रवीन्द्र कुमार रौशन “रवीन्द्रोम “ की कविताएं | Ravindra Kumar Poetry

साहित्य साक्षी है

साहित्य को स्मरण है
आदिकाल से अब तक
कृति लिखी जाएंगी
चन्द्र ,सूर्य ,भू के अंत तक ।

साहित्य साक्षी है इतिहास बनकर
सर्व मूल्यांकन कर रहा है
स्वस्थ , स्वच्छ द्रष्टा बनकर
अपने आप में लिख रहा है ।

कितने अधर्मी ,आक्रमणकारी
पहले-पहल बाजी मारी
जैसे सत्य की किरणें बिखरी
वैसे ही दुष्ट , परलोभी हारी ।

नेपोलियन , सिकंदर ….ओरंगजेब
जिनको कोई रहा ना जेब
जो खुद को मानता था देव
खुद में ना मानता था ऐब ।

जिनका था खूब पहचान
उनको खाली पहुँचाया श्मशान
आज उनका क्या बचा
साहित्य सबकुछ है देख रहा ।

अच्छे काम करनेवालों का
नाम सदा ही गूंजेगा
दीन , दुखियों के उपकारी को
सब दिन मानव पुजेगा ,
कुकर्मी , धनलोलुप को
सज्जन कभी ना पूछेगा ।

हम अपनी विचारों को
जितनी दूर ले जाएंगे
उतना ही मानव के
करतूतों को जानेंगे ।

सतयुग , त्रेतायुग , द्वापर को
साहित्य अपने में समेटा है
आदि से अंत करेगा
यह भी निश्चय कर बैठा है ।

Ravindra Kumar Roshan

रवीन्द्र कुमार रौशन “रवीन्द्रोम”

भवानीपुर, मधेपुरा, बिहार

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