रोज़ मुझको हिचकियां आती रही!
रोज़ मुझको हिचकियां आती रही!
रोज़ मुझको हिचकियां आती रही!
यादों की ही सिसकियां आती रही
बात बिगड़ी उससे ऐसी गुफ़्तगू में
रोज दिल में दूरियां आती रही
काम कोई भी हल नहीं मेरा हुआ है
रुलाने मजबूरियां आती रही
हार मैंनें भी नहीं मानी लड़ने में
दुश्मनों की धमकियां आती रही
कान में धुन बजाती थी जो प्यार की
याद उसकी चूडियां आती रही
जिंदगी में खुशियों का तूफ़ा कब था
रोज़ ग़म की आंधियां आती रही
प्यार के आज़म नहीं आये शोले थे
नफ़रतों की चिंगारियां आती रही