कुमार अहमदाबादी की रुबाइयाँ | Rubaiyat of Kumar Ahmadabadi
जीवन
जीवन ने पूरी की है हर हसरत
मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत
किस्मत की मेहरबानी से मेरे
आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत
राजस्थानी रुबाई
मोसम सी फूटरी फरी है सजनी
चंचळ गोरी अलबेली है सजनी
मोसम री खूबसूरती री माया
कवि रा सबदों ने लागी है सजनी
अदा
भोलीभाली ये शरमाने की अदा
घायल करती है इतराने की अदा
पति के दिल को जवान रखती है सनम
प्यासी नजरों से ललचाने की अदा
साजन
तन रंग दो साजन मन को रंग दो ना
प्यासे कोरे दामन को रंग दो ना
धीरे धीरे हौले हौले प्रीतम
मेरे पूरे जीवन को रंग दो ना
पत्नी
सब करते हैं इस का मन से आदर
पत्नी भरती है गागर में सागर
भोली है लेकिन है समझदार कुशल
अवसर अनुसार है बिछाती चादर
मुखड़ा
चंदा जैसा मुखड़ा है साली का
औ’ पूनम जैसा है घरवाली का
दोनों कविता को प्रेरित करती हैं
रिश्ता है दोनों से मतवाली का
चल अकेला
सूर्योदय हो या संध्या की बेला
मन कहता है चल अकेला चल अकेला
जीवनपथ पर चलना ही जीवन है
चलता रह तू मिल जाएगा मेला
कुमार अहमदाबादी
मेरी जोरू
दोनों को जानती है दुनिया सारी
जोरू से है मेरी गहरी यारी
बिन फेरे हो गये हैं इक दूजे के
मय है मेरी जोरू प्यारी प्यारी
मस्ती में
रहता है मस्ती में मन बंजारा
साथी है मन का प्यारा इकतारा
इक दूजे में गुम रहते हैं दोनों
औ’ गाते हैं तारा रारा रारा
नखरा
करती हो तुम नखरा भी नखरे से
बालों को सजाती हो सनम गजरे से
आंखों को धारदार करती हो तुम
दीपक की लौ से निर्मित कजरे से
डरता क्यों है
डरता क्यों है प्यारे पहचान बता
होटल ढाबे के बोर्ड पर नाम लिखा
गर मन में खोट नहीं व नीयत है साफ
रहना क्यों चाहता है गुमनाम बता
साधक
साधक हो साधना करो जीवन भर
प्रार्थी हो प्रार्थना करो जीवन भर
याचक बनकर आए हो मंदिर में
मनचाही याचना करो जीवन भर
स्वर्ग में
क्या गारंटी स्वर्ग में मदिरा होगी
औ’ साकी उर्वशी या रंभा होगी
इस जग में जो मिला है उस को तू भोग
ना जाने वो कैसी दुनिया होगी
जीवन का सार
दो दिन की है बहार खुलकर पी ले
अर्थी पर है सवार खुलकर पी ले
अपनी इच्छाओं का करना सम्मान
यही है जीवन का सार खुलकर पी ले
भेद
कहता हूं मैं भेद गहन खुल्लेआम
कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम
जग में सब को मीठापन भाता है
मीठी वाणी से चटपट होते काम
आंखें हैं लेकिन
आंखें हैं लेकिन तू अंधा बन जा
सुन सकता है फिर भी बहरा बन जा
भगवदगीता कुछ भी कहती हो तू
अपने सुख की खातिर गूंगा बन जा
इस दीवाने से
मेरे जैसे ही इस दीवाने से
बातें करता हूँ मैं पैमाने से
बातें तो फ़ालतू की होती है पर
दोनों को बांधती है याराने से
जाम
दो बोतल जाम और थोडी नमकीन
साथी हों चंद सोमरस के शौक़ीन
मस्ती का दौर फिर चले एसे की
सांसें भी अंत तक हो जाए रंगीन
मज़हब के ठेकेदार
जितने भी हैं मज़हब के ठेकेदार
सोचो अच्छे हैं क्या उन के किरदार
कहते हैं कुछ पर करते हैं कुछ औ’
सब के सब हैं तन से मन से बीमार
मेरी प्यारी
मेरी प्यारी मय लेकर आ रानी
पर लाना मत पानी ए दीवानी
नखरों को घोल कर तू धीरे धीरे
मुझ को पी ला मय मेरी मनमानी
याराने से
मेरे जैसे ही इस दीवाने से
बातें करता हूँ मैं पैमाने से
बातें तो फ़ालतू की होती है पर
दोनों को बांधती है याराने से
मास्टर जी
ककहरा मुझ को पढाएं मास्टर जी
व्याकरण क्या है बताएं मास्टर जी
मुझ को गिनती करनी है लाखों की कल आज
एक से सौ तक सिखाएं मास्टर जी
जब तार
जब तार परम शक्ति से जुड़ जाता है
इंसान अकेला भी मुस्काता है
रोता है कभी गीत कभी गाता है
गाते हुए ही वो मुक्ति भी पाता है
आओ आ जाओ
आओ आ जाओ अब दुल्हन बनकर
महका दो जीवन को चंदन बनकर
मानो सजनी पुकार प्रेमी दिल की
सांसों को धडका दो जीवन बनकर
मौका दे दो
मौका दे दो कभी तो कुछ कहने का
इक अवसर चाहिये कमर कसने का
सच सच कहना मुझे ए साजन आखिर
क्यों नहीं देते तुम मौका लड़ने का
है मुश्किल
गम के प्यालों को पीना है मुश्किल
गहरे घावों को सीना है मुश्किल
प्यालों को पीकर घावों को सीकर
भी लंबा जीवन जीना है मुश्किल
हो ही जाती है
तब आंख कटीली हो ही जाती है
औ’ चाल नशीली हो ही जाती है
जब आती है मदमस्त जवानी यारों
हर सांस रसीली हो ही जाती है
सताती है वो
गर रुठ जाऊं मुझे मनाती है वो
नखरे कर के सदा सताती है वो
बस इतनी सी है आपबीती मेरी
नर्तक सा प्यार से नचाती है वो
मत रोक मुझे
गालों को भीगना है मत रोक मुझे
छालों को फूटना है मत रोक मुझे
सूखे सूखे आंसूओं को यारा
प्यालों में डूबना है मत रोक मुझे
याद करते हैं इसे
कोयल औ’ मोर याद करते हैं इसे
खट मीठे बोर याद करते हैं इसे
कुदरत से रिश्ता होने के कारण
बादल घनघोर याद करते हैं इसे
कुमार अहमदाबादी
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