

खड़े    रहे    वहीं    अकेला।

झूल   गए   फाँसी  के  फन्दे,

चिताओं   पे   लगता   मेला।

घायल भारतमाता को जिसने,

अपना      शीश       चढ़ाया।

अमर   रहेगा  नाम  धरा  पर,

गोरों    को   जिसने   भगाया।

नदियों   खून  बहाकर   हमने,

ये      आजादी      पाई     है।

कितनी    गोंदी    सूनी   करके,

अमर     ज्योति    जलाई   है।

क्या   लोग   थे   वो     दीवाने,

क्या  खूब थी  उनकी  जवानी।

मादरे वतन पे जो मिटने आता,

लहू   से     लिखता    कहानी।

बना  लो  चाहे  जितनी  कोठी,

ये   अदब  कभी   न  पाओगे।

राजगुरु,  सुखदेव, भगतसिंह,

क्या   सोचो    बन    पाओगे?

बलि-   बेदी   पर  चढ़कर  ही,

ऐसा   दिन    तब   आता   है।

अमर शहीदों  की  माँओं  की,

झोली  में   सुख   जाता    है।

आओ  कर  लें आज  प्रतिज्ञा,

अपने  वतन  पर  मिटने  की।

ख्वाब    हमारा  भी   हो  पूरा,

अमर  तिरंगे   में   सजने  की।

पौरुष   को  लकवा   न   मारे,

स्वाभिमान   को   जगने   दो।

भारतमाता     के   चरणों   में,

अपना  शीश  भी   चढ़ने   दो।

नमो!

तन मन है इस देश की खातिर
राष्ट्र की खातिर जान है।
बदल दिया इस देश की सूरत
मेरा नमो महान है।

भारत माँ का वीर पुत्र ये
हुंकार हमेशा भरता है।
महाशक्ति यह देश बने
सृजन के पथ चलता है।

मनमोहक अभिव्यक्ति इनकी
मानों नगमा ढलता है।
भाषण इनका धारा प्रवाह
चहुँ ओर महकने लगता है।

सपने इनके ऐसे सजते,
जैसे तारे खिलते हैं।
नये बीज रिश्तों की बोते
स्नेह के मेघ बरसते हैं।

लावा बनकर दुश्मन का ये
नामोनिशां मिटाते हैं।
नहीं जो संभव काम जहां में
करके उसे दिखाते हैं।

हिंदी!

खून में हिंदी कण कण में हिंदी
हिय में सबके छाई है।
तुलसी इसे रस छंद से सींचे
आजादी दिलवाई है।

ऊँचे -ऊँचे शैल -शिखर से
मानों करती ठिठोली है।
रंग-बिरंगी काया इसकी
कोयल जैसी बोली है।

मानसून के बादल जैसी
प्यासे की प्यास बुझाती है।
बनकर के जल धारा हिंदी
बंजर में फूल खिलाती है।

हवा के जैसे ताजी रहती
संत कबीर की वाणी है।
है साम्राज्ञी स्वर सागर की
इतनी तो ये दानी है।

द्वार मोक्ष का खोले हिंदी
मदमाया भी हटाती है।
जिस कारण हम भू पे आए
जीवन सफल बनाती है।

हिंदी विश्व को प्यारी है

लता की हिंदी रफी की हिंदी
जन जन की भाषा हिंदी है।
रंग बिरंगी तितली जैसी
ये माथे की बिंदी है।

सूर कबीर रसखान की हिंदी
देखो कितनी दुलारी है।
माखन मिसरी जैसी रसीली
हिंदी विश्व को प्यारी है।

ग़ालिब की धड़कन थी हिंदी
खुसरो के मन को भाई थी।
मातृभूमि पर मर मिटने की
जन जन में अलख जगाई थी।

संस्कारों से सजी धजी ये,
मानों एक फुलवारी है।
सहज सरल औ सुगम ये हिंदी
इसमें प्रगति हमारी है।

एक सूत्र में बाँध के रखती
देश की देखो धड़कन है।
दुनियावाले जब बोलें हिंदी
तो लगता अपनापन है।

बरसल मुंबई में पनियाँ ….(कजरी)

बरसल मुंबई में अइसन पनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।

ताजी-ताजी पिया बनवऊनै,
दुल्हन जइसन हमें सजऊनै।
खोजै ओके लड़िका-पुरनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।
बरसल मुंबई में अइसन पनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।

नाला बनल सड़किया सगरो,
पिया न लौटे काम से हमरो।
कइसे पिसाईं आज चटनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।
बरसल मुंबई में अइसन पनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।

बंद पड़ल लोकल कै चक्का,
मायानगरी हक्का -बक्का।
करिहा न केहूँ कउनों नदनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।
बरसल मुंबई में अइसन पनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।

बाईक, बस, ट्रक सब केहू बेबस,
सबकी अपनी-अपनी खुन्नस।
अरे! बाटै आफत ई असमनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।
बरसल मुंबई में अइसन पनियाँ,
बहि गईल हमरी नथुनियाँ ना।

तुम्हें गिनके मिली हैं ये साँसें (भजन )

संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

तकलीफ किसी को मत देना,
खुद उसका दुःख तुम हर लेना।
सुखकर्ता वही, दुःखहर्ता वही,
बस उसके आगे कोई नहीं।
संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

दुष्कृत न होने पाए कभी,
पर कर जाते अपराध सभी।
तुम सौंप दो अपनी नइया को,
उस पतवार के आगे कोई नहीं।
संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

ये धरती पाप से दबे नहीं,
सत्कर्म से कोई थके नहीं।
अतिशय सुन्दर कितनी चीजें,
उस प्रभु से सुन्दर कोई नहीं।
संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

दुर्व्यसन की आदत मत डालो,
लालच का रोग भी मत पालो।
अनंत छिपा जो कण -कण में,
उस अनंत के आगे कोई नहीं।
संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

तुम्हें गिनके मिली हैं ये साँसें,
इसे स्वर्ग बना, न बिछा लाशें।
मत बन तू विश्व-विजेता रे!
उस शाश्वत के आगे कोई नहीं।
संसार को समझो जगवालों,
संसार में अपना कोई नहीं।
जब दुःख का बादल मँडराए,
उस प्रभु के आगे कोई नहीं।

Ramakesh

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

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